दिन भर मुट्ठी में उजाला पकड़ता रहा ,
फिर भी क्यों मन अँधेरे से डरता रहा ,
पग ने भी जाने कितना पथ चल डाला ,
कहते जीवन को अब भी है , मधु शाला ,
स्रजन का असली मतलब तारे समझाए
देख निशा के संग कुछ सपने भी है आये ,
बुन कर इनको फिर नींद के रंग से भर दो ,
सांसो की वीणा से मन्त्र मुग्ध सा कर दो ,
आलोक की आहट सोच रात छोटी हो जाये ,
हर आँखों का स्वप्न पूरब का दर्शन हो जाये,................शुभरात्रि ..अखिल भारतीय अधिकार संगठन (ऐरो)
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