Friday, June 18, 2021

जानता हूँ मौत मेरे , इर्द गिर्द ही है घूम रही

 जानता हूँ मौत मेरे ,

इर्द गिर्द  ही है  घूम रही ,

चल जिंदगी तुझे कोई ,

फिर मिल जाये सही ,

रास्ते होते नही खुद ,

बनाये जाते यहाँ ,

खीच ले एक बार फिर ,

आज फिर जाता कहाँ,

श्वानों के शोर से ,

गज कभी डरता नहीं ,

गीदड़ों के बीच में ,

वीर कभी मरता नहीं ,

सीपियों के बीच में ही ,

मोती की पहचान है ,

स्वाति की ओज से ,

नहीं कोई अनजान है ,

मुस्कराता गुलाब देखो,

काँटों के है बीच रह कर ,

जी कर एक बार देखो ,

झूठो के बीच रह कर ,

कर्ण हरिश्चंद्र सब यही ,

सच के खातिर जी गए ,

जो जिया न्याय को ,

नाम उसी के रह गए ...................राम , कर्ण , हरीश चन्द्र राणा प्रताप कुछ ऐसे नाम है जिनके जीवन में हमेशा सुख बना रहता अगर वो अपने जीवन को उस तरह से चलते जैसा झूठे फरेबी , मक्कार , असत्य पर चलने वाले चाहते थे पर ऐसा ना करके ही उन्होंने समाज और उसका अर्थ हमारे सामने रखा , शिक्षकों से अपील है कि वेतन भोगी से ज्यादा एक ऐसी रास्ते का निर्माण करें जिससे आने वाली पीढ़ी एक और उन्नत समाज  को बनाने में योगदान कर सके

No comments:

Post a Comment