Monday, December 31, 2012

क्या उसको याद करना है हमको

हर कोई अपनी ख़ुशी पाना चाहता है ..............
हर कोई नव वर्ष मुबारक कहना चाहता है ......................
वो खो गयी न जाने कहा इस भारत में आलोक ....................
क्या उसकी हसी को कोई फिर पाना चाहता है ........................
क्यों मनाये आज  कालिमा में डूबे इस पल को हम ..................
क्या ऐसे ही मनाएंगे हम उसके जाने का ग़म..........................
ऐसे ही माँ को बाँट  कर हम नाचे थे १९४७ में ...................
आओ आज की रात जाग ले जब तक है दम में दम ................................    शायद हम सबको एक मौन के साथ इस नव वर्ष में अपने आप से यह पूछना चाहिए कि क्या वर्ष २०१३ में जब किसी लड़की को जरूरत पड़ेगी तो हम जाती , धर्म , रिश्ते से दूर सिर्फ उसको उसकी हिफाजत के लिए आगे आयंगे .........................सोचिये और देखिये क्या आपने एक बार सच्चे मन से देश के लिए सोचा है ????????????????? उस भारत की बिटिया को क्या हम आज की रात देकर पूरे वर्ष का भारत नव वर्ष सा कर सकते है ....................देश है आपका ..सोचना है आपको .................अलविदा २०१२ एक नहीं कई बलात्कार के साक्षी वर्ष के रूप में .................................शुभ रात्रि २०१२ अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Wednesday, December 26, 2012

कब समझोगे मुझको

रात जैसे जैसे गहराई..............
वो फिर दर्द में आई ...............
क्या अभी चुप रहोगे पार्थ.........................
.मैं  लड़की बन के  क्या पाई.....................
माँ कहकर भारत को लूटा.......................
बहन को लूटा किसने भाई ......................
.दम तोड़ रही लाज  देश की ....................
मानवता देखो कितनी शरमाई .................
.मैं रहूँ ना रहूँ कल यहाँ ........................
दे दो जीवन लड़की को जो लायी ...............................आज भारत की अस्मिता हार गयी और हमारे देश में अपनी इज्जत और जीवन को दावं पर लगा चुकी लड़की ( आज तक हम उसका नाम नही ले सके .सब कुछ लुटने के बाद उसके नाम के लिए इतनी गोपनीयता बताती है कि हम सब किय्ना पाखंडी  है ) को जीवन देने के लिए सिंगापुर ले जाया जा रहा है ........अगर मैं कभी कोई अच्छा काम किया हो तो वह भारत पुत्री इस देश कि मर्यादा बन कर फिर आये .......................हम सब तुम्हरे साथ है ...मेरे देश कि लाज ???????????????????????????????/शुभ रात्रि

Tuesday, December 25, 2012

दिया कहा किसने

जो चौखट पर आज मेरे जल कर गया है ................
वही था जो मजार पे मुझसे मिल कर गया है ............
मेरे अँधेरे को सिर्फ समझा है उसने आलोक .............
उसको दिया का नाम इस संग दिल दुनिया ने दिया है ...............

Saturday, December 22, 2012

मेरे तन को मन से अलग न करो

तोड़ का निशा का जाला उजाला आया ....................पर खुद को अँधेरे में कितना पाया ......चीख रही थी धरा अपने संग  संसर्ग से ................भोग्या नही हूँ मैं मानव तेरे प्रसंग से .................क्यों खोद कर तन मेरा मन जलाया ....................प्रकृति कह  चोट  देने का कौन मर्म पाया ...................माना मैं नारी हूँ गंगा की ही तरह आलोक .....................पर मैली , बंजर क्यों करते हो मेरी काया ...................बलात्कार के खिलाफ आवाज़ ही नहीं एक क्रांति का जय घोष कीजिये ताकि लड़की न तो चारदीवारी में सिमटे और ना ही अपनी मौत की भीख मांगे .......................यह सच है कि प्रकृति में हम एक दुसरे के पूरक है पर बिना समय बदल का बरसना सिर्फ तांडव मचाता है ..............आज फिर  प्रकृति से छेड़ छाड़ हुई है ...................ख़त्म कर दो उन हाथो को जिनसे वो जार जार हुई है ...................मुझे भारतीय होने में शर्म आती है ...........सुप्रभात

रात में जागने की बारी है

दर्द में डूब रही है आज रात मेरी ...............दर्द से ऊब रही है आज रात मेरी  .............ऐसे दर्द का लम्हा गुजरा उसके तन मन से ........................भारत के मैले आंचल में आज रात है मेरी ....................ये कैसी रात है जो ढोल पीट सो जाते सभी .............वो रोती बिलखती सोचती मौत क्या होगी कभी ................कौन कहता है ये देश है भाई बहन का आलोक ...................हर रात किसी की इज्जत तार तार हुई अभी ............................केवल यह मत कहिये की रेप करने वालो को सजा दो बल्कि देश के संविधान के निति निदेशक तत्व की ५१अ के अंतरगत  महिला की अस्मिता और गरिमा के लिए कानून बनाना चाहिए | ना जाने क्यों सैकड़ो कानून बना कर देश महिलाओ को भ्रमित कर रहा है .....................सोचिये और कहिये ना शुभ रात्रि

Friday, December 21, 2012

कोहरा छा रहा है तन में

मन कहता है कोहरा ना हो जीवन में ................तन कहता है है कोहरा ही हो जीवन में ..................धूप से खेल खेल कर रोज दिन बिताते ......................आज कुहासा क्यों मिल आया है जीवन में ..................जिन्दगी कुछ सिकुड़ती , दुबकती हर पल ...................ना जाने कौन छीन ले और हो ही न कल ..................या कैसा है समय आलोक सभी के जीवन में .................बेटी माँ मांग रही है मौत भारत के जीवन में ..........................केवल रैली और धरना प्रदर्शन करके हम सब को बचने की कोशिश नही करना चाहिए .......पुरे देश को फंसी और मृत्यु दंड के लिए आन्दोलन चलाना चाहिए ....................कुछ लोग कहते है की यह जानवर जैसी क्रिया है ...........पर मैं आपको बताता हूँ की पृथ्वी पर कोई ऐसा जानवर नही है जो मादा के साथ बिना बिना सहमति के शरीर संसर्ग कर सकता हो .....हम तो जानवर कहलाने लायक भी नही रह गए ..................क्या आपको पूरा विश्वास है की आपके इस मौन से एक दिन आपका घर रुदन की चपेट में नही आएगा ..............................यही है कोहरा का सही अर्थ .................रोकिये ये अनर्थ ...............सुप्रभात
आज की रात कोई आने वाला है .................आज ही अभी कोई जाने वाला है ...............किसी को आँख में सपने सजाने है ......................किसी को सोने के हज़ार बहाने है ...............मन नही करता कोई बात ही कहूँ ......................कोई नही है जिस साथ एक पल  मैं रहू .................पर दिन रात का यह चलता सिलसिला .......................क्या कहूँ कब कहा कौन खोया या मिला .........................आप कही सोने तो नही जा रहे है .देखिएगा कही कोई लड़की आपकी सहायता तो नही चाहती ..................उसका बलात्कार होता रहे और हम सोते रहे ...........बाद में रैली , धरना , करके हम बलात्कार महोत्सव मनाये ..................क्या मैं गलत हूँ ??????????????? शुभ रात्रि

Thursday, December 20, 2012

आँख बोझिल हो रही है

देखो आँखे बोझिल हो रही है .................हकीकत फिर ओझल हो रही है ...........कितनी देर समेटता आलोक तुझे ...................अँधेरे की बात सपने से हो रही है ..................अगर चाहो तो खुद देख लो आकर ................एक और दुनिया मेरे संग हो रही है .....................कल फिर इसी दुनिया की बात होगी ..........................पूरब की चाहत अभी से हो रही है ..........................९९ का फेरे में डूब कर हम रोज सपने की दुनिया और हकीकत की दुनिया में गोते लगाते रहते है और इसी लिए आपको कहना ही पड़ेगा .....शुभ रात्रि

Wednesday, December 19, 2012

लड़की नही मैं माँ बेटी हूँ

क्या कहता है देश वेश में कौन है आया .............माँ को लूटा बेटी को लूटा टूटा रिश्ता का साया .............सिसक रही वो लड़की जो भारत में रहती है .......................क्या पाया बलात्कार सत्कार नही उसने पाया ..............धिक्कार रही जननी अपनी कोख आज क्यों ...................क्या पशु ले रहे जन्म पुरुष बस नाम है पाया ...............कैसे हस पाएंगी बेटी खुद तेरे आँगन में भारत .................रुक कर देखो लक्ष्मी जी रही लेकर काला  साया ........................मेरे देश के पुरुषो कम से कम उस रावन और कंस से ही प्रेरणा ले लो जिसे हमने राक्षस कहा पर कभी उन्होंने नारी के सतीत्व को चोट नहीं पहुचाई ............पर यह क्या हो रहा कि हमको शर्म आने लगी गई .................क्योकि हर लड़की सड़क पर डर के जाने लगी है ...................सभी लोग मिल कर लडकियों के जीवन के लिए सोचिये और देश में बलात्कार के लिए मृत्यु  दंड की सजा का आन्दोलन चलिए ...........अखिल भारतीय अधिकार संगठन

सुबह का मतलब समझे जो है

दौड़ सुबह को देख सूरज पूरब में आया ....................खुद चमका आलोक और दुनिया चमकाया ...................ऐसा नहीं कि गगन को रंग कोई न मिला हो ....................नीला हुआ आकाश संग पीला प्रकाश है पाया ...............................तुम बढ़ कर रंग खिला लो अपने जीवन में ...............निशा से छूट उजाला मुक्ति सभी में लाया ................मैं भी दौडू तुम भी दौड़ो क्रम के पथ पर ............................क्यों करते हो साँसों को अपनी रोज निर्थक जाया ..............सुबह के रंगों को समझिये और कहिये ..........सुप्रभात

और रात हताश हो गयी

मैं क्यों कहूँ  आज फिर रात हो गयी ............ शायद सूरज की पश्चिम से बात हो गयी ....................हर कोई अपना आराम ढूंढ़ता है यहाँ ................बस सुबह का उजाला देख रात साथ हो गयी ...............ऐसा नही कि आलोक को नही कोई तलाश .......................पर क्या करें जिन्हें तलाशा उनसे उचाट हो गयी ..................कहते है हीरा चमकता अँधेरे में अक्सर ....................इसी लिए कोयले में एक शाम हताश हो गयी ...................सोच कर देखिये और अपने में हीरा ढूढ़ लीजिये ...पर इसके लिए कहना पड़ेगा ......शुभ रात्रि

Tuesday, December 18, 2012

सुबह को क्या बना डाला हमने

अब ना चिडियों की चचाहट आती है ................ना कोयल की कूक कानो में जाती है .........मस्जिद की अजान ना मंदिर की घंटी .................ये सुबह जाने क्या दिखाने लाती है ................लगता है आदमी के साथ रहने का असर है ..................देखिये उसका कैसा ये बसर है .........................फिर भी चील्ल्पो में लिपटी सुबह बताती है .........................कैसी भी हो गयी पर वो रोज आती है ..........................हम लोगो ने सुबह को कितना बदल डाला पर कभी एक बार नही सोच पाए की की आदमी ने खुद को बर्बाद किया पर सुबह का अंदाज की बदल डाला .....चलिए तो भी कहना तो है ही सुप्रभात

रात आ ही गयी

क्या लिखू कि रात आ गयी ..................क्या कहूँ कि कुछ सुकून पा गयी ...................पर सन्नाटो को इतना क्यों लाये .......................कि आंख खुद को नींद में बंद पा गयी ................मैं जानता हूँ कि  आलोक सब कुछ नही ..................पर अँधेरे में एक अहमियत दिखा गयी .........................कोई नही तो सपने साथ देने आ गए अकेले ..........................एक सुनहरी दुनिया फिर आगोश में  आ गयी ................शुभ रात्रि

Monday, December 17, 2012

क्या हकीकत को सुनाया तुमने

मैं सूरज के ख्वाब में डूबा नही ..................मैं कभी पूरब से ऊबा  नही ............तभी तो आती है रोज बिघोने मुझे ............किरणों का ये खेल कोई अजूबा नही .................आलोक नही तो क्या पाया तुमने ......................अंधेरो में सिर्फ सपने सजाया तुमने ........................हकीकत का नाम ही सुबह रखा है सबने .......................क्या भोर के शोर को कभी सुनाया तुमने ........................एक बार इस नश्वर शरीर में अपने कोई ढूढ़ लीजिये .आप खुद नही जान जायेंगे कि आपको कुछ ऐसा करना चाहिए कि आप नश्वरता में अमरता प् जाये ............तो आज ही से कहिये सुप्रभात

Sunday, December 16, 2012

कहा जाने लगी

लूट कर दिन भर का उजाला ...........रात जीत अपनी मनाने लगी ..............................सपनो की महफ़िल में उसका इंतज़ार ......................बन्द आंख में नींद मैखाने सी आने लगी ....................नशा ही नशा हर घर में फिर  दिखा ....................बिस्तर की याद हर शरीर को आने लगी ......................आओ थोड़ी देर खुद पर भरोसा कर ले ...................रात पूरब से मिलने कहा जाने लगी ...................अगर आप समय को चूक गए तो यह जान लीजिये कि सपना , नींद सब कुछ आपके हाथ से निकल जायेगा ................तो कीजिये हर पल का उपयोग और अभी के लिए कहिये .......शुभ रात्रि

Saturday, December 15, 2012

हकीकत से बोल गयी

रात बीत गयी आँखों को खोल गयी ..................सांसो से बात हुई दुनिया में डोल गयी ...................पूरब की लाली ने  सूरज का मुहं दिखाया ..........................सपनो से दूर करो हकीकत से बोल गयी ....................मैंने अपना वादा पूरा कर दिया पर आप क्यों सो रहे हैं .....कहिये तो सुप्रभात

Friday, December 14, 2012

सोचो क्या पाया है तुमने


हवा चली एक तमस को लेकर ......................सन्नाटा फैला एक हवस को लेकर .....................दौड़ खत्म हुई बिस्तर पर आकर ......................नींद दौड़ पड़ी कुछ सपने को लेकर.................सोचो क्या पाया क्या खोया दिन भर .......................ऐसे ही पल गुजरेंगे हमारे उम्र भर ...........................छोड़ कर क्या जाओगे अपने पीछे आलोक ........................अँधेरे के पार खड़ा एक उजाला भी बन कर ........................... क्या आप कुछ ऐसा नही करना चाहते जो आपके रोज खाने पीने , सोने से ऊपर हो और जो आपको जानवर की तरह नही मनुष्य की तरह अनुभव कराये ...............सोचिये ऐसा क्या है ????????????? चलिए सोते हुए सोच लीजिये ..शुभ रात्रि

Thursday, December 13, 2012

सूरज का अपना दर्द है

ऊब अकेले के जीवन से सूरज देखो आया है ..................दुनिया के लोगो से मिल कर वो भी कुछ पाया है ...................धूप दिखाकर पेड़ पौधों को उसने ही लहराया है ....................पर दुनिया में खुद को उसने पूज्य बनाया है .................सूरज की अपनी जिन्दगी है और जो देता है हम उसकी तरह कभी भी ध्यान  नही देते और इसी लिए सूरज का अकेला पण हम कभी नही देख पाते..............ऐसा नही है तो कहिये उससे सुप्रभात

अँधेरे से भागो नही

आज चला तो धूप में सुबह  कदम थे .......................पर रुके तो अँधेरे के हमदम थे .......................अच्छा करके भी अच्छा नही मिलता .......................पर दिल दिमाग के अपने दमखम थे .....................क्यों रुकते हो डर कर परिणाम से यहाँ ...........................क्या बता सकते हो तेरी मंजिल है कहा .......................जो सोचते नही डर कर बैठना कही ..............उन्ही की मुट्ठी में होता हैं सारा जहाँ ......................आप कुछ भी कर सकते है पर जब सही करने वाले के हिस्से में गलत आता हैं तो अँधेरे से भागना कैसा .......तो करिए स्वागत अँधेरे का और कहिये .....शुभ रात्रि

Wednesday, December 12, 2012

जीता वही जो रहा है अकेला

जीवन के पथ पर जो रहा अकेला .....................सूरज की तरह चमका बिन लगाये मेला ...............अँधेरा मिला तो तारें भी हस लिए ..................जीवन का राज है आज तक झमेला .................लेकर हम चल रहे जो ये साँसे ................भरोसा किया क्यों तुमने है इन पर .................... कर्म का पथ हमको पूरब दिखाए ................पश्चिम पर भरोसा करू आज किन पर ...............शुभ रात्रि

Tuesday, December 11, 2012

पूरब नही देता है हाला

ना रात है ना दिन का उजाला .......................नीला न गगन ना ही पूरा काला..........................पूरब का न सूरज न ही पश्चिम का .......................समय ला रहा आलोक का प्याला ....................कुहासे में डूबी प्रकृति का श्रंगार ..........................ओस की बूंद अमृत सी नही हाला .....................एक बार अंगड़ाई लेकर बाहर देख लो ...........................जीवन तोड़ रहा है कैसे तमस का जाला...................मैं आज सुबह सुबह पूरब की तरफ देख कर यह लिख रहा हूँ और न मुझे सूरज मिला और न ही चाँद बस है तो समय जो तमस को तोड़ कर पूरब ले लाली लेन की तैयारी  कर रहा है .................क्या आपने कभी प्रकृति का आनंद लिया ..............नही तो कहिये सुप्रभात तुरंत

कही समय मिल जाये

कितना दर्द सहूँ कि सृजन हो जाये ......................कितनी देर रुकूँ कि समुन्दर हो जाये ..............चलते चलते नदी का मीठापन खो गया ...............कब तक हो  बंद हो आंखे कि सबेरा हो जाये .....................अगर आपको समय मापना आ गया तो जो आप चाहते हा वह आपको यही मिल जायेगा ............शुभ रात्रि

Thursday, December 6, 2012

क्या सूरज कम परेशां है

आज की सुबह कुछ तंग है ...............परेशान थोडा कोहरे के संग है .....................जुटी है जतन से बाहर के लिए ..............क्योकि पूरब का अपना ही रंग है .............कुहासा का भी जीवन अपना है .....................उसका भी कोई तो सपना है .............आज सूरज से उसकी जंग है ................जीने के उसका अपना ही ढंग है .......................आप जीवन को यह समझ कर कि उसमे परेशानी  नहीं आनी चाहिए जीते है पर सूरज को क्या कम परेशानी  है बादल कोहरा सबका सामना करके वह हमारे बीच आता है ......................तो कहिये सुप्रभात

रात सिखा गयी मुझको ........................

