Friday, June 18, 2021

हरी हरी घास पर जिन्दगी इंतज़ार में

 हरी हरी घास पर जिन्दगी इंतज़ार में  ,

सुबह से ही न जाने किस इकरार में ,

सरपट दौड़ती मेरी सांसो का चलना ,

उसकी आंखे न जाने किस तकरार में ,

शायद मौत से मेरी अब तक उबरी नही ,

छूकर देखती मेरी परछाई कही तो नही ,

राख में कोई भी गर्मी अगर ढूंढ़ लेती ,

कुछ देर मर कर मेरे साथ चली तो नही ,

न जाने क्यों घूमती मेरे इर्द गिर्द आज ,

क्या अब तक जी रही मेरा  कोई राज ,

उसकी धड़कने क्यों बज रही बन  साज,

आलोक सा अँधेरा मिला मिटा के लाज ,

ऋतु की तरह बदल लो तुम भी खुद को ,

आज गर्म हवा हो कल बनाओ सर्द खुद को ,

लोग मिल जायेंगे काटने को समय अपना ,

मौत में सिमटी जिंदगी समझ लो खुद को ........................जो हो रहा हैं उस पर दुःख किस लिए ....जो हो रहा हैं वो गर होना ही था तो उसको समय का सत्य मान कर बस जीते जाओ .और आज जिस ऋतु से आनंद लिया हैं .कल्किसी और के हो जाओ ......................प्रकृति खुद आपको बेवफा होना सिखाती है .जिस गीता कर्म योग कहती है ....तो दुःख में ही सुख देखिये 

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