Friday, June 18, 2021

पौधे से न जाने कब , जिंदगी दरख्त बन गयी ,

 पौधे से न जाने कब ,

जिंदगी दरख्त बन गयी ,

किसी के लिए यह ,

ओस की  बूंद सी रही ,

तो किसी के लिए ,

मदहोश सी मिलती  रही 

कोई आकर घोसला ,

अपना बना गया ,

कोई मिल कर ,

होसला ही बढ़ा गया ,

किसी को हसी मिली ,

किसी की  सांस खिली ,

कोई जिया ही देखकर ,

कोई आया दिल भेद कर ,

सभी में अपने लिए ,

 तोड़ने , मोड़ने , छूने ,

छाया पाने की ललक दिखी ,

किसी ने फूल समझा ,

तो किसी ने कलम बना ,

अपनी ही इबारत लिखी ,

सभी को आलोक मिला ,

पर आलोक का गिला ,

अँधेरे से सब डरते रहे ,

मौत से ही मरते रहे ,

कोई नहीं दिखा आलोक में ,

जोड़ी बनती है परलोक में ,

आलोक पूरा हुआ अँधेरे से ,

रात पूरी होगी सबेरे से ,

आइये चलते रहे दरख्त ,

बनने की इस कहानी में ,

फूल पत्ती शाखो से ,

महकते रहे जवानी में ......................अखिल भारतीय अधिकार संगठन आप सभी को जिंदगी के मायने समझते हुए एक नए कल की शुभ कामनाये प्रेषित करता है 

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