रात ने हमको तारो से मिलाया ..................रात ने सपनो को पास बुलाया ........... आलिंगन का दौर बंद पलकों में ......................... रात ने सृजन का मतलब समझाया .................रात से मिलकर थकान का एहसास ..................एक पल सोने का मजा मुझे दिखाया ......................आलोक को क्यों पूछूं जब रात है .....................सुहाग को सुहागा सोने सा बनाया .....................कहते है रात यानि कालिमा का अपना ही मजा है और अगर रात ना होती तो सुकून के वो क्षण न होते जिनके सहारे हम खुद को महसूस करते है .................सच है ना तो कहिये शुभरात्रि

Wednesday, December 5, 2012

रात के उजाला भी होता है

अपने दायरे को पाकर सूरज चमकता है .......................एक ऊचाई पर रहकर ही धधकता है .....................डूबना उसके भी हिस्से में आता है रोज ....................... रात का रास्ता उसके सामने भी पड़ता है .............हर कर्म का अपना एक परिणाम होता है .......................कोई रोकर तो कोई हस कर रोता है ...................आओ सोच ले इस सुबह के दर्शन को ........................आलोक भी सबके दामन कुछ तो होता है ..........................शायद इस सच से हम दूर नही जा सकते की कितना भी पौष्टिक और सुपाच्य भोजन कीजिये पर मल का निर्माण अवश्य होता है ........उसी तरह से जीवन में चाहे जितना अच्छा बुरा करेंगे ............उसके दुसरे परिणाम भी आयेंगे ................अगर यह सच है तो कहिये सुप्रभात

chala jata hai

रौशनी का जरा सा साथ ..............पाकर कली खिल तो गयी ..............पर पश्चिम का हुआ नही सूरज ...............कि देखो मिटटी में मिल गयी ................रात को कहा तरस आता है ................. उसे बंद आंख में मजा आता है .....................तुम  सपने  की आदत डाल लो ...............वरना सच में कोई सो जाता है .................... अगर आप ने बुरे के साथ जीना नही सिखा तो वह आपको ख़त्म कर देगा ..............इसी लिए रात में सोने का अपना मजा है ....तो चलिए कहिये शुभ रात्रि

Tuesday, December 4, 2012

raat gayi baat gayi

रात गयी बात भी गयी ..............लेकर सपनो की बारात गयी ................रोक भला कौन पाया है उसको ....................आराम की हर अब बात गयी ................लेकिन अपने पीछे जो छोड़ा ....................वो देकर पूरब का साथ गयी .............देखो कैसा चमक रहा सूरज है .....................आलोक से नहलाने के बाद गयी ......................ऐसा नही है कि जीवन में सब कुछ ख़राब ही होता है ...रात जब जाती है तो कालिमा सपनो से दूर हमको हमरी मंजिल  , सूरज के साथ छोड़ जाती है तो फिर कहिये सुप्रभात

sapne la rha hun

दुनिया का अँधेरा आँखों में बसा कर ............................बंद पलकों में अब उनको छिपा कर .......................एक सपना ढूंढ़ने कही जा रहा हूँ ..................सच मानो तुझे अपने पास ला रहा हूँ ....................हर कोई देखता जब बातें होती तुमसे .......................तुमको सन्नाटो में करीब ला रहा हूँ ......................शुक्र है अँधेरा और सपनो का आलोक ..................रात में अकेले खुद न सोने जा रहा हूँ .......................दुनिया में न जाने कितने वो नही पते जो वह चाहते है .ऐसे में रात का आना कितना सुखद है क्यों की अँधेरे में डूब कर सपनो में खोया जाता है ..........और जो न पाया वही आँखों में आता जाता है .......तो देर कैसी कहिये शुभ रात्रि

Monday, December 3, 2012

lipat gaya

सुबह से ऊब कर सूरज छिप गया ...............चाँद भी आकर अँधेरे से लिपट गया .................मैं क्या करू अब जाग कर आलोक ...................नींद की आगोश में झट सिमट गया .................कल तक लगा सब जीते ही नही अब .......................टिमटिमाते तारे से कोई दीपक निपट गया .............कुछ देर दुनिया से दूर आओ चले हम .......................... जिन्दगी का दौर फिर मुझे झपट गया ............................न जाने क्यों हम यह समझते है की कोई उसके लिए जी रहा है पर ऐसा है नही ......बस आपके रस्ते में कोई आ जाता है और आपको लगता है कि वो आपके साथ साथ है पर दोनों अपना अपना रास्ता जीते है ...जैसे अभी रस्ते में रात आ गयी और हम कह उठे ...शुभ रात्रि

Sunday, December 2, 2012

raat sikha gayi mujhko

रात सिखा गयी आज जीना मुझको ................अंधेरो से कैसे हस कर मिले बताया मुझको .....................कैसे तक बीत जाती हम कब जान पाते...................... कठिन दौर में सोना बता गयी मुझको ..................कुछ तो होगा जो संघर्ष में कर सके .................. माँ की कोख के अँधेरे से मिला गयी मुझको .....................अँधेरे से भाग कर कहा तक जाओगे .........................दिल के अँधेरे में प्रेम दिखा गयी  मुझको .......................नींद , दिल , माँ की कोख सब अँधेरे में रह कर अपना सबसे अच्छा परिणाम देते है तो आप अँधेरे को देख भाग क्यों रहे है ...............शायद आप के जीवन में कुछ अच्छा होने वाला है ..........पर आप तो रौशनी के आदि हो चुके है तो कहिये सुप्रभात

Saturday, December 1, 2012

ye prem kaisa hai

हाथ छुड़ा कर चली रात जब ...................नींद को छोड़ खुली आँख तब ...........जो देखा वो मन को भाया.................पूरब मिलने मुझसे था आया ..............अन्जाना वो भी न मुझसे ................पर लगा उसे आज ही पाया ............भरी चपलता चाल में मेरी .............आलोक का स्पर्श कुछ ऐसा छाया ........................प्रेम की अपनी दास्ताँ है और उसे समझना किसी के बस में नही है पर ऐसा लगता है कि हम अपनी जरूरत के अनुसार प्रेम करते है .कभी रात के कभी दिन के किसी एक के होकर रहना हमारी फितरत नही है पर सोच तो सकते है ना तो चलिए कह ही देते हैं सुप्रभात

kab miloge mujh se

रोज रात कहती है मुझसे ........आलिंगन मैं करती तुझ से .........कब तक यूँ ही मिलोगे मुझसे .............पूरी कब बन पाऊँगी तुझसे ..............अब मुझसे ये सहा न जाता ...................जब पूरब तुमको है गले लगाता................चलो आज फिर सपने दिखाऊ .............शायद तुमको पूरा पा जाऊ ...................... क्या इस प्रेम को आपने कभी महसूस किया हैं और नही किया इसी लिए कब चले जाते है पता नही चलता .............इसी लिए कहिये शुभ रात्रि

Friday, November 30, 2012

kya kar rhe ho

जिसको सुबह कह  रहे हो ............क्या उसमे रह रहे हो ..............कितने उजाले लोगे तुम यहाँ ....................क्या आज ऐसा कुछ कर रहे हो .................जीवन क्या आज है कल नही ................क्या तुम मनुष्य बन रहे हो .................आलोक तो फैलता ही रहेगा यहाँ ..................क्या किसी को रोशन कर रहे हो ........................अपने जीवन का हर पल यहाँ पर ऐसे जिए ताकि लोग याद करे न करे पर आपको लगे की दुनिया को मैंने भी स्वर्ग बनाया था ...................तो आइये मिल कर कहिये सुप्रभात

dur ho rha hai

जीवन का स्वर चुप हो रहा है ...............देखिये अब सारा शहर सो रहा है .................सर्द है रातें खुद जिन्दगी की तलाश में ..................कोई मेरा अपना सपनो में खो रहा है .................. ये कैसी आरजू है ऋतु से तुम्हारी .................कोई  क्यों सन्नाटे में  फिर रो रहा है .....................आलोक जब जरूरत रात में भी तुमको ....................क्यों रिश्ता तेरा पूरब से दूर हो रहा है ...................पहले हम सब को जानना चाहिए कि हम वास्तव में क्या चाहते है ............फिर चाहे रात हो या दिन .........सब चलेगा पर अभी शुभ रात्रि

Thursday, November 29, 2012

khel

आँख मिचौली का खेल चल रहा न जाने कब से .........................कभी रात  तो कभी दिन के होते हम तब से .......................पर नींद में लाती ररत सपनो का जीवन ......................... और मिला देता है पूरब हकीकत को  सब से ............................कितना सुंदर है खेल देख लो प्रकृति का .....................कुम्हार के चाक सी प्रयास आकृति का .............तुम और कौन नही हिस्सा इसकी संस्कृति का ....................सूरज में आलोक है आया परिणाम  इसी की  कृति का ......................इतनी अद्भुत प्रकृति के खेल को अगर हम नही समझ रहे है तो फिर क्यों और किस अर्थ में हम मनुष्य है ....................अगर बुरा लगा तो कहिये ....सुप्रभात

Tuesday, November 27, 2012

raat kaisi thi

मैं क्या बताऊ रात कैसी थी .................बस शायद आप ही  जैसी थी ...................दुनिया में रहकर भी दुनिया में न रहा .......................शराब से ज्यादा मदहोश करने जैसी थी ...................
पर आलोक को मालूम है जिन्दगी ..................... एक बार मिली है फिर न जाने कब ...................पूरब की दस्तक को मन ने सुना ...................क्या कहूँ  सुबह की धूप ही कुछ ऐसी थी ....................मानव बनने के बाद सोते रहना ठीक नही हैं ...तो कहिये सुप्रभात

Sunday, November 25, 2012

jab lete ho .......................

कैसे कह दूँ कि बाहर  अँधेरा है अभी ......................क्योकि उजाला देखा इन्ही आँखों ने कभी ......................मैं तो आया हूँ यहा मुसाफिर बनकर ..........................क्या तुम वही  ये जान न गए थे तभी ..............................तो क्यों इतना अवसाद आज लपेटे हो ...................दर्द का एक दरिया आँखों में समेटे हो .................समय पर भरोसा रखो अभी आलोक .....................पूरब के कुछ ख्वाब लेकर तुम लेटे हो .....................संयम ही सबसे बड़ा दरवाजा है जहाँ से आपके लिए सब कुछ निकलेगा पर अभी तो शुभरात्रि

Saturday, November 24, 2012

mitna to hai hi

ठण्ड का आलिंगन आज बहुत फिर ...................... तन  मन को सब से  फिर छिपा रहा  ...................लड़ रहा पूरब में सूरज कोहरे से .......................संघर्ष का मतलब सबको  बता रहा .................जीवन का मतलब एक बना पिंड से ..................जो  साँसों से खुद को चला रहा ........... जो बना है  वो मिटेगा का एक दिन ................... सुख दुःख का दर्शन दिखा रहा ..................... चुकी जीवन का निर्माण किया जाता है इस लिए उसका क्षय तो होना ही है .............इस लिए आप जो भी सम्बन्ध, घर , नौकरी , शादी , जीवन बना रहे है ....उन सबका का क्षय निश्चित है इस लिए अपने द्वारा बनाये दुःख के मार्ग पर चल कर दुःख करने का कोई मतलब नही है ................तो आइये कहते है सुप्रभात

samunder ke kinare

बहुत देर हो गयी रात हो गयी ........................कुछ देर रुके क्या लो सुबह हो गयी ...............कैसे कहूँ इस दुनिया को जादू का खिलौना .......................कल गूंजी थी किलकारी आज खामोश हो गयी .................चलो कुछ देर सही बालू से खेला जाये .................बनते बिगड़ते घरौंदों को देखा जाये .......................कोई लहर भिगो देगी मेरे सपनो को ......................... चलो समुदर के किनारे बैठा जाये ........................जो वास्तव में जीना चाहता है वह समुंदर के किनारे बैठ कर सपने रचता है और वही मजबूत इरादों को साबित करता है ...................अगर है इतना दम तो चलिए बनाते है एक सपना ........................शायद आपका और अपना ................कहकर शुभ ratri

Sunday, November 18, 2012

uska bandh kar

क्यों नही आई उसकी जिन्दगी मेरी बनकर .............कल तो लगा था वही सच है सुनकर ...............आज मौत की तरह ठंडी लगी आगोश में .....................क्या था जो लुट रही थी आंख नम कर ......................क्या ऐसा लगा जो जिस्म से नही हासिल ...............क्यों नही कह सकी साँसे खुल कर ................सिर्फ आँखों की मान दिल को जान लिया ...................कैसा रहा प्रेम आलोक से उसका बंध कर .................................आसमान नीला नही हैं फिर भी जिसको देखो नीला नीला कह कर जिए जा रहा है ...............उसी तरह हर रिश्ते को सिर्फ आंख से देख कर उसकी सच्चाई नही जानी जा सकती पर अकसर रिश्ते शिकार इसी का बनते है ................शुभ रात्रि 

Sunday, November 11, 2012

deepawali manate hain

जिन्दगी आज बेकार सी लगने लगी है ,
बाज़ार में बोली बेहिसाब लगने लगी है ,
कितनी बार बदल कर देखूं  मैं तुझको ,
हर जिन्दगी में वही फिर दिखने लगी है ,
लोग कहते है आलोक होकर अँधेरे में ,
किसको बताऊँ आंखे छलकने लगी है ,
जन कर भी अन्जान नही मैं हुआ हूँ ,
अन्जाने में मौत अच्छी लगने लगी है ,
कोई नही जो ऋतु से यहाँ बच पाया हो ,
मेहँदी से सरुर में खुद न रच आया हो ,
उसका तो काम था आना और चले जाना,
दीवाली में दीपक सी आज लगने लगी है ..................आप सभी को आज से बदलने वाली ऋतु के प्रकाशोत्सव में धन्वन्तरी त्रियोदशी की शुभ कामना ............ताकि आप ऋतु का हलके कम मुने एंड गुण गुने एहसास में डूब कर बदलती ऋतु को जव्वाब दे सके .....पटाखा न चलाये ......आओ किस भूखे , गीब बच्चे को हसाए ....उसे एक रोटी या एक पेन्सिल दे आये ...................आओ फिर से नयी दीपवाली मनाये ...........

