भोर तिमिर की आशा से ही आता है,
गर्भ का तम किलकारी हमे सुनाता है,
सूरज ड़ूबता पश्चिम मे पूरब की खातिर ,
तारों को तब ही जीवन जीना आता है ,
जीवन के अंदर धुन मौत की बजती है ,
आंसू में सूरत किसी की ही सजती है ,
जब भी न रहे आलोक जीवन में तेरे ,
मान लेना अंधेरो में जिन्दगी बनती है l
जीवन में आने वाले हर विपरीत परिश्थिति को अगर आप अपनी तरह नहो मोड़ पा रहे है तो आप को अभी और संघर्ष करना है
आलोक चांटिया
No comments:
Post a Comment