Friday, June 18, 2021

इतना जी चुका जिन्दगी तुझको , चलो कही से मौत खरीद लाये ,

 इतना जी चुका जिन्दगी तुझको ,

चलो कही से मौत खरीद लाये ,

रोज रोज साँसों के दौर से ऊबा ,

कुछ देर तो सुकून के कही पाए ,

याद है कल जब मैं भूखा था यहाँ ,

सब मौत की तरह खामोश थे वहा,

मैं दौड़ा हर तरफ पानी के लिए ,

पर सारे कुओं का पानी था कहा 

जो हो रहा भगवान ही तो कर रहा ,

फिर दुःख में इन्सान क्यों मर रहा ,

क्यों भागते सब कुछ पाने के लिए ,

संतोष से क्यों नही अब कोई तर रहा ,

मेरे घर में अँधेरा गर्भ की तरह ही है ,

क्या सृजन का प्रयास इस तरह ही है ,

भगवान के घर देर है पर अंधेर तो नही,

पर गरीब बना कर ये न्याय तो नही है ,

अब थक गया आलोक चिराग जला कर ,

शांति शायद मिलेगी मिटटी में मिला कर ,

आओ रुख कर ले अपने जीवन के सच में ,

लोग लौट पड़े आग चिता में मेरी लगा कर ................................आदमी की आदमी के लिए बेरुखी और अपने लिए ही जीने की आरजू ने जानवरों को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि अब वो मानव किसको माने.....

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