Saturday, November 10, 2012

ritu badal rhi hain

अधखिली धूप में जिन्दगी हस रही थी ,
धुंध फैला के ऋतु अपने  में मचल रही थी ,
मैं  डूबा अभिनव के  नाटक में इस कदर ,
जिन्दगी अनदिखी  कल ग़ज़ल रही थी ,
बार बार एक शांत नदी सी सामने पड़ी ,
न चाह कर आज वो थी फिर ऐसे खड़ी,
लगा लपक कर समेट लू फिर उसी तरह
अंधेरो की आज याद आ गयी कई कड़ी ,
बदल रहीये कौन सी ऋतु आज आ गयी
कल किसी के साथ आज किसे वो पा गयी
अकड़ के मर गया कोई आज फिर प्यार में  ,
बदला जमाना और ऋतु बदल के छा गयी ..................................कोई भी प्राणी बिना किसी माँ का रक्त मांस लिए नही जन्म पाता है और यही कारण है कि पूरे जीवन कोई भी प्राणी बिना किसी के सहारे के जी नही पाता ............तो जो आपके सहारे जी रहा है उसको स्वार्थी क्यों कहते हो ..............ऋतु भी तो बदलती रहती है पर क्या आप उसको दोष देते हैं ..नही बल्कि आप ऋतु के साथ जीने के लिए ना जाने कितने उपाए करते है ...........जिसे आप और हम संस्कृति कहते है या पजीर फैशन कहते है .............तो आज से ऊँगली उठाना बंद ...और कहिये शुभ रात्रि 

Friday, November 9, 2012

jindgi kisi ki nhi

हरी हरी घास पर जिन्दगी इंतज़ार में  ,
सुबह से ही न जाने किस इकरार में ,
सरपट दौड़ती मेरी सांसो का चलना ,
उसकी आंखे न जाने किस तकरार में ,
शायद मौत से मेरी अब तक उबरी नही ,
छूकर देखती मेरी परछाई कही तो नही ,
राख में कोई भी गर्मी अगर ढूंढ़ लेती ,
कुछ देर मर कर मेरे साथ चली तो नही ,
न जाने क्यों घूमती मेरे इर्द गिर्द आज ,
क्या अब तक जी रही मेरा  कोई राज ,
उसकी धड़कने क्यों बज रही बन  साज,
आलोक सा अँधेरा मिला मिटा के लाज ,
ऋतु की तरह बदल लो तुम भी खुद को ,
आज गर्म हवा हो कल बनाओ सर्द खुद को ,
लोग मिल जायेंगे काटने को समय अपना ,
मौत में सिमटी जिंदगी समझ लो खुद को ........................जो हो रहा हैं उस पर दुःख किस लिए ....जो हो रहा हैं वो गर होना ही था तो उसको समय का सत्य मान कर बस जीते जाओ .और आज जिस ऋतु से आनंद लिया हैं .कल्किसी और के हो जाओ ......................प्रकृति खुद आपको बेवफा होना सिखाती है .जिस गीता कर्म योग कहती है ....तो दुःख में ही सुख देखिये और मेरे साथ कहिये .....शुभ रात्रि


Thursday, November 8, 2012

nafrat tali

आज जिन्दगी जख्म खायी हुई मिली ,
ना जाने क्यों उसकी कमी फिर खली ,
आलोक में भी उसको अँधेरा क्यों दिखा ,
सब लुटा कर साँसे आज कहा को चली ,
सामने थी आज मगर मुद्दत का सफ़र ,
फूल बन कर मिली जो कल थी  कली,
एक चहेरा मिटा उसने दूसरा कर लिया ,
मौत को देख क्यों आज जिन्दगी हिली ,
ऋतु की तरह बन हम कहा खो  गए ,
दिल की आरजू आज फिर कैसे जली ,
तू नही वो जिसके साथ थी मैं अब तक ,
चार कंधो को पाकर हर नफरत  से टली............................जिन्दगी कहती है कि तुम एक नही कई चेहरे लगाये हो .तभी तो मैं असली वाले की तलाश में तुमको छोड़ कर जा रही हूँ .इसको मत कहो मौत ....मैं दूसरी जिन्दगी पा रही हूँ ...............शुभ रात्रि

Monday, November 5, 2012

jivan hai kaudiyo ke mol ...................

किसी को जिन्दगी मिल जाती है कौड़ियो के मोल ,
अक्सर वो मेरी उसकी बेबसी का करते दिखते तोल,
नही जानते है कि पानी तो फैला पड़ा हर कही यहा,
मीठे  पानी के सोते मिलते है जमीं को लेते जो खोल ,
गीली मिटटी में तो हर कोई उगा लेता है रोटी अपनी ,
रेत पर दिखाओ घर बसा कर  और फिर कुछ मीठे बोल ,
आसमान से पानी की आरजू कौन करती है नही आँखे ,
अपने पसीने से दाना उगा कर सच की खोल दो पोल ..............क्या आपको भी जवान ऐसे ही मिल गया है कि आपको लगता है कि जो गरीब है या जिनके पास कुछ नही है वो उनके पूर्व जन्मो का पाप है या फिर आप बचना चाहते है उस जानवर की तरह जो अपने सिवा किसी के लिए नही करता ..................आदमी कहा है ...........शुभ रात्रि

Sunday, November 4, 2012

nukkad par ...............

जिन्दगी सभी को मिलती है नुक्कड़ पर
जिन्दगी पहुच जाती है खुद नुक्कड़ पर ,
कितना भी जतन कर लो नसमझपाओगे
मौत भी खड़ी मिलती है हर नुक्कड़ पर ,
जीवन में दिल की आहट आतीनुक्कड़पर
जब वो सामने से गुजर जाती नुक्कड़पर
कितना ही वक्त गुजर जाता नुक्कड़ पर
शायद वो मुड़ कर देख ले नुक्कड़ पर ,
पता नही क्यों सन्नाटा सा है नुक्कड़पर
कुछ गम सुम सा लगता है अब नुक्कड़पर ,
लोगो ने बताया वो मासूम अब न आयगी ,
कल कोई उठा ले गया उसे नुक्कड़ पर ,
रोज ढूंढ़ता उसके निशान नुक्कड़ पर ,
उसकी हसी दौड़ती मिली नुक्कड़ पर ,
एक प्रश्न सा तैरता हवाओ में आज भी ,
क्यों लड़की मौत ही जीती है नुक्कड़ पर
मैं क्या बताऊ उलझन इस नुक्कड़ पर ,
बस एक अक्स रह गया इस नुक्कड़ पर
वो भी थी रोई बहुत इसी नुक्कड़ पर ,
परायी हुई थी मुझसे इसी नुक्कड़ पर ,
कहा छोड़ पाया था उसे नुक्कड़ पर ,
मौत के संग हो लिया था नुक्कड़ पर ,
प्रेम तो दिखाया जिन्दगी से नुक्कड़ पर
फिर दुनिया से मुंह मोड़ लियानुक्कड़पर
क्या तुम जानते हो उस पार नुक्कड़ के ,
क्यों एक शून्य सा रह जाता नुक्कड़ पर
लोग कहते  है भगवान वहा नुक्कड़ पर,
फिर रोने की आवाज क्यों नुक्कड़ पर ............................जिन्दगी में हम सब नुक्कड़ के पर न देख पाए है और न देख पाएंगे ........इसी लिए नुक्कड़ पर मौत , लड़की से छेड़ छाड़ , बलात्कार , अपहरण और फिर एक सन्नाटा नुक्कड़ पर मिलता है .........क्या आप ने नुक्कड़ को ध्यान से देखा है ..................शुभ रात्रि 

Saturday, November 3, 2012

thandak mubarak

जिन्दगी से मोहब्बत कौन कर पाया है ,
जिसने की वो कहा तक रह पाया है ,
मुझको तो मौत से मोहब्बत है उम्र भर ,
देखो आज शायद उसका पैगाम आया है
बदलती ऋतु सा उसका मिजाज ,मिला ,
कल जो ऋतु थी उसको भी आज गिला,
बोली कल मुझसे कितना लिपटे रहते थे
पर जिन्दगी की तरह ही मुझको सिला ,
मुझसे मोहब्बत करके उससे क्यों मिले ,
जीवन की  वंदना में फिर किधर चले ,
माना की मौत ही सच था मेरे जीवन का
ऋतु  फूल क्यों फिर दामन में मेरे खिले
आज आलोक मिलकर जिन्दगी से गया
मौत सी रात सर्द ऋतु की देखो ये  ह्या,
ठण्ड से अकड़ कर जो अभी गया है वहा
कल फिर वो आएगा बनकर कोई नया .......................जीवन में आने जाने का क्रम चलता रहता है  और यही कारण है कि बदलती ऋतु सुख और दुःख हमेशा देती है पर ऋतु का इंतज़ार किसको नही होता क्योकि हर ऋतु में फसलो के पकने , फूलो के खिलने , पानी की फुहारों , सावन के झूलो , किलकती धुप के स्वर है जैसे जिन्दगी में ही मौत के स्वर है पर हम जिन्दगी को जीना चाहते हा वैसे ही ऋतु का भी इंतज़ार सबको रहता है ..............गुलाबी ठंडक सभी को मुबारक .......शुभ रात्रि

Friday, November 2, 2012

karwa chauth ????????????????

आज फिर चाँद में सुरूर है ,
लगता है कोई बात जरुर है ,
मांग के सिंदूर में चमकती ,
उन की जिन्दगी का गुरुर है ,
आज भी भूखी प्यासी रही ,
पर कल से कुछ मगरूर है ,
पर  आज तो प्रियतम की है ,
जिन्दगी जो उसका नूर है ,
करवा का कारवां चला है ,
एक दिल में दो ही पला है ,
उनकी निशानी ऊँगली में है ,
परदेश में जाना उनका खला है ,
पर क्या हुआ उनका अक्स है ,
दिल के दरवाजो में एक नक्स है ,
चाँद को देख फिर निहारा उनको ,
पति से प्यारा क्या कोई शख्स है ,
आसमान के आगोश में चाँद आज है ,
तेरी पलकों में कोई फिर मेरा राज है ,
रात न गुजरेगी आज तनहा तनहा
शहनाई की वो रात आज पास पास है ...........जिस देश में इतने खुबसूरत एहसास हो पति पत्नी के लिए , अगर वह से किसी भी विवाहित महिला की सिसकी सुनाई दे तो क्या उसे चाँद में डूबी रात की ओस की तरह अनदेखा करके बस अपने में जीते रहे है या फिर महिला की करवा यात्रा के भाव को समझ कर उसे पुरे जीवन हँसाने का यत्न करे ........................आप सभी को करवा चौथ के असली अर्थ की बधाई ..................शुभ रात्रि

Thursday, November 1, 2012

kab kya kaha hai tumse

जिन्दगी मैंने कब क्या कहा तुझसे ,
जो भी मिला क्या तूने  पूछा मुझसे ,
बस चलता ही रहा एक नदी की तरह ,
अंत में खारा पानी ही मिला उस से ,
जब चला तो हीरे सी उमंग लेकर था ,
ये किस दौर ने मैला बनाया मुझको ,
अपने दामन से ज्यादा सबका देखा ,
कितने पाप से बचाया मैंने तुझको ,
कोई है जो आज बढ़ कर पकड़ ले ,
अपनी बाहों में बस थोडा जकड ले ,
शायद बहना ही मेरी जिन्दगी रही ,
मेरी मिठास पर भी थोडा अकड ले ,
शायद  ये दौर ही है आदमी का यहा,
किस के सामने दुःख ले बैठी मैं  यहा,
 यहा तो प्यास बुझाने की होड़ लगी है ,
आँचल को मैं खुद मैला कर बैठी यहा ......................क्या नदी क्या जमीं सब के दर्द को हमने अपने जीने का साधन बनाया है .................शायद इनकी गलती यह है कि इन्होने औरत का अक्स लेकर जीना चाहा....................क्या मेरी बात सही नही लग रही है .....................शुभ ratri

Wednesday, October 31, 2012

mujhko kya banaya tumne

मेरे दर्द को क्यों उकेरा तुमने ,
क्यों अपने को दिखाया तुमने  ,
कोई ख़ुशी मिली दरिया से तुम्हे ,
क्यों आँखों से आंसू बहाया तुमने ,
जमीं को दर्द देते देते आज क्यों ,
मुझे ही अपनी बातो से खोद गए ,
क्या कोई गुलाब खिलेगा कभी ,
कौन कलम आज बो गए मुझमे ,
एक बीज सा जीवन था मेरा ,
जो गिर कर भी कोपल देता है ,
क्यों पैरो से कुचल डाला तुमने ,
बस कुछ मिटटी ही तो लेता है ,
आज जान मिला जान का अर्थ ,
जब तुमने किया मुझसे अनर्थ ,
कोई बात नही स्याह में आलोक ,
अपने को उजाला बनाया तुमने ,
कह भी तो नही सकते धरती हूँ ,
हर सृजन को मैं भी करती हूँ ,
क्योकि मैं दुनिया में रहती हूँ ,
ये कैसा मुझको बनाया तुमने ,
माँ होकर भी आज कुचल गई है ,
मेरी ममता कही चली गयी है ,
किसी ने बताया है नाले के किनारे ,
माली ऐसा बीज क्यों लगाया तुमने ,
बंजर कहलाती मगर अपनी होती ,
जीती मगर अपने सपने में होती ,
अब तो जिन्दा लाश हूँ पानी में ,
मुझे साँसों बिन क्यों बनाया तुमने .........................आज न जाने कितने युवा सिर्फ इस लिए लडकियों का शोषण करते है क्योकि यह एक प्रतिस्पर्ध्त्मक खेल हो गया है .....पर वो लड़की भी इस ख़ुशी में कि कोई तो उसको पसंद करता है .....अपना सब कुछ समप्र्पित करती है ...पर परिणाम गर्भपात के बढ़ते बाज़ार और लड़कियों में बढती कुंठा जिसमे उनको विकास होने के बजये एक दर का जन्म ज्यादा हो रहा है ...........................शयद आपको यह सिर्फ एक फर्जी बात लगे पर पाने को अंदर टटोल कर इसको पढ़िए और फिर ???????????????????? शुभ रात्रि

Tuesday, October 30, 2012

aao jindgi ji le

जिन्दगी कितनी सी है ,
जिन्दगी इतनी सी हैं ,
जिन्दगी जितनी सी है ,
जिन्दगी मिटनी सी है ,
तो क्यों न मुस्करा ले ,
तुमको भी साथ हसा ले ,
कुछ तुमको भी मिलेगा ,
कुछ हमको भी मिलेगा ,
जिन्दगी चलनी सी है ,
जिन्दगी हसनी सी है ,
जिन्दगी कसनी सी है ,
जिन्दगी फसनी सी है ,
तो क्यों न इसे समझ ले ,
थोड़ी देर साथ मचल ले ,
कल किसने देखा है यहा,
आओ कुछ साथ चल ले ,
जिन्दगी आलोक सी है ,
जिन्दगी परलोक सी है ,
जिन्दगी श्लोक सी है ,
जिन्दगी मृत्यु लोक सी है ,
तो क्यों न कुछ कर ले ,
एक बार हस कर बसर ले ,
ये सच अब तो मान भी लो ,
थोडा धूप से हम पसर ले ...........................कब हम समझेंगे अपने जीवन को आज मुझे एक एस बेटी से मुलाकात हुई जिसके पिता नही थे पर न जाने उसने मुझे क्यों पिता खा और मुझे अच्छा लगा ...........क्या बेटी का सुख आपको मिला है ..शुभ रात्रि

Monday, October 29, 2012

kali

आज कली बहुत थी रोई ,
अपने में थी बस खोई खोई ,
नही चाहती थी वो खिलना ,
दुनिया से कल फिर मिलना ,
कोई हाथ बढ़ा तोड़ लेगा ,
डाली का भ्रम सब तोड़ लेगा ,
वो बेबस रोएगी जाने कितना ,
पर दर्द कौन समझेगा इतना ,
जिस डाली पर भरोसा किया ,
वही ने आज भरोसा लिया ,
खुद खामोश रही बढे हाथो पर ,
बिस्तर पर सजने दिया रातो पर ,
मसल कर छोड़ दिया नरम समझ ,
फूल तक न बनने दिया नासमझ ,
कली के जीवन में अलि नही है ,
ऐसे पराग को पीना सही नही है,
ये कैसी पहचान मिली उसको आज ,
गुलाब की कली छिपाए क्या है राज,
अपनी ख़ुशी से बेहतर कब कौन माने,
जीने की आरजू उसमे  भी कब जाने ,
जीवन का ये कैसा खेल चल रहा ,
हर डाल का फूल क्यों विकल रहा ,
क्यों नही पा रहे फूल का पूरा जीवन ,
क्यों नही कली का कोई संजीवन .....................आइये हम सब समझे कि जिस तरह लड़की को हम सिर्फ जैविक समझ कर जी रहे हैं ................क्या उनको भी कली की तरह पूरा जीने का हक़ नही है ......शुभ रात्रि 

