Friday, June 18, 2021

क्यों इतना मन अशांत , शांत सागर सा तो नही है ,

 क्यों इतना मन अशांत ,

शांत सागर सा तो नही है ,

क्यों थक रहे है पैर आज ,

कल सांसो का अंत तो नही है ,

चले साथ उमंग को लेकर ,

देकर उम्र कही ये भंग तो नही है ,

क्या लाये थे तो लेकर जाये ,

आये यहा जो कोई जुर्म तो नही है,

मिल कर नही चले तो क्या ,

अकेले थे आये ये जंग तो नही है ,

आलोक की चाहत अंधेरो में ,

अंधेरो में रहना कोई ढंग तो नही है ,

मैं जो छोडू निशान को अपने ,

अपनों में रहना कोई रंग तो नही है ,

अक्सर तुम आते यादो में मेरी ,

मेरी यादो में रहना कोई संग तो नही है ,

अक्सर मुझे कोई सोता मिला है ,

सपनो में आना कोई प्रसंग तो नही है ....................................कुछ अमूर्त लिखने की चाहत में आज अचानक अपनी तबियत के ख़राब होने पर मैंने यह लाइन लिखी ...................पता नही मुझे अक्सर यही लगता है की एक जानवर अपने पराये लोगो घर सबकी पहचान कर लेता है पर हम मनुष्य होकर भी क्यों ऐसे नही हो पाए एक देश तक के होकर नही हो पाते ??????????? क्या आप देश के लिए सोच पाए .........अखिल भारतीय अधिकार संगठन

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