जिन्दगी कितनी सी है ,
जिन्दगी इतनी सी हैं ,
जिन्दगी जितनी सी है ,
जिन्दगी मिटनी सी है ,
तो क्यों न मुस्करा ले ,
तुमको भी साथ हसा ले ,
कुछ तुमको भी मिलेगा ,
कुछ हमको भी मिलेगा ,
जिन्दगी चलनी सी है ,
जिन्दगी हसनी सी है ,
जिन्दगी कसनी सी है ,
जिन्दगी फसनी सी है ,
तो क्यों न इसे समझ ले ,
थोड़ी देर साथ मचल ले ,
कल किसने देखा है यहा,
आओ कुछ साथ चल ले ,
जिन्दगी आलोक सी है ,
जिन्दगी परलोक सी है ,
जिन्दगी श्लोक सी है ,
जिन्दगी मृत्यु लोक सी है ,
तो क्यों न कुछ कर ले ,
एक बार हस कर बसर ले ,
ये सच अब तो मान भी लो ,
थोडा धूप से हम पसर ले ...........................कब हम समझेंगे अपने जीवन को आज मुझे एक ऐसी बेटी से मुलाकात हुई जिसके पिता नही थे पर न जाने उसने मुझे क्यों पिता कहा और मुझे अच्छा लगा ...........क्या बेटी का सुख आपको मिला है .....डॉ आलोक चान्टिया
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