Sunday, October 21, 2012

saanse dikhi

सभी को मेरे जनाज़े में जाने की जल्दी दिखी ,
उनको अपने घर से कुछ ज्यादा दूरी दिखी ,
मैं मातम में खुद डूबा रहा अपनी मैयत देख ,
नुक्कड़ पर चाय में डूबी मेरी कुछ बाते दिखी ,
कल मैं भूख से बेदम अपनी जान से गया था ,
आज मेरी पसंद नापसंद की होती बाते दिखी ,
कोई क्या जाने अब भी मैं धड़क रहा दिल में ,
उनके दिल से मेरी आवाज़ आज आती दिखी ,
लोग नहाकर थे लौटे मुझे छोड़कर अब वहा,
उसकी आँखों में मेरी यादे नहाते फिर दिखी ,
तडपा मैं कितना उसकी यादो में हर पल हूँ ,
रोज चादर पे सिलवटे उसके  पड़ती दिखी ,
सूनी सी डगर सी अब मांग उसकी है रहती .
लाली सिंदूर की आज उसकी आँखों में दिखी ,
माफ़ कर दो जिन्दगी आलोक की बेवफाई ,
मौत से इश्क करती शमशान में साँसे दिखी ................................आइये हम सब एक बार ये जान ले की जिसको जिन्दगी कह कर हम इतना इतर रहे हैं .वो हकीकत में मौत ही है ................पर उसके आने से पहले का नाम जिन्दगी है ........तो क्या आप जिन्दगी जी पाए या फिर सिर्फ खाने , सोने को ही जिन्दगी समझ बैठे है ....किसी के लिए जी कर देखिये जानवर से थोडा अलग पहचान बनाइए ..शुभ रात्रि

Saturday, October 20, 2012

ek kilo rishta

आज एक किलो रिश्ता ,
खरीद कर लाया हूँ ,
पचास किलो शरीर में ,
किसी को रखने की ,
फुर्सत की नही मिलती ,
इसी लिए बाज़ार से ,
जीने के लिए उठा लाया हूँ ,
ये देखो एक किलो रिश्ता ,
तुम्हारे लिए भी ले आया हूँ ,
बात भी डालो कितना दूँ ,
क्या कुछ भी नही चाहते ,
फिर मानव क्यों हो बताते ,
सिर्फ जिस्म में गोश्त ही नही ,
एक भावना भी खेलती है ,
जो बनती है मुझको यहाँ ,
पिता , चाचा , मामा , फूफा ,
दादा , नाना ,और पति , प्रेमी भी  ,
तुम भी तो बनती हो यहाँ ,
माँ , चाची. मामी , बुआ ,
दादी , नानी और पत्नी प्रेमिका भी ,
पर आज हम क्यों भाग रहे है ,
दिन रात जाग रहे है ,
कहा और कब खो गए रिश्ते ,
क्या मिल पाएंगे कभी रिश्ते ,
सुना है अब कंपनी भी बेचती है ,
कुछ रगीन दुनिया खिचती है ,
और हम फिर से बिकने लगे ,
आदमी में जानवर दिखने लगे ,
देखो आज मैं रिश्ते ताजे लाया हूँ ,
आओ जल्दी ले लो दौड़ो दौड़ो ,
बड़ी मुश्किल से एक किलो पाया हूँ ,
चाहो तो काट कर खा लो या ,
पी लो एक गिलास में भर कर ,
पर रिश्ते की खुराक लेना न छोडो ,
इस दुनिया को फिर न मोड़ो ,
वरना जानवर हम पर हसने लगेंगे ,
फब्तिय हम पर कसने लगेंगे ,
कैसे कहेंगे हम है इनसे बेहतर ,
जब पाएंगे हमको कमतर ,
तो लो अब मुह न मोड़ो रिश्तो से ,
जी   लो थोडा  अब रिश्तो से ,
कब तक चलोगे किश्तों से ,
आओ हमसे कुछ रिश्ते ले लो ,
रिश्ते को रिसने से तौबा कर लो .........................रिश्तो को दीमक क्यों लग रही है ...............हम रिश्ते से ज्यादा मैं में डूब कर बस एक शरीर से जय कुछ नही रह गए .....शुभ रात्रि

Friday, October 19, 2012

rishta

लोग मुर्दे पर पैसे चढ़ा गए ,
कितना चाहते बता गए ,
दिल में दया भी है उनके ,
भिखारी को आज बता गए ,
भूख से बिलखते बच्चे को ,
जनसँख्या का दर्द बता गए ,
एक पल भी नही था पास में ,
बस पैसे से ही रिश्ता बता गए ,
खर्च तो करता हूँ सब कुछ ,
कितने खोखले है बता गए ,
एक अदद रोटी क्यों बनाये ,
लंगर में जाने को बता गए ,
आलोक को खरीदने का हौसला ,
असमान को जाने क्यों बता गए ,
मुट्ठी में बंद कौन कर पाया है ,
आलोक को बिकना बता गए ,
कितनी सिद्दत से सजाई दुनिया ,
दुकान का मतलब वो बता गए ,
रीता रीता सा रहा दिल आज फिर ,
खून बिकता है वो भी बता गए ,
आंसू भी बिकता है अब यहा पर,
सच को मेरे वो नाटक बता गए  ,
इतनी लम्बी जिन्दगी में कौन अपना ,
बिकती साँसों का राज बता गए ,
कोई खरीद कर जला दो मुझको ,
शमशान में लकड़ी मुझे दिखा गए ,
जाना है उनको  भी यहा से एक दिन ,
मुझको कफ़न खरीदना सीखा गए ...........................पता नही इस दुनिया में हम मनुष्य बन कर किस मनुष्य को ढूंढते है ..........................पर अब तो सब कुछ पैसा से तौला जा रहा है .................क्या हमें रुकना नही चाहिए .......शुभ रात्रि

Wednesday, October 17, 2012

jindgi meri chita me lgi

इतना जी चुका जिन्दगी तुझको ,
चलो कही से मौत खरीद लाये ,
रोज रोज साँसों के दौर से ऊबा ,
कुछ देर तो सुकून के कही पाए ,
याद है कल जब मैं भूखा था यहाँ ,
सब मौत की तरह खामोश थे वहा,
मैं दौड़ा हर तरफ पानी के लिए ,
पर सारे कुओं का पानी था कहा
जो हो रहा भगवान ही तो कर रहा ,
फिर दुःख में इन्सान क्यों मर रहा ,
क्यों भागते सब कुछ पाने के लिए ,
संतोष से क्यों नही अब कोई तर रहा ,
मेरे घर में अँधेरा गर्भ की तरह ही है ,
क्या सृजन का प्रयास इस तरह ही है ,
भगवान के घर देर है पर अंधेर तो नही,
पर गरीब बना कर ये न्याय तो नही है ,
अब थक गया आलोक चिराग जला कर ,
शांति शायद मिलेगी मिटटी में मिला कर ,
आओ रुख कर ले अपने जीवन के सच में ,
लोग लौट पड़े आग चिता में मेरी लगा कर ................................आदमी की आदमी के लिए बेरुखी और अपने लिए ही जीने की आरजू ने जानवरों को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि अब वो मानव किसको माने........शुभ रात्रि




Tuesday, October 16, 2012

nav ratri me aurat

दुर्गा कह कर मजाक उड़ा रहे है ,
पूरे देश हम औरत जला रहे है ,
कितने ही नव दुर्गा कहते तुमको ,
बलात्कारी फिर कौन होते जा रहे है ,
कन्या तो देवी का रूप कही जाती है ,
माँ की कोख में ही क्यों मारे जा रहे है ,
कितना झूठ  जीने  की हसरत तुममे ,
रोज घुंघरू ही क्यों बजते जा रहे है ,
कितने ही कह जायेंगे आलोक बरबस ,
तुम क्यों महिसासुर बनते जा रहे हो ,
रह तो जाने दो कम से कम नव दुर्गा ,
नव महीने उसके ही छीने जा रहे हो ,
कल जब काली न दुर्गा मिलेंगी तुम्हे ,
फिर ये व्रत किसका रखे जा रहे हो ,
कभी तो शर्म करो अपनें दोमुह पर ,
किसका आंचल फाड़े जा रहे हो ,
आज माँ का दिन सच कह लो उससे ,
कल फिर ये शब्द भूले जा रहे हो ,
जय माता दी अपने  दिल में बसा लो ,
क्या उसको हसी फिर दिए जा रहे हो .......................अगर इस देश में नारी के लिए इतना बड़ा व्रत रखने के बाद भी औरत की संख्या कम हो रही है या फिर उसके साथ बलात्कार हो रहा है तो ऐसे नवरात्री को हम क्या करने के लिए मना रहे है ....................कम से कम नव दिन तो औरत में सिर्फ दुर्गा देखिये

Monday, October 15, 2012

mar rha hai .................

न जाने क्यों ,
मन नही लग रहा है ,
लगता है आज फिर ,
कोई अंदर जग रहा है ,
बोलता नही मगर ,
जाने क्या चल रहा है ,
ये कैसी है अकुलाहट ,
जो वो मचल रहा है ,
रात का अँधेरा ,
क्यों नही कट रहा है ,
भोर का उजाला ,
क्यों पीछे हट रहा है ,
आलोक क्यों नही है ,
ये कौन भटक रहा है ,
वो कौन जो गया है ,
कल तक निकट रहा है ,
आकर भी न जान पाए ,
किससे जीवन लिपट रहा है ,
साँसों को बेच तू भी  ,
मौत को ही झपट रहा है ,
पाया भी क्या है खोकर ,
हर झूठ  बदल रहा है ,
जलती चिता में देखो ,
तू मिटटी सा निकल रहा है ,
जिन्दगी को जो कभी भी ,
ना अपनी  समझ रहा है ,
नाम रहा है उसकी का ,
जो किसी के लिए मर रहा है ...........................अगर हम जानवर से ऊपर उठाना चाहते है तो आदमी को किसी के लिए जीना आना चाहिए ....................वरना हम को मनुष्य कौन और किसके लिए कहा जायेगा ..............शुभ रात्रि

Sunday, October 14, 2012

chinti

चींटी की तरह कुचले जा रहे हो ,
मेरी लाश से होकर कहा जा रहे हो ,
मैं भी तो निकली थी एक सपना लिए ,
मेरी हकीकत को भी मिटा जा रहे हो ,
सिर्फ मुझको मसलने के लिए ही क्यों ,
मेरे अस्तित्व तक को  नकारे जा रहे हो ,
क्यों नही है दूर तक जाने का मेरा सच ,
बस अपने को अपनों में पुकारे जा रहे हो ,
मालूम है मेरे भी अपने रोते है न आने पर ,
मेरी शाम को क्यों आंसू दिए जा रहे हो ,
कहा ढूंढे मेरे होने के निशान इस दुनिया में ,
तुम हत्यारे होकर भी क्यों मुस्कारे रहे हो ,
मेरी नियत यही तो न थी कि कोई मारे,
अपनी ख़ुशी में मेरी ख़ुशी क्यों जला रहे हो ,
मैं  भी हसने के लिए तुझे होकर ही गुजरी ,
अपने दामन से क्यों मुझे रगड़े जा रहे हो ,
कब तक चींटी कह कर मुझे मिटाते रहोगे ,
औरत को आज  ये क्या दिखाते जा रहे हो ,
मेरी ही तरह तो है तेरी माँ भी घर में देखो ,
फिर मुझे मादा कह क्यों जलाते जा रहे हो ,............................................आइये हम समझे इनका दर्द और कुछ बदल कर दिखाए इनका भी कल और आज ...........................आखिर ये है तभी तो है मेरा आपका वजूद .....................शुभ रात्रि

Thursday, October 11, 2012

usko pana

क्यों लिखूं कुछ ऐसा जो ,
दिल की कहानी कह जाये ,
क्यों दिखाऊ कुछ ऐसा जो ,
आँखों से बह निकल जाये ,
मेरे घर में अँधेरा ही रहा ,
आंगन में उसके धूप खिली ,
अकेले जीवन पे जाने कब वो,
राह में मुझको खड़ी मिली ,
हर बात को मेरे काँटों सा माना,
रिश्ते को कब किसने मेरे जाना ,
रह गया दूर अँधेरे से आलोक ही ,
स्मृति शेष है अब उसका आना ,
बता देना पश्चिम में गया हूँ मैं ,
अब मुश्किल है लगता तुरंत पाना ,.............................कौन है  वो जानते हैं ??????????????? जी जी मेरी सांसे जिनको मैं समझ ही नही पाया और अब अपने अंत के लिए तैयार हूँ ........क्या आपको अपने बारे में पता हैं ?????????????/शुभ रात्रि

Wednesday, October 10, 2012

basera

किस को सुनाऊ दर्द ,
सर्द है चेहरा मेरा ,
किसको कहूँ खुदगर्ज,
गर्ज पर नही सवेरा ,
मिलता नही जो चाहो ,
न चाहा साथ हो तेरा ,
मगर रास्ते कटते नही ,
नही शमशान में डेरा ,
आलोक न हो जहाँ ,
क्यों न हो वहां अँधेरा ,
जिन्दगी जब तुझको चाहा ,
मौत का पसरा बसेरा................................ 

Saturday, October 6, 2012

koi prasang to nhi hai

क्यों इतना मन अशांत ,
शांत सागर सा तो नही है ,
क्यों थक रहे है पैर आज ,
कल सांसो का अंत तो नही है ,
चले साथ उमंग को लेकर ,
देकर उम्र कही ये भंग तो नही है ,
क्या लाये थे तो लेकर जाये ,
आये यहा जो कोई जुर्म तो नही है,
मिल कर नही चले तो क्या ,
अकेले थे आये ये जंग तो नही है ,
आलोक की चाहत अंधेरो में ,
अंधेरो में रहना कोई ढंग तो नही है ,
मैं जो छोडू निशान को अपने ,
अपनों में रहना कोई रंग तो नही है ,
अक्सर तुम आते यादो में मेरी ,
मेरी यादो में रहना कोई संग तो नही है ,
अक्सर मुझे कोई सोता मिला है ,
सपनो में आना कोई प्रसंग तो नही है ....................................कुछ अमूर्त लिखने की चाहत में आज अचानक अपनी तबियत के ख़राब होने पर मैंने यह लाइन लिखी ...................पता नही मुझे अक्सर यही लगता है की एक जानवर अपने पराये लोगो घर सबकी पहचान कर लेता है पर हम मनुष्य होकर भी क्यों ऐसे नही हो पाए एक देश तक के होकर नही हो पाते ??????????? क्या आप देश के लिए सोच पाए .........अखिल भारतीय अधिकार संगठन
 

Friday, October 5, 2012

andhere me kyo rhe

क्यों इतनी है धूप,
छाँव की आस नही ,
क्यों प्यासा है मन ,
नीर क्यों पास नही ,
बादल है चहुँ ओर,
खेत क्यों सूख रहे ,
अनाज भरे मठोर,
बच्चे क्यों भूखे रहे ,
आलोक पास में सबके ,
फिर अँधेरे में क्यों रहे............................

