जो खुद ही ,
टूट गया हो ,
अपनों से ,
छूट गया हो ,
उस फूल से ,
क्या भगवान पाओगे ?
अपनी ही ,
कृति को बर्बाद देख ,
तुमसे ही उसकी ,
मौत को देख ,
क्या भगवान से ,
कुछ भी करा पाओगे ?....................हम मनुष्य भी भगवान के प्रतिनिधि है पर क्या उनको तोड़ कर हम उस भगवान तक पहुच पाएंगे ???????????? अगर नहीं तो बदलिए अपने चारो तरफ ........ डॉ आलोक चांटिया अखिल भारतीय अधिकार संगठन
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