आओ एक बार ,
मर कर देखते है ,
कोई कंकड़ ,
नदी में फेकते है l
वजूद रहे न ,
रहे बीच में कभी ,
एहसास बढ़ती ,
लहरों में देखते है l
मर कर देखते है .........................जीवन में सभी का सम्मान है उसके लिए अपने को रावण मत बनाओ
डॉ आलोक चांटिया
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