Thursday, October 4, 2012

jindgi bhi udhar ki rhi

जिन्दगी ले कर आया हूँ ,
जिन्दगी देकर जा रहा हूँ ,
इस दुनिया से  क्या कहूँ ,
लाश बन कर जा रहा हूँ ,
लोग कह क्यों रहे स्वार्थी ,
हा अर्थी ही सजा रहा हूँ ,
क्या मैं साधू नही लगता ,
जब सब छोड़े जा रहा हूँ ,
आलोक देखते थक गया ,
अँधेरे से इश्क लड़ा रहा हूँ ,
किलकारी-बोलने का सफर ,
तेरी यादो में छिपा रहा हूँ ,
कल रास्तो का सन्नाटा देखो ,
मेरे निशान न ढूंढ़ना कभी ,
ये तो दुनिया का दस्तूर था ,
आना है किसी और को अभी ........................................आज सतर्कता विभाग के अधीक्षक श्री वी ड़ी शुक्ल ने जब मुझसे पूछा कि मैं क्या सोच कर जिन्दगी में इतने कठिन रास्तो पर चल रहा हूँ तो मैंने उनसे कहा कि जब मैं जान लेकर इस दुनिया में आया और एक दिन ये दुनिया मेरी जान तक ले लेगी ....तो इस दुनिया से कैसा लगाव ............जब जान तक मेरी नही रहगी तो कौन और ???????????????? सोचिये और फिर सोचिये .....बस सोचिये कि एक दिन आपको अपनी जान तक इस दुनिया में छोड़ जानी हैं .................तो ...................शुभ रात्रि

Tuesday, September 18, 2012

andhere me

सांसो के फरेब में कब से पड़ गए ,
आज सच कहने से भी डर गए ,
किस लिए किसको छोड़ रहे हो ,
जिन्दा रहकर ही फिर मर गए ,
वो देखो रास्ता जिस पर चले थे ,
आज क्या हुआ जो कदम हिल गए ,
इतना किसको दिखाने की कोशिश,
जो आये थे यहा वो भी निकल गए ,
आलोक में जी लो एक पल को यहा,
अँधेरे में जाने कितनेयहा फिसल गए ..........................क्या आप सब इस देश को बचने के लिए पैदा हुए है या फिर अपने को सिर्फ मानव समझ कर यहा रहने वाला किरायेदार समझ कर जी रहे है ..आर जानवर से हटकर कुछ करने का जज्बा है तो कीजिये अपने देश के लिए एक आन्दोलन जो बना दे हम सबको एक मानव जो भारतीय कहलाया  ..............शुभ रात्रि www.internationalseminar.in  

Monday, September 17, 2012

aadmi to ban lo

हर मोड़ पर कौन मिलता है ,
सिर्फ पीछे वाला ही छिपता है ,
फिर पूछिये उनसे पता अपना ,
आँख वाले को कब दिखता है,
कभी हसकर कभी रोकर कहिये ,
दिल है तेरा मेरा फिर बिकता है
कपडे की तरह ही तो बदले  है ,
प्रेम अपनी रोज इबारत लिखता है,
आज हम सब को मिल कर यह समझना होगा कि भारत हमारा उतना ही है जितना संसद में बैठे लोगो का .............क्यों हम सब रोज उनका कहना मान के अपने को प्रजतान्त्रितिक गुलाम बनाते जा रहे है .................जीवन जब एक बार मिलता है तो क्यों आप ऐसे जीना चाहते है जैसे आप  के गली का अनजाना जानवर  ........क्या आपको मनुष्य बन कर जीना बिलकुल पसंद नही ........काश आप भी ................शुभ रात्रि www.internationalseminar.in .
 

Sunday, September 16, 2012

kal kisa hoga

मेरे दर्द में जो शरीक था ,
वही मेरा  बड़ा रकीब था,
जाने क्या उसको नाम दूँ ,
कितनो का वो हबीब था ,
जिन्दगी क्यों रोई फिर से ,
यह तो कभी से नसीब था ,
तन्हाई का मुझसे मिलना ,
जाने क्यों कुछ अजीब था ,
समय जो गुजरा मुझसे ,
न जाने कुछ बेतरतीब था ,
सवेरा होगा भी या नहीं ,
क्या वो इतना खुशनसीब था .....................पता नही हम आज सरकार के रुख को देखते हुए यह सोच सकते है कि एक सामान्य भारतीय कैसे अपना जीवन कटेगा क्योकि सरकार को अपने लिए महंगाई का एहसास है पर हमारे लिए वह एक कसाई से बेहतर नही है ...................आप जागिये वरना एक जानवर से ज्यादा कुछ नही इस देश में रह जायेंगे .शुभ रात्रि
 

Wednesday, September 12, 2012

maut ke pal me .......................

क्यों न खेंलू अपनी सांसो हर पल ,
कोई तो है जो सब सहता मुझको ,
तुम इल्जाम न लगाओ दिल का ,
धड़कन खुद दौड़ती रहती हर पल ,
मै तो सिर्फ अपनी जिन्दगी जिया ,
तुम खुद ही चली थी मेरे संग कल ,
अब जब बाँहों में समेटा आलोक मैंने,
जिन्दगी सिमट गयी मौत के पल में ............................जीवन के साथ साथ मौत चलती है पर एक बार मौत जब अपनी जिन्दगी जीने के लिए अंगड़ाई लेती है तो जिन्दगी खुद से ऊब जाती है ...............यानि जब भी आप से कोई ऊब जाये तो समझ लीजिये मौत और जिन्दगी का खेल शुरू हो गया ...............चाहे वह संबंधो का खेल हो या फिर सांसो का ................शुभ रात्रि

Monday, September 10, 2012

dekh lo khud se

हर कोई फरेब करता रहा यह खुद से ,
मुझसे उसने कर भी लिया तो खुद से ,
जान कर अंजान रहने की आदत उनकी ,
मौत मैंने ही बुला ली आज क्यों खुद से ,
उन्हें सिर्फ मुस्करा कर किसी का बनना ,
क्या करें जब आप मरना चाहे खुद से .................................. आदमी की तलाश में आप निकालिए तो सही ...हो सकता है पूरी उम्र हाथ खली ही रह जाये .....शुभ रात्रि

Thursday, September 6, 2012

ye unka parihas hai

माना की आज मन हताश है ,
पर बंजर में भी एक आस है ,
चला कर तो एक बार देख लो ,
अपाहिज में चलने की प्यास है ,
कह कर मुझे मरा क्यों हँसते,
यह भी लीला उसकी रास है ,
लौट कर आऊंगा या नही मैं ,
क्या पता किसको एहसास है ,
लेकिन ये सच कैसे झूठ कहूँ ,
मौत के पार ही कोई प्रकाश है ,
आओ बढ़ कर उंगली थाम लो ,
हार कर भी मुझमे उजास है ,
पागल मुझको कहकर खुद ही ,
देखो आज वो किसकी लाश है ,
आज कर लो जो मन में है कही ,
जाते हुए न कहना मन निराश है ,
सभी को नही मिलता आदमी यहा,
आज जानवरों का यही परिहास है ,....................आइये कुछ देर कही यह सोच कर देखे कि हम को सोने से पहले सुबह उठने की जितनी आशा है ..क्या जीवन में असफलता और हरने के बाद भी उतनी आशा है ............क्या ऐसे किसी अधिकार को आप लड़ रहे है जो आपसे दूर है तो आइये इस अंतर राष्ट्रीय संगोष्ठी में अपनी बात सुनाइए  www.internationalseminar.in ........... शुभ रात्रि

Monday, September 3, 2012

beej kaun sa bo tum rhe ho

दर्द कुरेद कुरेद कर मेरा ,
बीज कौन सा बो तुम रहे हो ,
बहते आंसू  को नीर समझ ,
पाप कौन सा धो तुम रहे हो ,
पथराई आँखों में झाँको तुम ,
हीरा कोईअब खो तुम रहे हो ,
मै क्यों तम से भागूं अब तो ,
अंतस में दिल जी तो रहे हो ,
आलोक जो खोया तो क्या  ,
सपनो का यौवन जी तो रहे हो 
अब मन न दुनिया में रहता ,
जी जी कर तुम मर तो रहे हो ,
किसे सुनाऊ सौ बाते दर्द की ,
सब में खुद को ही देख रहे हो ,
आज मिले वो बनाने वाला जो ,
पूछूं खेल कौन सा खेल रहे हो ,
मै भी तो था कुछ पल धरा का ,
धर धर के क्यों कुचल रहे हो ,
तोड़ के मेरे हर एक सपने को ,
दिल को दर्पण सा छोड़ रहे हो ,
बटोर नही पाउँगा अब ये सब ,
हर टुकड़े क्यों फिर जोड़ रहे हो ,.................................किसी के साथ रहना और उसका साथ छोड़ देना सबसे आसन काम है ........पर आज मुझे वह हिरन का झुण्ड याद आ रहा है जिनको दूर से देखने पर एक बड़ा समूह सा लगता है ..पर एक शेर( दुःख या समस्या ) के आने पर हिरन के अकेले होने की कलई खुल जाती है , बहुत से लोग कहेंगे की आप तो लिख कर बता लेते है पर वो  क्या करे जो सिर्फ घुट घुट कर जी रहे है ........................

Sunday, September 2, 2012

chinti ki trah tumko bhi

बादल फटने पर कुछ लोग ही मरते है ,
पर आज तो दिल ही फट गया है मेरा ,
क्या कोई है जो गिन कर बता दे आलोक ,
कितने मरे जो कल तक जिया करते थे ,
आँखों में  पानी जरुरी कितना जनता हूँ ,
पर पानी बहा कर ही हस लिया करते है ,
कह कर निकल गए सब आबरू मेरी लूटी,
इज्जत वाले ही दाग समेट लिया करते है,
क्यों साथ दे तुम्हरा जिन्दगी मेरी अपनी है ,
बस रास्ता काट लेने को बात किया करते है ,
जब न पैदा न मरेंगे कभी भी साथ साथ कोई  ,
चीटी के एहसास में तुमको मसल दिया करते है ...............शुभ रात्रि

ham to sambhal gaye

आज लोग यह कहते मिल गए ,
क्यों मेरे जीवन के तार हिल गए ,
कल तक हमको एहसास था अपना ,
आज क्यों अंतस से विकल गए ,
आप अपने तो कब दिखयेंगे यूँ ही ,
हम तो पानी थे बस मचल गए ,
आपकी जिन्दगी खाक हो रही तो ,
हम मजा लेकर फिर सम्भल गए ...................................आज लगा सब झूठ है ....खास तौर पर रिश्ता सिर्फ रिस रहा है चारो तरफ .......................

Thursday, August 30, 2012

mohabbt tujhe ho gai hai

न जाने कितनी आँखे रोती रही ,
और मौत मेरे संग सोती रही ,
कब पसंद आई मोहब्बत उनको ,
तन्हाई कमरे में अब होती रही ,
कितने बेदर्दी से निकाला घर से ,
सांस न जाने कहाँ खोती रही ,
मेरी प्रेम कहानी का अंत देखो ,
मौत जल कर जिन्दगी ढोती रही ,
मेरी राख को भी नदी में बहा कर ,
मिटटी में कोई बीज फिर बोती रही,
ये क्या आलोक को सिला मिला उनसे ,
मौत को देख उनकी मौत होती रही ,................शुभ रात्रि 

Wednesday, August 29, 2012

mohabbt

आज फिर क्यों आँखे नम है ,
भीड़ में कोई चेहरा कम है ,
कितना भीगा आलोक से जीवन ,
फिर भी अंतस में क्यों तम है ,
रोज नींद कहकर क्यों सुलाती ,
मौत बता तुझको क्या गम है ,
कल तक दो जीवन जो साथ रहे ,
ठहाको में उनके भी सम है ,
कहा छीन कर ले गई आज तू ,
जब दो शरीर में एक ही हम है ,
इतना सन्नाटा उसको क्यों पाकर ,
लाश को पा मौत अब गई थम है .....................शुभ रात्रि

Tuesday, August 28, 2012

mai ho to hun charo tarf tere

जीवन जितने भी अर्थो में रही ,
मौत का ही विकल्प था सही ,
साँसे न जाने कहा कहा घूमी ,
पर थक कर ना कही की रही ,
कितने दिनों तक क्या ना कहा ,
पर वो आवाज़ है ही नही कही ,
एक तस्वीर भी जो बसी मन में ,
चिता ने  उसको भी छोड़ा नही ,
इतनी नफरत क्यों जिन्दगी से ,
मौत कहूँ तो तू नाराज तो नहीं ......................शुभ रात्रि

Monday, August 27, 2012

mujhe tumse mohhabt ho gai hai

कितनी शिद्दत से इंतज़ार किया तूने मेरा ,
देख तेरी खातिर जिन्दगी को छोड़ आया ,
बंद आँखों में है भी तो सिर्फ तस्सवुर तेरा ,
मौत हर शख्स को सुकून तुझमे ही आया ,
अब तो खुश हो जा मै किसी को न देखता ,
हर किसी से दूर सिर्फ तेरा गुलाम बना गया ,
कमरे  में मेरी जगह रहती अब खाली खाली ,
सच मान मैं शमशान में तेरे ही लिए बस गया ...............शुभ रात्रि

Monday, August 20, 2012

samajik janwar manushya

तन्हाई से निकल कभी जब शोर का आंचल पाता हूँ ,
 समंदर की लहरों सा विचिलित खुद को ही पाता हूँ ,
निरे शाम में डूबे शून्य को पश्चिम तक ले जाता हूँ ,
भोर की लाली पूरब की खातिर भी मैं  ले आता हूँ ,
पर जाने क्यों मन का आंगन सूना सूना नहाता है ,
पंखुडिया से सजे सेज तन मन  को कहा सुहाता है ,
तुम नीर भरी दुःख की बदरी मै बदरी ने नाता हूँ ,
तेरे जाने की बात को सुन  कफ़न बना मै जाता हूँ ,
एक दिन न जाने क्यों आने का मन फिर करेगा ,
पर क्या जाने भगवन मेरे दिल उसका कब हरेगा ,
मौत यही नाम है उसका आलोक के साथ मिली है ,
जिन्दगी की तन्हाई से अब तो साँसों का तार तरेगा ,................................जितना पशुओ का समूह एक साथ दिखाई देता है और जब कोई हिंसक पशु आक्रमण करता है तो सब अपनी जान बचने में लगे रहते है .वैसे ही आज के दौर में मनुष्य देखने में सबके साथ है पर अपनी जिन्दगी की हिंसक ( भूख , प्यास , महंगाई , बेरोजगारी , आतंकवाद ) स्थिति आने पर वह बिलकुल ही अकेला होता है ...................सच में मनुष्य एक सामजिक जानवर से ऊपर नही .....................

Sunday, August 12, 2012

adhikar kab milega

मेरी मौत के बाद जब खाना मिलेगा ,
कोई भूखा हो उसका ओठ खिलेगा ,
जिन्दा में मैं खुद ठोकर खाता रहा ,
मरने पर कोई चार कंधे पर चलेगा ,
भगवान के नाम पर  नंगे को देखो ,
छाती की हड्डी देख दिल तक हिलेगा ,
भगवान की मर्जी का कैसा ये खेल ,
बंद दरवाजे का राज कब तक खुलेगा ,
किसी तरह जी ले पशु से इतर हम ,
ये अधिकार हमको कब तक मिलेगा |....................हम सब भगवान पर इतना भरोसा करते है कि मनुष्य होकर भी हम पशु की तरह मर जाते है .पर हम कहा यह समझ पाते हैं कि मानव के उन रूपों का भगवान क्यों साथ दे रहा है जो रावन है .क्या आपको अपने अधिकार के लिए नही लड़ना चाहिए ,डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संतान ,

Saturday, August 11, 2012

ghar ka chulha jalta

हर कोई मेरी आँखों का पानी छीनता रहा ,
फिर हस उनको ही मेरे आंसू कहता रहा ,
पहले तिल तिल कर जलाता रहा  मुझको ,
लाश कह कर मुझको मिटटी में मिलाता रहा ,
बेवजह अपनी ख़ुशी में मुझको जला डाला ,
उन लकड़ी से किसी के घर का चूल्हा जलता ,
आलोक ढूंढा भी तो चिता की उठती आग में ,
पूरब को देख लेता तो मैं रोज वही मिलता ............................क्यों हम ऐसा कर रहे हैं  क्यों हम एक दूसरे के लिए जीने की बात करके सिर्फ छलते है .जिन्दा आदमी को लाश बना देता है और हर आशा को मार देते है ...क्या यही भाई चारा है हमारा ..................डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन

mujhe lash hi samjh lo

मौत अपनी जिन्दगी मुझमे तलाशती रही ,
अँधेरे की आरजू रौशनी को निहारती रही ,
रुक गए कदम शमशान की तरफ जाकर ,
कोई नही था साये को आँख पुकारती रही ,
आलोक कब आलोक का मतलब समझा है ,
चिराग के नीचे जिन्दगी धिक्कारती रही,
अब तो कोई बढ़ कर ऊँगली पकड़ ले मेरी  ,
गिर कर गिराने की आरजू क्यों सजाती रही,
एक दिन न चाहने वाली मंजिल आ जाएगी ,
क्यों जिन्दगी ही तिल तिल करके मारती रही ......................................जब भी जिसके लिए जीने का मन करे तो पुरे मन से जिए .......क्योकि लाश भी चार कंधो पर ऐतबार करके शमशान तक पहुच जाती है ...........तो जिन्दा आदमी के साथ दगा क्यों ?????????????????डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन ,

Saturday, August 4, 2012

kash meri dist ban jati

ऐसा नही कि तेरे सीने मे दिल नही ,
पर दिल में भी दिमाग है ,
और ऐसा भी नही कि सीने में आग नही ,
पर तेरी आँखों में हया का दाग ,
बढ़ कर कैसे कह दे मै तेरा दोस्त हूँ ,
 इस देश में दोस्त ही हमराज है ,
मान भी जाऊ अगर तेरी इन बातो को ,
तन्हाई में साँसों की अपनी कुछ बात है ,
आओ सुना दू तेरे दिमाग को दिल के शब्द ,
सच मानो आज हो जाओगी निः शब्द  ,
दोस्त कहने में इतनी देर लगा दी तुमने ,
देखो मेरी  चिता में आग खुद लगा दी तुमने .............................क्या आप ही मेरे दोस्त नही है

murda nhi hilta hai

कौन कहता है मरने के बाद स्वर्ग ही मिलता है ,
नरक की तरह जीने वालो का नसीब चलता है ,
मेरी न मानो तो जाकर शमशान को देख लो ,
मुर्दा  कब जल कर भी आलोक कभी हिलता है ................. क्या आप जिन्दा है तो स्वर्ग आप यही बना सकते है ...............नरक तो बना ही ????????????????/ डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Saturday, June 16, 2012

vikas???????????????????

