Friday, June 18, 2021

जिन्दगी मौत के मानिंद छिपी छिपी सी रही

 जिन्दगी मौत के मानिंद छिपी छिपी सी रही ,

दुनिया में जब दिखी भी तो घुंघरू बन कर ,

हर सांस हारती रही खुद जिन्दगी के लिए ,

अँधेरे से हो आई फिर किलकारी  बनकर ,

आलोक क्यों है जुदा सबकी मंजिले फिर ,

जब आये थे हम सभी आदमी ही बन कर ...............बढ़ते अँधेरे में कल सुबह होने का तस्वुवुर लेकर आइये हम पूरब की तरफ एक बार हसरत से देख ले

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