अँधेरे में छूटे या ,
छूटते चले गए ,
वो लोग कौन थे ,
और कहा निकल गए ,
दर्द देकर पा लिया ,
जन्म फिर यहाँ ,
माँ बन गयी मगर ,
तुम गए फिर कहाँ,
सींचा तुमको खून से ,
अपना अंश मान कर ,
छोड़ कर तुम गए कहाँ ,
दर्द मेरा सब जान कर ,
कहते नहीं क्यों सुख ,
ढूंढने आये थे यहाँ ,
दर्द सिर्फ आलोक का,
तिमिर चाहता कौन कहाँ ,
......................क्या मैं सच के रास्ते छोड़ कर उन्ही पर बढूँ जिस पर चल कर लोग आज प्रगति को परिभाषित कर रहे है ??????????????? डॉ आलोक चान्टिया, अखिल भारतीय अधिकार संगठन
[23:10, 10/30/2020] Alok Chantia: हर तर
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