विकास का भारत ???????????????
सड़क के किनारे ,
भारत माँ चिथड़ो में लिपटी ,
इक्कीसवीं सदीं में ,
जा रहे देश को ,
दे रही चुनौती ,
खाने को न रोटी ,
पहनने को न धोती ,
है तो उसके हाथ में ,
कटोरा वहीं ,
जिसके आलोक में ,
झलकती है प्रगति की ,
पोथी सभी ,
किन्तु हर वर्ष होता है ,
ब्योरो का विकास ,
हमने इतनो को बांटी रोटी ,
और कितनो को आवास ,
लेकिन आज भी है उसे ,
अपने कटोरे से ही आस ,
जो शाम को जुटाएगा ,
एक सूखी रोटी और ,
तन को चिथड़ी धोती ,
पर लाल किले से आएगी ,
यही एक आवाज़ ,
हमने इस वर्ष किया ,
चाहुमुखीं विकास ,
हमने इस वर्ष किया ,
चाहुमुखीं  विकास ............................ देश में फैली गरीबी के बीच न जने कितने कटोरे से ही अपना जीवन चला रहे है जब कि देश के नेता विकास का ढिंढोरा पीट रहे है .क्या आप को ऐसा भारत नही दिखाई दिया ...डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Wednesday, June 13, 2012

yaad

मेरी आवाज अब कुछ दूर जाती नही है ,
क्या मेरे देश को मेरी याद आती नही है ,
बंद सलाखों में उम्र भर जिन्दगी तेरे लिए ,
माँ के आँचल की खुशबु सांसे पाती नही है .......................................आज भी पाकिस्तान में बंद देश के जवानों क मेरा शत शत नमन .कितने बेबस है हम की सरकार उनके लिए कुछ नही कर रहीजिनका कसूर सिर्फ इस देश से प्रेम था .................देश की इसी अनदेखी ने आतंकवाद को बढ़ावा दिया .........अखिल भारतीय अधिकार संगठन .......सुप्रभात

andhera hamara swabhav hai

अंतस के तमस में ही दिल चल पाता है ,
गर्भ के अंधकार से जन्म कोई पाता है
नींद भी आती स्वप्न भी आते रातो में ,
कालिमा से निकल सूर्य पूरब में आता है ............................
अंधकार हमारा स्वाभाव है और प्रकाश हमारा प्रयास ....कोई भी दीपक अँधेरा नही फैलाता पर  दीपक के बुझते  ही  अँधेरा खुद फ़ैल जाता है ..अणि हमको अच्छे समाज से लिए निर्माण  करना है क्यों की गलत समाज तो हमेशा से ही है .......................शुभ रात्रि अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Tuesday, June 12, 2012

jindgi na milegi dobara

कितनी सुबह कितनी बार आएगी ,
और तुमको  सोते से जगा पायेगी ,
पश्चिम को कोसना छोड़ दे आलोक ,
जिन्दगी आदमी फिर बन न पाएगी ...................... हम जो भी कर रहे है उसमे रोज यह सोचिये कि खाना , कपडा , प्रजनन , और आवास कि व्यवस्था ( जानवर भी करते है ) के अलावा दूसरो के लिए हम कितना जी पा रहे है ( जानवर दूसरो के लिए नही जीते है और अपने सामने शेर को शिकार करता देखते है पर खुद को बचाने में लगे रहते है ) यही अधिकारों कि रक्षा का मूल मन्त्र है ....सुप्रभात , अखिल भारतीय अधिकार संगठन

aalok milta nhi baar baar

करोडो तारे मिलकर सूरज नही बन पाते है ,
हर रात में सुबह के ही तस्सवुर आते है ,
तुम भी बन कर देखो तारो से इतर जीवन ,
ये मौके बार बार आलोक मिल नही पाते है | ...............................शुभ रात्रि या हम मानव होने का पूरा मतलब समझ रहे है ??????????? खाना तो चीटी भी कल की चिंता में बटोरती है | अपना घोसला तो चिडिया भी बनाती है | अपने बच्चो की रक्षा और उन्हें पैतरेबाजी तो हर जानवर सिखाता है | फिर हम मानव क्यों है ???????????? थोडा यही सोचते हुए सोइए आज ......अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Monday, June 11, 2012

roshni ki talash

कितना हैरान मिला खुद में आदमी ,
न जाने क्या तलाशता मिला आदमी ,
एक टुकड़ा रौशनी ढूंढता जिन्दगी में ,
अँधेरे से गुजरता रहा आलोक आदमी .. ,,,,,,,,,,,,,जि.....................न्दिगी.......................ऐसा क्यों हुआ कि आदमी अपने ही जीवन को टुकड़ा करके खुद में खो रहा है ......वह यह जान ही नही पा कि वह जानवर नही आदमी बना था पर वह हर बात पर कहता है कि कि हमारे साथ थोड़ी न ऐसा हो रहा ....................जब सब सह रहे है तो मै क्यों बोलू ?????????? क्या आपके मन में ऐसा कभी आया तो बदलिए अपने को .........अपने अधिकार के लिए जियिए...........अखिल भारतीय अधिकार संगठन

kutta aur aadmi

आदमी को आदमी की तलाश है ,,
हर तरफ झूठ फरेब का कयास है ,
घरो में रखने लगे है कुत्ते अब लोग ,
दरवाजे पर एक भूखा खड़ा हताश है ................... क्या हम बदलने लगे है ? क्या आदमी को आदमी से ज्यादा भरोसा जानवर आर हो गया है ? तो फिर मानव क सर्वोत्तम कौन और क्यों कहेगा ....आइये सोने से पहले थोडा सोचे..........अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Sunday, June 10, 2012

जीने की चाहत जगा दी तुमने ,
जीने की आहट बता दी तुमने ,
तुमको राम रहीम में बाट लिया ,
ऐसे क्यों हमको बर्बाद किया तुमने ............................जरूरत है कि हम खुद सोच कर देखे कि हमने जमीं को कितना बेहतर आज तक बनाया है ..................सुप्रभात अखिल भारतीय अधिकार संगठन

dojkh

आदमी कहकर भी सुकून नही पाता है ,
और जानवर खामोश ही जी जाता है ,
कितना फर्क किया है  या अल्लाह मेरे
इन्सान जमी को दोजख बना जाता है ,.........................सोचिये और सो जाइये कही सुकून  की तलाश  में

Saturday, June 9, 2012

aadmi

इतने अशुभ से होकर गुजरता है आदमी ,
कि रात व दिन को शुभ कहता है आदमी ,
ना जाने क्यों डरा डरा सा खड़ा है आदमी ,
जानवरों से ज्यादा बेबस हो गया आदमी .............................. क्या आपको शुभ रात्रि कहू????????????// अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Friday, June 8, 2012

kaun mere pas hai

क्यों मन इतना उदास है ,
कौन है जिससे आस है ,
हर कोई जीता अपने लिए ,
फिर कौन जो मेरे पास है ..................................

Thursday, June 7, 2012

ali kli

अलि कली का सुंदर खेल चला ,
सूरज फिर आज पूरब से मिला ,
हम कुछ अच्छा कर ले आलोक ,
पग बढ़े ऐसा ही सोच मन खिला ...................सुप्रभात

Wednesday, June 6, 2012

roshni

कैसे कह दूँ सुबह मुझे मयस्सर ना हुई ,
कई कह दूँ पूरब आफ़ताब की ना हुई ,
पर ना जाने क्यों मन में बादल छाये ,
रौशनी तो दिखी पर कही रौशनी ना हुई .................................सुप्रभात, अखिल  भारतीय अधिकार संगठन

phul nikla

रात दिन की तरह रिश्ता कुछ ऐसे चला ,
कही रौशनी तो कही फिर अँधेरा मिला
सूरज से दूर हुए तो चाँद हसता ही मिला ,
गुलाब न सही रात में कोई फूल था खिला ...................
हर समय की अपनी रंगत है और उसी के कारण हम न जाने क्या क्या इन आँखों से देखते है पर कुछ इसको दर्द समझ लेते है और उछ इसको जीवन का रंग कह कर इसी की  खुशबू बन जाते है , क्या आप अपने लिए ऐसा सोचते है ??? शुभ रात्रि , अखिल भारतीय अधिकार संगठन , डॉ आलोक चान्टिया

Tuesday, June 5, 2012

bataya na kro.............

मेरी मोह्हबत को यूँ  न जाया करो ,
समय को मेरे यूँ बहाया ना करो ,
एक पल जो जिया सौ बरस की तरफ ,
सौ बार दिन भर में बताया ना करो

subah

मेरे वजूद का अक्स रौशनी में मिला ,
रात भी आई थी तो क्यों   करू गिला ,
थोडा आराम ही पा गया फिर जिस्म ,
कुछ कम नही सुबह का ये सिलसिला ...................... बिना रात के आये आप सुबह का दीदार सोच भी नही सकते और यही कारण है कि हम सब को अपने अधिकारों के लिए सोचना चाहिए , हमारे जीवन की कमी ही हमें अधिकारों के प्रति और जागरूक बनती है , डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन

vishwa paryavaran divas

मुझे काट कर दरवाजो में महफूज हो गए ,
मेरी ही छावं  में लेट सुकून से सो गए ,
जला कर मुझे खुद  को जिन्दा रखते हो ,
देखो दरख्त बिना कितने तन्हा हो गए ................
आप अपने पुरे जीवन में उतनी अक्सिजन का प्रयोग करते है जितनी दो पेड़ अपने पुरे जीवन में निकालते है तो क्यों नही इस सबसे आसन से ऋण को पर्थिवी पर जिन्दा रहते हुए ही उतर दीजिये और अपने आस पास दो पेड़ लगा दीजिये ....अखिल भारतीय अधिकार संगठन विश्व पर्यावरण दिवस पर आप से बस यही जाग्रति की उम्मीद करता है ....शुभ रात्रि

Monday, June 4, 2012

badal ka jajba

दरख्तों के आस पास आँचल का एहसास है ,
जमीं में उलझी शबनम में ओठो की प्यास है ,
कोई बढ़कर हवाओ की तरह ही लिपट जाये ,
आफताब से प्यार में जैसे बादल के जज्बात है .........................
हर विपरीत परिस्थिति में जीवन से मोह्हबत करना आना चाहिए वरना बादल की क्या मजाल कि वो अपने प्रेम की बहो में सूरज को समेटने की गुस्ताखी करे | यही है आपके अधिकारों के जागने का मन्त्र , अखिल भारतीय अधिकार संगठन .........सुप्रभात

jaldi kyo nhi aate

सरकते काले आंचल से बंद आंखे ,
चांदी से बदन की पूरब की बाते ,
न जाने क्यों सुरूर में रही साँसे ,
आलोक तुम जल्दी क्यों नही आते ....................शुभ रात्रि

raat shubh ho

उसकी पदचाप सुन अनसुना कर दिया ,
मोह्हबत को रात ने फना कर दिया ,
ला पिला दे साकी अब नींद का पैमाना
ख्वाब ने दुनिया से बेगाना बना दिया ..........शुभ रात्रि , अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Sunday, June 3, 2012

subah

लेकर आरजू अहिस्ता आफताब निकला ,
करके रास्ते गुलाबी सफ़र पर निकला ,
हर कोई नहा लिया उसके इस जोश से ,
अँधेरे को छोड़ जमीं से एक बीज निकला ......................इंतज़ार न कीजिये और सूरज के साथ अपने जीवन के अधिकार के लिए लड़िये और अगर चाहिए तो इस नेक कम में अखिल भारतीय अधिकार संगठन का रुख करिए ............सुप्रभात

andhera rha is makan me

तू सब्र ना देख अब मेरे ही इम्तिहान में ,
कोई और नही मेरा अब इस जहान में ,
माना हर किसी को आरजू आलोक की ,
पर हमेशा अँधेरा ही रहा इस मकान में ,..................शुभ रात्रि

Saturday, June 2, 2012

mera jatan

रात कुछ इस कदर खौफ जदा रही ,
कि ओस की बूंदे पूरे दौर फ़िदा रही ,
जिन्दगी मेरी चली तिनका तिनका ,
जब तक पूरब भी मुझसे जुदा रही ............... रोशनी का मज़ा इसी में है कि हर तरह रोशनी हो पर न जाने कितने कोने इन्दगी के अधिकारों के आभाव में अंधरे में रह जातेहै ओस की बूंद की तरह बस हम रात की तरह जीने की कोशिस करते है और उसी कोशिश में एक साथ आपका अखिल भारतीय अधिकार संगठन भी निभाता है , आपको सुप्रभात

shubh ratri

जिन्दगी मेरी बेजार होती रही ,
साँसे उनकी रात भर रोती रही ,
न जाने उस काली रात में क्या ,
पूरब आलोक पे निसार होती रही ................ पर हर किसी के लिए पूरब का अपना मतलब है और अपनी हसी है और ऐसी हसी में आपके अधिकार का अगर सरुर हो तो अखिल भारतीय अधिकार  संगठन तो आपके इर्द गिद तो होगा ही .............शुभ रात्रि

Monday, May 28, 2012

tamas ka vikalp

तमस से निकलने का रास्ता ढूंढा सबने ,
नींद  कहकर आँख बंद कर ली सबने ,
कहने की  जरूरत आलोक का मतलब ,
जीवन कह कर कर्म किया फिर सबने ........................अखिल भारतीय अधिकार संगठन का नमन और सुप्रभात

garmi ka prem

गरम हवाओ ने रात को जगा दिया ,
पता नही कहा नींद को भगा दिया ,
सभी झाकते रहे सुबह की तलाश में ,
ना जाने जेठ ने ये कैसा जादू किया .....................गर्मी से हम सब ऊबे है और थोड़ी ठंडक की तलाश है पर गर्म हवाओ ने कुछ ऐसा किया किया की सुबह की तपिश ही अच्छी लगती है रात से |  अखिल भारतीय अधिकार संगठन आपके अच्छे स्वस्थ्य की कामना करता है } शुभ रात्रि

Sunday, May 27, 2012

suprabhat

चिलकती जिन्दगी का साथ पूरब देगी ,
दहकती सड़के फिर कदमो के साथ होगी ,
पर हौसला देखिये इन साँसों का आलोक ,
शाम से पहले घरो में न रु बरु कभी होगी .........................आप सभी अपना ध्यान रखिये क्योकि सुबह का सूरज भी अपने भाव पर है , सिर्फ एक दाना हरी मिर्च का दाना खाकर निकालिए और रहिये  पूरे दिन दिन लू से दूर ................सुप्रभात | अखिल भारतीय अधिकार संगठन

sapno ke par

किलकती जिन्दगी में बिलखती आरजू ,
मैंने अक्सर साँसों को कहते देखा है ,
आसमान छू लेने की तमन्ना करते कदम ,
मैंने ख्वाबो में कितनो को उड़ते देखा है |.................अखिल भारतीय अधिकार संगठन आपके साथ हकीकत की धरती पर अपने को साबित करने के लिए करने को तत्पर ...........शुभ रात्रि

