Friday, June 18, 2021

आज लिखने को सिर्फ दर्द है ,

 आज लिखने को सिर्फ दर्द है ,

क्योकि उनका चेहरा सर्द है ,

खोया है उनको जो अपने है ,

आज जो है पर अब सपने है ,

कल जिनकी ऊँगली सूरज थी ,

कल जिनकी थपकी चाँद थी ,

आज वही खुद तारे बन गए ,

पुरखो से वो हमरे बन गए ,

पुकारने पर लौटेगा सन्नाटा ,

बेटा कहने कोई नहीं आता ,

कल जिसके कदमो पर सर ,

आज उसकी चिता जला रहा ,

ये दुनिया में मैं क्या पा रहा ,

अपने  ही रोज  खोता जा रहा ,

कोई है जो बताये आलोक कोआज   ,

क्यों उनके घर अँधेरा होता जा रहा ..............................आज मन इस सोच से दुखी है कि डॉ एस दी शर्मा जी के पिता नहीं रहे और उन्ही को अपनी टूटी फूटी लाइन में श्रधांजलि अर्पित कर रहा हूँ आप इस आकाश में जहाँ में स्थापित हुए हो आप हमेशा कि तरफ हमें प्रकाशित करते रहे ....

No comments:

Post a Comment