Friday, June 18, 2021

LUCKNOW (लखनऊ)

 ये जमीं का टुकड़ा ,

भर नही है , मेरा शहर ,

बसी है इसमें ना जाने ,

कितनी राहे गुज़र |

देखो हसरत से इसको ,

पानी में गोमती के ,

मिलती है कहानी , जाने ,

कितनी महफ़िलो की |

है नूर ये बेगमों का ,

है शान हज़रत की अभी ,

महल दिलकुशा सा लगता ,

रेजीडेंसी है अमानत अभी ,

ना कह कर सब कुछ कहती ,

राहें विधान सभा की ,

हर दर्द समेट लेते ,

मेरे पीर खम्मन सभी ,

मनकामेश्वर में शिव से ,

बागों का शहर है चलता ,

कही रूमी का नशा है ,

सब भूल भुलैया सा लगता  |

झांकती है हर शान ,

बारादरी में अभी आकर ,

नवाबों का अदब जिन्दा, 

हर शाम में लखनऊ पाकर 

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