Saturday, May 26, 2012

purab se pratyogita

इतना आसान नही सुबह के मर्म को जान लेना ,
सूरज है मेरा ही आलोक को अपना मान लेना ,
पर चल पड़ना उसके साथ विवशता है तुम्हारी ,
विकल्प ढूंढ़ कर दिखा दोगे पूरब से ठान लेना ...........सुप्रभात प्रिय भारत आईये आज के दिन में कुछ ऐसा कर दिखाए की यह पर्थिवी पर सब जीव जंतु हमारे मानव होने पर फक्र करे | अखिल भारतीय अधिकार संगठन

shubh ratri

मै जनता हूँ ये जिन्दगी तुझे मोह्हबत नही है मुझसे फिर भी ,
पर क्या करू आलोक नाम दिया है तो तपने की आदत डाल लो ,
भले ही तू खुद छाव की तलाश में भटकती रहती दिन भर ,
पर न जाने कितनो के जीने की आरजू हो ये भी तो मान लो .............................शुभ रात्रि भारत अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Saturday, May 12, 2012

maa

शत शत अभिनन्दन ,
तेरे इस नंदन का ,
स्वीकार करो वंदन ,
ये माँ महिषासुर मर्दन ,
तेरी कोख के हम सब ,
पुष्प सुवासित इस जग में ,
रब होता है कैसा ,
माँ से जाना  हम सब ने ,
माँ होकर दर्द हमारे समझे
पृथ्वी को दे दिया उन पहलुओ के लिए ,
जिनके दर्द  है अनबूझे,
आज तेरा दिवस मना कर ,
मानव क्या हो पायेगा ,
उन कर्जो से मुक्त कभी ,
जिनको अपने रक्त  दूध से सीच ,
तूने पूरब  का उजाला दिया ,
और हस्ते है हम सभी ....
पूरे विश्व की माओं को अखिल भारतीय अधिकार संगठन अभिनन्दन करता है यह अभिनन्दन सिर्फ इस लिए नही कि हम ने अपनी माँ को याद किया है बल्कि इस लिए भी क्योकि उस माँ के लिए मई कभी रात में नही जगा , उसके लिए कभी खाना नही बनाया , रिश्तो में जिस रिश्ते से सबसे ज्यादा झगडा हम करते है वह है हमारी माँ ..फिर भी वह इंतज़ार में रहती है कि मुझे भूख लगी होगी , उसके प्रेम से ज्यादातर हम झुंझला उठते है जब वह प्रेम से बालो में हाथ फिरती है जबकि हम चाहते है कि एक लड़की हमारे इर्द गिर्द रहे , वह हमसे पहले उठती है और मुझसे बाद में सोती है , परिवार के लिए ख़ुशी देने के लिए वक्ष कैंसर , सर्विकल कैंसर का दर्द बर्दाह्स्त करने वाली माँ को क्या शब्दों में आँका जा सकता है क्या इन दो शब्दों को कहकर हम भाग सकते है , नही ....एक दिन आप भी अपनी माँ के लिए कुछ भी बनाइए , उसका सर दबाइए और एक गिलास पानी दीजिये और आज सोचये कि आप ने अपनी माँ अंतिम बार पानी कब दिया था ???????? आइये हम सब अपनी माँ के लिए संवेदन शील बने .....काश मै माँ के किसी एक गुण को जी पाता....आपको अभिनन्दन माँ .......आज मै अपना नाम नही लिखना चाहता क्योकि यह बात मै विश्व के हर पुत्र की तरफ से लिख रहा हूँ

Monday, May 7, 2012

suprabhat

सूरज ने बढ कर क्या हामी भरी ,
पूरब की दिशा शर्म में  लाल  हुई ,
आलोक उठा और दुनिया में नाचा,
स्पर्श गर्म से कदमो में ताल हुई .........................आप सभी को सुप्रभात , अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Sunday, May 6, 2012

kilkari ki ibarat

जीवन को इतना समझा ,
कि समझने की बात भूल गया ,
आँखों ने याद दिलाया आलोक ,
फिर अपनी बात ही भूल गया .............१
बरसती क्यों  रही आँखे इतनी ,
आखिर उसने सूखा क्या देख लिया ,
भीगा तन मन दोनों कुछ इतना ,
दिल फिर से कुछ आज भीग लिया ..........२
आज सुना है उनकी रुखसती होगी ,
जिन्दगी आलोक कुछ बेरुखी होगी ,
सर कभी कंधे पर न रख सका जिनके ,
उन्ही के दिल में मेरी ताज पोशी होगी ------३
मेरी दिल की लाली उनके मांग में दिखी ,
कदमो की आहट उनकी चूडियो ने सीखी  ,
रात  का अँधेरा उनकी बंद आँखों में फैला ,
एक किलकारी की इबारत कुछ ऐसी लिखी -------४

Fate

Fate

kadam bahkte chale gaye

मैंने पुकारा  चला कोई और आया,
दिया मैंने तुमको पर कोई और पाया ,
किस्मत भी न जाने क्या चाहती है ,
बढ़ा  मै पर साथ तेरा कोई और पाया .......१
जो बीत गया उसे याद क्या करूं ,
जो मिला नही उसे प्यार क्या करू ,
जाने क्या बटोरते रहे उम्र भर आलोक ,
जो  रह गया साथ उसे जान क्या करू ..............२
जीने के लिए रोज कोई दर्द होना चाहिए ,
अंतस में कोइ एहसास होना चाहिये ,
कौन जान पाता खुद को आलोक यहा,
सामने कोई आँखों के पास होना चाहिए ,......३
दिल रहा रोशन अँधेरे से घर में ,
सांस रही चलती मुर्दे से तन में ,
मन के हारने से सब हारेगा आलोक ,
कदम बहकते रहे मौत जीवन में .................4

Saturday, May 5, 2012

j chhut gaya whi kaam aaya

तेरे अश्को को मान लिया अपनी चाहत ,
तेरे कदमो  को भी मान लिया अपनी आहट,
अब न जाने और क्या चाहता आलोक ,
उसके हसने में भी रहती अपनी सुगबुगाहट .....१
बहकते है वो जिन्हें  यकीं ही नही खुद पर ,
गिरते है वो जिन्हें जमीं न मिली मर कर ,
मुझे पता है काँटों की चुभन ये आलोक ,
रोते है वो जिन्हें कुछ न मिला जी कर ..........२
तेरे हिस्से मौत न आई मांग कर भी ,
मेरे हिस्से जिन्दगी न आई मर कर भी ,
दोनों को अब न जाने किसका इंतज़ार ,
हसी जाने कहा हो गई हमसे मिलकर ...........३
जो बीत गया अब याद ना आया ,
जो मिल गया उसको भी ना पाया ,
जाने क्या बटोरते रहे उम्र भर हम ,
जो छूटगया वही फिर काम आया .................4

Friday, May 4, 2012

कानपुर यूनिवर्सिटी टीचर्स ब्लॉग असोसिएसन(KANPUR UNIVERSITY TEACHERS BLOG ASSOCIATION): tujhko jina behtar

कानपुर यूनिवर्सिटी टीचर्स ब्लॉग असोसिएसन(KANPUR UNIVERSITY TEACHERS BLOG ASSOCIATION): tujhko jina behtar: रात का डर किसको सुबह की आहट में , मौत का डर किसको तेरी चाहत में , हर इसी को इंतज़ार समय की अंगड़ाई का , पैमाने का डर किसको आँखों की राहत में...

tmeh ina hi behtar

रात का डर किसको सुबह की आहट में ,
मौत का डर किसको तेरी चाहत में ,
हर इसी को इंतज़ार समय की अंगड़ाई का ,
पैमाने का डर किसको आँखों की राहत में  ........१
जब दामन से तन्हाई लिपट जाती है ,
आँखे खुद ब खुद  छलक आती है ,
डरता हूँ कही कोई देख ना ले मुझको  ,
इसी से हसी ओठो पे मचल जाती है ....................२
खो जाना बेहतर है पाने के लिए ,
चले जाना बेहतर फिर आने के लिए ,
सभी में छिपी है रब की एक सूरत ,
तुझको जीना बेहतर उसको पाने के लिए ...........३

tujhko jina behatar

रात का डर किसको सुबह की आहट में ,
मौत का डर किसको तेरी चाहत में ,
हर इसी को इंतज़ार समय की अंगड़ाई का ,
पैमाने का डर किसको आँखों की राहत में  ........१
जब दामन से तन्हाई लिपट जाती है ,
आँखे खुद ब खुद  छलक आती है ,
डरता हूँ कही कोई देख ना ले मुझको  ,
इसी से हसी ओठो पे मचल जाती है ....................२
खो जाना बेहतर है पाने के लिए ,
चले जाना बेहतर फिर आने के लिए ,
सभी में छिपी है रब की एक सूरत ,
तुझको जीना बेहतर उसको पाने के लिए ...........३

dard

दर्द में हसी का तसव्वूर मिलता है ,
बर्बाद होते देख उनको सुकून मिलता है ,
हर मौत पर गमीं के बस चार दिन ,
ठोकर खाकर ही सँभालने को मिलता है

Monday, April 30, 2012

mera jivan

रात जैसे  जैसे गहराती गई ,
तारो सी जिन्दगी आती गई ,
सुबह तक सूरज सा चमका ,
सांस  अँधेरे में समाती गई |,
पूरी रात जिसकी बाहों में रहा ,
वही समय अब न जाने कहाँ ,
ढूंढता भी रहा फिर पूरब में ,
वो उम्र का लम्हा फिर  वहां|
मौत की बात करने से डरे ,
फिर भी एक दिन हम मरे ,
सच से भागने  की ये आदत ,
इस झूठ  का हम क्या करें |
रिश्तो के बाज़ार में अकेला ,
फिर भी उसी का हर मेला ,
कोई  क्यों बढ़ कर मिला ,
कोई क्यों भावना से खेला |
जिन्दा रहने पर एक भी नही ,
मरने पर चार कंधे का सहारा ,
कोई भी न बैठा मेरे साथ कभी ,
पर आज था सारा जहाँ हमारा |
एक बूंद में छिपी नदी की कहानी ,
एक आंसू में थी बूंद की जवानी ,
कितना बहूँ की समंदर मिल जाये ,
रास्ते की कसक न होती सुहानी |
आलोक को पाकर चाँद भी चमका ,
तारो का भी कुछ संसार था दमका ,
क्यों फिर भी रहा सफ़र अँधेरे में ,
सपनो में जीकर दिल क्यों छमका |
रेत सा जीवन मुट्ठी में बंद है ,
 जीने के चार दिन भी चंद है ,
हस लो तुम जितना भी चाहो ,
रोने का अपना अलग ही द्वन्द है |

Sunday, April 29, 2012

तुम कह दो तो ......

तुम कह दो तो एक कविता तुम पर लिख दूँ ,
तुम कह दो तो उसमे मन की बात कह दूँ ,
न जाने कितनी तपती रेत गुजरी पैरो  तले,
तुम कह दो तो एक बूंद रहो पानी पर रख दूँ ,
आँखे न बंद करो इतनी बेबसी अब ऐसे आलोक ,
तुम कहो तो सपनो का रंग उनमे भी भर दूँ ,
जब आये ही थे खाली हाथ तो इतना दर्द क्यों ,
तुम कहो तो मुट्ठी में अँधेरा ही बंद कर दूँ ,
जब मिले थे इस दुनिया से क्या याद है तुमको ,
तुम हो तो यादो में नन्हा सा एक झरोखा कर दूँ ,
गुमनाम कौन न हुआ यहा चार कंधो पर चल कर ,
तुम कहो तो आज  बस आंसुओ का बसेरा कर दूँ ,
देखने कहो बस एक बार जी  भर कर मुझे  जिन्दगी ,
तुम कहो तो हर सांस में   आलोक  से सबेरा कर दूँ

Tuesday, April 3, 2012

work

work

kaisa hai jivan

काँटों में भी फूल खिला कर ,
सबको हरसाना आता है ,
फिर तो तुम मानव हो पगले ,
तुम्हे ईश दिखाना आता है |.........१
मै आग सा जीवन लेकर ,
पानी सा जीवन क्यों खत्म,करूं
दूर सही पर आभास आलोक सा ,
मोती , मछली सा क्यों मै मरूँ.....२
आलोक की चाहत सबमे रहती ,
अंधकार समेटे क्यों बैठा है ,
घुट घुट कर आक्रोश सूर्य सा ,
अंतस तेज बन क्यों ऐठा है ,
दूर सही पर प्यारा सा लगता ,
हर सुबह जगाने आता है ,
आलोक न रहता किसी एक का ,
सिर्फ मुट्ठी में अँधेरा पाता है .....३ .....इस का कोई मतलब आपको समझ में आ रहा है .....डॉ आलोक चान्टिया

Monday, April 2, 2012

phul

फूल वही सुंदर कहलाया ,
काँटों को जिसने  गले लगाया ,
उपमा सहस की उसकी गाई,
कीचड़ को जिसने राह बनाई,
क्यों डरते उबड़ खाबड़ रस्तो से ,
बढे चलो आलोक साहस रथ से  .......... जीवन कोई भी अच्छा या ख़राब नही होता है बस हम ही यह नही समझ पाते और दुखी रहते है आइये सुख दुःख के साथ जिए ....डॉ आलोक चान्टिया

phulo sa pyara ho vatan

आओ मिल कर करे जतन,
फूलो सा प्यारा हो वतन ,
हम बढे बढ़ करके छू ले ,
प्रगति के नित नए कदम ..........
बूंद बूंद से घट है भरता ,
कर्म के पथ पर जीवन तरता ,
शस्य श्यामला धरती हो मेरी ,
आओ मिल सब करे चमन ....... यह गीत मैंने १२ नवम्बर २००६ को अखिल भारतीय अधिकार संगठन के ले लक्ष्य गीत के रूप में लिखा था जो हमारी http://www.airo.org.in/ पर पूर्ण उपलब्ध है ....डॉ आलोक चान्त्टिया

Wednesday, March 28, 2012

ye kaisa bharat hai mera ??????????????

हम भारत के लोग ,
हम भारत के लोग |
जमीं नही इसको हम माने,
माँ कहने का मतलब जाने ,
बटने नही देंगे अब इसको ,
हम भारत के लोग, हम भारत के लोग .....
भाई बहन बन कर हम रहते ,
 दुनिया को भी आपना कहते ,
रिश्तो के खातिर यहा पर ,
पल पल जीते है लोग ..........
हम भारत के लोग ..हम भारत के लोग ...
दुनिया पूरी परिवार सी लगती ,
संस्कृति अनूठी शान है रखती ,
मूल्यों की खातिर यहा पर ,
कट मरते है लोग .....
हम भारत के लोग ...हम भारत के लोग ...
कहा गए वो सब लोग ,
खो क्यों गए वो लोग ,
भटक गए हम सब आज यू,
क्यों भारत के लोग ...
हम भारत के लोग ...हम भारत के लोग ....
इस गीत को लिखते समय मेरे मन में सिर्फ यही ख्याल था कि हम किस भारत की बात करना चाहते है .....डॉ आलोक चांत्टिया

Monday, March 26, 2012

kora

मौत को लेकर चला जिन्दगी कहता रहा ,
उम्र बढती गयी मै जन्मदिन कहता रहा ,
लोग कहते मै आलोक हूँ पर रहता अँधेरा ,
कदम घर की तरफ पर दूर मै होता गया .........................हम जो दिखाना चाहते है वह होता नही और जो होता है वो हम जान पाते .....डॉ आलोक चांत्टिया उम्र के दायरों से घर के दायरे घट गए ,
अपनों के साथ चल कर खुद में सिमट गए ,
न जाने क्यों दिल सुकून नही पाया  घर में ,
किसी अनजाने के साथ कमरे में सिमट गए ...................क्या ऐसा नही है जीवन .....डॉ आलोक चांत्टिया

mera jivan

मौत को लेकर चला जिन्दगी कहता रहा ,
उम्र बढती गयी मै जन्मदिन कहता रहा ,
लोग कहते मै आलोक हूँ पर रहता अँधेरा ,
कदम घर की तरफ पर दूर मै होता गया .........................हम जो दिखाना चाहते है वह होता नही और जो होता है वो हम जान पाते .....डॉ आलोक चांत्टिया

Saturday, March 24, 2012

mera jivan

कैसे देखू बूंद में अपनी कहानी ,
रेत में आती नही नींद सुहानी ,
मेरी साँसों के लिए थपेड़े क्यों
अपने नही दोस्ती भी अनजानी .......................शहर  में भागती दौड़ती जिन्दगी में कौन आपके साथ खड़ा होना चाहता है ....डॉ आलोक चांत्टिया

suprabhat

मेरे हिस्से में राख सही ,
तेरे हिस्से में फूल मिले ,
पग पग पर कांटे हो मेरे ,
हर सुबह तुम्हे मुस्कान मिले ................आप सभी को एक खुबसूरत सुबह का नया आयाम मिले .....डॉ आलोक चांत्टिया

who is man

आदमी को आदमी, आदमी  ने ही कहा,
जानवर को जानवर नाम भी उसी ने दिया ,
मार दुत्कार सह कर भी जानवर चुप रहा ,
आदमी कब मार दुत्कार खाकर जानवर रहा ........हम अपने को आदमी कह कर क्यों फक्र करते है
 डॉ आलोक चांत्तिया

saanp aur aadmi

क्या तुम भी अपने को आदमी मान बैठे ,
ये सांप क्यों चल रहे तुम  इतने ऐंठे ऐंठे ,
माना कि आदमी तुम्हारे जहर से नही डरा,
पर तू  आदमी को कांट के क्यों नही मरा............................क्या आदमी और सांप ने पानी फितरत बदल ली है ....डॉ आलोक चान्त्टिया

Friday, March 23, 2012

khud ko jaan lo

साँसों की बेवफाई जान भी उस से आशनाई है ,
फिर टूटे दिल पर अश्को बाढ़ क्यों अब आई है ,
जिन्दगी जब तुम्हारी ही खुद की ना हो पाई तो ,
दूसरो की जिन्दगी पे क्यों ये कैसी रुसवाई है ..........पहले खुद को समझ लो फिर दूसरो को अपना समझो ...डॉ आलोक चान्टिया

dhikha

मिलती नही है जिन्दगी अब चार दिन की कही,
भरोसा तुम करके चले कही साँसों पर तो नही ,
आदमी से भी ज्यादा मोहब्बत दिखता है दिल ,
बेवफा बन मौन हो जाता है किसी दिन ये यही ..................पता नही हम जिन्दगी से क्या क्या उम्मीद लगा बैठते है ..डॉ आलोक चान्टिया

shat shat naman hai tumko

मै भी कहा सो पाया कल पूरी रात ,
करता ही तो रहा सारी रात बात ,
भगत, सुखदेव राजगुरु सब सुनते रहे,
काश आलोक में शहीद होता उनके साथ ........अखिल भारतीय अधिकार संगठन उन सभी शहीद के आगे शत शत नमन करता है जिन के कारण हा स्वतंत्र भारत में जी रहे है और प्रजातंत्र का मतलब समझ पाए है ..........आइये हम सब फिर धर्म , जाति, लिंग , प्रजाति के आधार पर फिर झगडा करके यह प्रदर्शित करे कि हम शहीदों के बलिदान के प्रति कितने संवेदनशील है

Monday, March 19, 2012

mai kiske sath hu

मेरे दामन को पकड़ कर चले ही क्यों थे, ,
अपनी ऊँगली में हाथ जड़े ही क्यों थे ,
पैर होकर भी निहारते सूने दरवाजे को ,
अपने दिल से दूसरे में  धडके ही क्यों थे??????????? बेसहारे होकर भी हम हर वक्त अपने को न जाने क्यों पूरा समझते है ?         

