जिन्दगी मौत के मानिंद छिपी छिपी सी रही ,
दुनिया में जब दिखी भी तो घुंघरू बन कर ,
हर सांस हारती रही खुद जिन्दगी के लिए ,
अँधेरे से हो आई फिर किलकारी बनकर ,
आलोक क्यों है जुदा सबकी मंजिले फिर ,
जब आये थे हम सभी आदमी ही बन कर ...............बढ़ते अँधेरे में कल सुबह होने का तस्वुवुर लेकर आइये हम पूरब की तरफ एक बार हसरत से देख ले
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