आओ हम सभी उस पार का सूरज देख ले ,
डूबते हुए को खुद से हारता हुआ देख ले
कितना सदमे में जब बंद दरवाजो से गुजरा ,
रात से लड़ते हुए पूरब का समंदर देख ले ,
यह कोई नई बात नही खुद गरजी का यहा,
अपनों से अपनों को धोखे में डूबा देख ले ...............
आलोक चांटिया
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