Sunday, March 18, 2012

mera jivan kora kagaz

जिन्दगी आज कैसा ये  गीत गा रही है ,
शमशान में आरती उतारी जा रही है ,
क्यों है अब जनाजो में ठहाको की मस्ती ,
चार कंधो पे क्या सांस वापस आ रही है ...............क्या आप आपको ऐसा लगता है की हम सब भेद भाव के लिए जिम्मेदार है  www.seminar2012.webs.com

Saturday, March 17, 2012

meri jindgi ka sach

 रोये नही हम आप मेरी हसी को समझ बैठे ,
कब से खामोश है हम आप लोरी समझ बैठे ,
तन्हाई का जाला यू शहनाई सी मयस्सर ,,
सूनी आँखों में देख आप जज्बात समझ बैठे ..............आसान नही है किसी के जीवन को समझना

jindgi

जिन्दगी बड़ी बेतरतीब सी लगती है ,
साँसे अब उसकी नसीब सी लगती है ,
जाने कौन देख रहा मेरी आँखों से ,
हाथो में राख भी हसीन सी लगती है ....................

Thursday, March 15, 2012

mera jivan kora kagaz

शमशान की आग से हिलते बदन को सुकून ,
जिन्दा होने का  एहसास तो आलोक में मिला ,
शहर भर में बदनाम किस घर में करूं बसर ,
खामोश ही सही कई लाशो का साथ तो मिला

Saturday, February 25, 2012

mujhe manushya kab samjhoge

खुद को मनुष्य ,
समझने का एहसास है ,
और उन्हें अपने से कम ,
जनजाति कहने का प्रयास है ,
ये जिन्दगी का कौन फलसफा ,
हमारा भी कैसा कयास है ,
थारू , भोक्सा , राजी ,भोटिया ,
क्या नाम काफी न था उनका ,
फिर जनजाति नाम है किनका ,
कहते है हम उन्हें चिडिया घर ,
का जानवर नही मानते है ,
पर आज तक उन्हें आदिम ,वनवासी ,
ही क्यों हर कही मानते है ,
न जाने कितने आधुनिक ने ,
रचाई शादी इन्ही आदिम मानव से ,
पर जाने क्यों जब तब लगते ,
 ये मानवशास्त्रियो को दानव से ,
मानवाधिकार का दौर चल रहा है ,
रंग भेद का दम निकल रहा है ,
फिर भी जनजाति का हनन जरी है ,
न जाने  क्या फितरत हमारी है ,
मानो ना मानो हम दुकान चलाते है ,
इन्ही के नाम पर दुनिया में जाते है ,
पर ओंगे , जारवा नचाये जाते है ,
एक रोटी के लिए रोये जाते है ,
शायद मनुष्यता का अनोखा रंग है ,
जनजाति हमारी कमी का ढंग है ,
कोई इन्हें भी दौड़ गले लगा लेता ,
मानव है ये अब तो बता देता ,
आलोक विचलित है दिल किसे बताऊ ,
काश कभी मै भी इनके काम आऊ..........................
आप सभी को लग सकता है कि मै आज कल जनजाति पर क्यों लिख रहा हूँ , क्योकि मै आज तक नही जन पाया कि हम लोग इन्ही जनजाति पर बात करके न जाने कितनी सुविधाओ में जी जाते है और  देश की ६९८ जनजाति में ज्यादातर यह भी नही जानते कि आधुनिकता का मतलब क्या है ?????????????? क्या मानवधिकार उन्हें गरिमा पूर्ण जीवन जीने का अधिकार नही देता है ????????????????? डॉ आलोक चांत्तिया

Friday, February 24, 2012

mora mann anat kha sukh pave

मनुष्य को बाँट कर ,
मनुष्य को छांट कर ,
मनुष्य खुद क्या रहा ,
पर उसने क्या सहा ,
सब ने मिलके किया ,
खूब हसी और ठठ्ठे,
किसी ने उड़ाई शराब ,
और किसी ने ठुमके ,
जिस के खातिर ये सब ,
उसने भी घर का अँधेरा ,
मिटाने के लिए जलाया ,
एक दीपक ढूंढ़ लाया ,
चूल्हे पर पसीने से भीगी ,
रोटी की सोंधी महक ,
फटे कपड़ो में बदन ,
में उभरी एक चहक ,
जमीन में सोने का ,
पूरा होता उसका सपना ,
अँधेरे से गुजरते ऐसे ,
जीवन को पता ही नही ,
कि दूर कही हवा में ,
रौशनी से नहाये कमरे ,
शराब , मछली के स्वर ,
में फूल से लदे मनुष्य ,
कर रहे है उसी कि बाते ,
दिन ही नही वातानुकूलित ,
कट रही है उनकी राते ,
चाहते है उसके नाम पर ,
बोलने वाले हर कही
एक एक शब्द कि कीमत ,
चलने फिरने का भी मोल ,
लेकिन वह होता है गोल ,
कोठे कि तरह चलते मुजरे ,
उसके जीवन में क्या अब गुजरे ,
इस से किसी को क्या मतलब ,
बस खुद को साबित कर लिया ,
पर उसके लिए क्या किया ,
क्यों सोचे कोई इस पर ,
सेमिनार तो मुंडन , शादी ,
की तरह बस नाते दारी है ,
क्यों कि जीजा फूफा की,
होनी अब दावे दारी है
लड़की वालो की तरह ,
लूटे पिटे जन जाती के लोग ,
सब लुटा कर जिलाने की
जुगत में दामाद को ,
कर्ज में डूब कर हँसाने की ,
की लालसा आज भी है ,
जनजाति होने का अभिशाप ,
सेमिनार के दामादो को ,
हँसाने में कही आज भी है ,
रूठ न जाये क्या पता ,
दामाद है शिक्षा के ,
इसी लिए जनजाति को ,
बस मरते रहना है ,
इन्हें तो मनुष्य पर ,
खुद को जंगली करना है ,
आखिर इनकी दुकान जो ,
चलाते रहना है सेमिनार से ,
क्या हम भी मनुष्य बनेगे ,
इअसे होते र्ह्तेव सेमिनार से .........जनजाति पर न जाने कितने सेमिनार होते है सरकार लोकहो रुपये खर्च करती है जनजाति आज तक इस देश में समाया मनुष्य नही बन पाया ...इस देश में विकास को आइना तो देखिये ,..जब देश स्वतंत्र हुआ तो २१२ जनजातिय समूह थे जो आज बढ़ कर ६९८ हो गए है .......क्या हम जनजाति भारत बना रहे है ..क्या हम कबीला संस्कृति  बढ़ा रहे है क्यों कि विकास के आईने में जनजाति एक नकारात्मक शब्द है ...और हम हर साल सेमिनार करते है ...क्या सेमिनार में वही नही होता जो मैंने पानी टूटी फूटी पंक्तियों में उकेरा है ...पर एहसास मर गया है हमारा

Wednesday, February 15, 2012

dohra pan

कैसे कह दू मुझे सिर्फ पूरब की आरजू है ,
कल ही तो ये रात मै तेरे संग सोया था ,
मेरी फितरत ही नही सिर्फ जिंदगी की ,
कल मै किसी की लाश पर भी रोया था ,
आलोक कैसे न माने दुनिया जादू की ,
नींद उसे आई और सपने मै खोया था ,
ऐसे दोहरे पन में किसका दामन थामू
आम की तलाश में बबूल जो बोया था .............क्या जीवन यही है

Tuesday, February 14, 2012

love is blind

जीवन के स्वर ,
जब भी आते है ,
मौत से कुछ दूर ,
हम निकल आते है ,
खिलते है , बिखरते है ,
और मुरझाते भी है ,
पर पीछे अपनी महक ,
भी छोड़ जाते है ,
मेरी ना मानो तो ,
पूछ लो आलोक से ,
झा से सपने रोज ,
हकीकत बन के आते है ,
पूरब का मन कभी ,
भी ऊबा ही नही ,
जीवन के नित नए रंग ,
दौड़े चले आते है ,
प्रेम तो बस एक ,
कतरा है बहने का ,
मेरी तो यादो में हर ,
शख्स चले आते है ,
क्या कहू किस से ,
अब आज के दिन ,
हम तो पुरे बसंत ,
मधु मास मानते है ......................भारत हमेशा से सहिष्णु देश रहा है और हमने शक, कुषाण , हूण, अंग्रेज . फ़्रांसिसी ,डच सबको जगह दी है ...इस लिया आज अगर विश्व हमारे बसंत उत्सव से प्रभावित होकर अपने प्रेम को एक दिन दिखाना चाहता है ...तो चन्दन विष व्याप्त नही लपटे रहत भुजंग के दर्शन वाले देश को आज उसके संत को भी प्रेम के नाम पर श्रधांजलि दे देनी चाहिए ....पर हम प्रेम में उस हर बात के विरोधी है जो प्रेम को शरीर से शुरू करके शरीर तक खत्म करता है .........प्रेम, मोहब्बत , प्यार , लव , लिखने में ही अधूरे है तो इनसे ना कभी पूर्णता आ सकती है और ना ही इस के पीछे भागने का कोई अंत है ...इस लिए हमरे धर्म , साहित्य सभी ने आत्मा , रूह से प्रेम को प्राथमिकता दी है ...जो हमारे प्रेम को अमर बनता है ...क्या आपका प्रेम अमर बन ने के लिए बढ़ रहा है ??????????????????? प्रेम का अधिकार सबको है पर दिल को चोट पंहुचा कर नही ...अखिल भारतीय अधिकार संगठन प्रेम के नाम पर किसी की गरिमा को ठेस पहुचने वाले प्रेम का विरोध करते हुए और बसंत के मेले के एक काउंटर की तरह १४ फ़रवरी को भी अवसर देता है ताकि वोखुद महसूस कर ले कि भारत के प्रेम और उनके प्रेम की गहरे कहा तक है ....आप सभी को बसंत के बीच पड़ने वाले इस दिन पर भी कुछ पल रुक कर अपने ऊपर गर्व करना चाहिए कि प्रेम में राधा कृष्ण के आदर्श को जीने वाले देश में १४ फ़रवरी कूड़े से उर्जा पैदा करने वाले उपाए से ज्यादा कुछ नही ........माँ तुझे सलाम ........डॉ आलोक चाटीया    

Monday, February 6, 2012

moring ??????????????????

आज ये अंतिम  मेरी कविता है ,
आज ना खुश दिखती सविता है ,
अंशुमाली निरंकुश रहता मिला ,
अंशु का दिल फिर क्योंना खिला  ,,
रजनीश को देख बंद आँखे हुई ,
आलोक से बेपरवाह दुनिया हुई ,
जी लेने की चाह बस सबमे दिखी,
चौपायो की बेहतर किस्मत लिखी  ,
जाने हम कैसे मनुष्य बन ही  गए  ,
बैठे जिस जगह वो और मैले हो गए ,
कहते है फर्जी सब करते है बात,
लाया  ना ठेका कोई अपने साथ ,
गाँधी भगत थे  आये यही बताने
दुनिया बनाओ सुंदर इसे ही जताने ,
मिली क्या उनको फासी और गोली ,
आलोक अब क्यों करते हो ठिठोली ,
आदमी अगर सच आदमी ही होता ,
जंगल जानवर धरा से यू ना खोता ,
अब तो नदी , जमीं सब रो रहे है ,
देखते नही सब अब ख़त्म हो रहे है ,
बनेगा फिर कौन राम की विरासत  ,
स्वयं हो गया आदमी एक आफत ,
पहले बताओ इनको जीवन का अर्थ ,
सामने खड़ा ही अस्तित्व का अनर्थ ,
जानते नही ये अब किधर जा रहे है ,
सुबह भी हो रही है इनके लिए तदर्थ ...................आइये हम पहले मनुष्य होने का मतलब समझे और यह जाने कि सिर्फ हमारे दुनिया में रहने का कोई फायदा  नही अगर जंगल, जानवर , नदी नाले सब ख़त्म हो गए ..अखिल भारतीय अधिकार संगठन के मनुष्यता अभियान का हिस्सा बनिए ...और आप सभी को तदर्थ ना होने वाली सुबह के लिए सुप्रभात


chidya aur aurat

एक चिडिया उडी आकाश में ,
एक चिडिया उडी प्रकाश में ,
साँझ का मतलब जानती है ,
अंधेरो को भी पहचानती है ,
नन्हे पर लेकर ही जीती है ,
अजब सा साहस वो देती है ,
वो निकलना कब छोडती है  ,
अपने रास्ते कब मोडती है ,
तुम चिडिया से कम नही ,
क्या तुम में कोई दम नही,
बदल डालो अपना आकाश ,
बनो लो अपने नए प्रकाश ,
साँझ से पहले संभल जाओ,
पूरब की लाली फिर बन जाओ,
ना करो भरोसा नेता पर इतना,
दूर रहो उनसे भ्रष्टाचार से जितना ,
चिडिया बाज़ से निकल जाती है ,
परगंगा को मैला निगल जाती है ,
रात को आओ फिर से समझ ले ,
मुट्ठी में आलोक पूरब से ले ले ...........देश की स्थिति समझिये और एक नए भारत के निर्माण में , महिलाओ से सम्मान में अखिल भारतीय अधिकार संगठन के साथ मिल कार्य कीजिये ...अपने मत का प्रयोग कीजिये ...शुभरात्रि

Sunday, February 5, 2012

mat dan

भगवान ने सूरज को पूरब में चमकाया ,
लोगो के दिलो में भी आलोक फैलाया ,
नींद खोलने की दवा की तरह दिवाकर ,
चेतना का संचार दिन कहलाता आकर ,
दीन हीन भी देश में अँधेरे से दूर होते ,
ठण्ड को दूर भगाते,सुख में भी खोते ,
पूरब आज फिर हमें गरम कर जायेगा ,
कोई गरीब रात में मरने ना पायेगा ,
प्रकाश में लोगो के चेहरे दिख जायेंगे ,
भेडियो से माँ के अंचल बच जायेंगे ,
क्यों नही आज तक सूरज भारत आया ,
लोकतंत्र का भाव सहीसबको बता पाया ,
कैसे वो रोकेगा फिर भ्रष्टो को आने से ,
देश के नेता का पद  चुनाव में पाने से,
प्रभाकर जाकर  अब लोगो को जगा दो ,
मत डालने की आग पुरे देश में लगा दो ...............आज सुबह सुबह सूरज को देख ऐसा लगा कि जब देश के लोग रोटी पानी की दौड़ में जागना ही नही चाहते तो क्यों ना उस से ही खा जाये कि अखिल भारतीय अधिकार सगठन कि प्रार्थना आप तक पहुचाई जाये ...मत का प्रयोग करे देश के लिए ....सुप्रभात