वो हमें जिन्दगी जीना सीखा रहे थे ,
हवाओ का रुख मुझे ही बता रहे थे
जिसने खेई नाव समुन्द्र के मझधार में ,
उसको ठहरे हुए पानी से डरा रहे थे ,
............................ इन लाइन को पंकज जी के जानिब से प्रस्तुत कर रहा हूँ
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