Friday, June 18, 2021

मेरा मन कही लगता नहीं , ये वतन क्यों जगता नहीं ,

 मेरा मन कही लगता नहीं ,

ये वतन क्यों जगता नहीं ,

चुप चाप सब हैं जी रहे ,

सच का बाजार चलता नहीं ,

मेरा मन कही लगता नहीं ,

ये वतन क्यों जगता नहीं .......1

मैं चाह कर भी हार हूँ ,

जीवन नहीं करार हूँ ,

आलोक मार्ग दर्शक नहीं ,

अंधेरों का मैं प्यार हूँ ,

मेरा मन कही लगता नहीं ,

ये वतन क्यों जगता नहीं ..........२

रोटी पाने की बस होड़ हैं ,

भ्रष्टाचार क्यों बेजोड़ हैं ,

ये भाई बहनों के देश में ,

सहमा क्यों हर मोड़ हैं ,

मेरा मन कही लगता नहीं ,

ये वतन क्यों जगता नहीं .........३ 

घर ही नहीं देश टूट रहा है ,

विश्वास,भी अब छूट रहा है,

मारना है जब सच जानते हो ,

मन फिर क्यों घुट रहा हैं ,

मेरा मन कही लगता नहीं ,

ये वतन क्यों जगता नहीं ............४ 

जीवन में जब हम सिर्फ रोटी तक रह जाते है तो देश , समाज, और घर सब टूट जाते है ......अखिल भारतीय अधिकार संगठन

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