ये जमीं का टुकड़ा ,
भर नही है , मेरा शहर ,
बसी है इसमें ना जाने ,
कितनी राहे गुज़र |
देखो हसरत से इसको ,
पानी में गोमती के ,
मिलती है कहानी , जाने ,
कितनी महफ़िलो की |
है नूर ये बेगमों का ,
है शान हज़रत की अभी ,
महल दिलकुशा सा लगता ,
रेजीडेंसी है अमानत अभी ,
ना कह कर सब कुछ कहती ,
राहें विधान सभा की ,
हर दर्द समेट लेते ,
मेरे पीर खम्मन सभी ,
मनकामेश्वर में शिव से ,
बागों का शहर है चलता ,
कही रूमी का नशा है ,
सब भूल भुलैया सा लगता |
झांकती है हर शान ,
बारादरी में अभी आकर ,
नवाबों का अदब जिन्दा,
हर शाम में लखनऊ पाकर
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