मैं गुलाम नहीं वो ,
जान रहे है ,
वो जी नहीं रहे ये ,
मान रहे है ,
कितने वक्त के लिए ,
आये यहाँ जानते नहीं ,
किसी के लिए जी ले ,
वो ऐसा मानते नहीं ,
आलोक की चाहत में ,
भटकते है सब दर बदर,
देख कर मुझे क्यों फिर ,
भागते यहाँ इस कदर ............ आलोक चांटिया अखिल भारतीय अधिकार संगठन
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