Friday, June 18, 2021

देखिये ये माँ नही , गंगा है ,

 देखिये ये माँ नही ,

गंगा है ,

और सोचिये आदमी ,

कितना नंगा है ,

रोज तन मन को ,

गुमराह कराती ,

घुंघरुओं की आवाज ,

में समाती देश की ,

लज्जा की तरह ,

तुम क्यों आदमी पर ,

भरोसा कर आ गयी ,

इन फितरती लोगो ,

से देखो क्या पा गयी ,

कल तक तेरे आँचल,

से अमृत पीते थे ,

मरते दम तक तेरी ,

बून्द से जीते थे ,

पर आज तुम खुद ,

अपने में लाचार हो ,

फिर भी उसकी पहचान ,

और एक प्रचार हो ,

एक बार तू सोच जरा ,

कब तक यहा नारी ,

भावना में लुटती रहेगी,

कहलाएगी माँ गंगा और  ,

खुद जीने को तरसती रहेगी .........................हमें अपनी कथनी करनी में अंतर करना होगा तभी जीवन और नारी के हर स्वरुप को  पारदर्शी हम बना पाएंगे

No comments:

Post a Comment