बड़ी शिद्द्त से ,
मुद्द्त से ,
चीटी घर से ,
जिंदगी की तलाश में ,
रोज निकल रही है ,
हाथियों के पावँ,
से कुचल रही है ,
पर हौसला तो देखो ,
चीटी फिर भी
निकल रही है |
अपने दर्द की अंतहीन
कहानी में चीटी ,
ना जल रही है ,
ना पागल हो रही है ,
पर हाथी कुचल कर भी
पागल हो रहा है |
अपना आपा खो रहा है
ये दुनिया में ताकत का
कौन सा नृत्य हो रहा है |
कोई पाकर रो रहा है
कोई खो कर हस रहा है |
भगवन दो बार हस्त है एक जब वो किसी को बर्बाद करना चाहता हो और कोई कहे तुमको कुछ नहीं होगा और एक तब जब भगवन आपके साथ हो और कोई आपको बर्बाद करना चाहता हो | अपने अधिकार और गरिमा के लिए लड़ने वालो ने अक्सर घास की रोटी खायी है | रात जंगल में बितायी है और इसी लिए लोग अब गलत देख कर भी खामोश रहने लगे है |
No comments:
Post a Comment