आज मै भी मंदिर घंटिया बजा आया हूँ ,
भगवान को सोते से अभी जगा आया हूँ ,
जब से आप भी मेरी तरह सोने लगे है ,
शहर में हर रात कितने क़त्ल होने लगे है ,
देखो मांग में सिंदूर भरे लटो से गिरती बूंदे,
लेकर स्रजन की देवी भी पूजा करने आई है ,
फिर भी कल रात एक चीख सुनने में आई है ,
शायद दहेज़ ने एक लड़की जिन्दा फिर खाई है ,
कितने मन से पुकारा था द्रौपदी ने याद करके ,
फिर उससे हिस्से में नग्नता की क्यों आई है ,
कितनी ही इंतज़ार में बैठी ऊपर के बने रिश्तो के,
क्या उनके हाथ में तुमने वो रेखा भी बनाई है ,
कुंती की तरह डर से सड़क पर पड़े कर्ण के शव ,
क्या माँ बन ने का अधिकार वो खुद पाई ले है ,
भगवान अब आलोक की विनती बस इतनी तुमसे ,
अब रात में फिर कभी न सो जाना मनुष्य की तरह ,
दिन के उजालो में तुमपर जीने वालो को बता दो ,
औरत भी साँस लेती है ठीक तुम्हारी हमारी तरह ..................सुप्रभात ...आपको ऐसा लगता है कि मै रात दिन कविता कहानी लिखता हूँ तो ऐसा नही है ....बस कुछ देर इस बात के एहसास में कि मनुष्य होने का मतलब समझ लू आपके साथ अपनी दो लीनो के साथ आ जाता हूँ और आप में ही वो भगवान पता हूँ जिस से मै अभी विनती कर रहा था ..............आज का दिन आप सभी के लिए सुभ हो ऐसी कि कल्पना अखिल भारतीय अधिकार संगठन की है .....
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