जिन्दगी आज बेकार सी लगने लगी है ,
बाज़ार में बोली बेहिसाब लगने लगी है ,
कितनी बार बदल कर देखूं मैं तुझको ,
हर जिन्दगी में वही फिर दिखने लगी है ,
लोग कहते है आलोक होकर अँधेरे में ,
किसको बताऊँ आंखे छलकने लगी है ,
जन कर भी अन्जान नही मैं हुआ हूँ ,
अन्जाने में मौत अच्छी लगने लगी है ,
कोई नही जो ऋतु से यहाँ बच पाया हो ,
मेहँदी से सरुर में खुद न रच आया हो ,
उसका तो काम था आना और चले जाना,
दीवाली में दीपक सी आज लगने लगी है ..................आप सभी को आज से बदलने वाली ऋतु के प्रकाशोत्सव में धन्वन्तरी त्रियोदशी की शुभ कामना ............ताकि आप ऋतु का हलके कम मुने एंड गुण गुने एहसास में डूब कर बदलती ऋतु को जव्वाब दे सके .....पटाखा न चलाये ......आओ किस भूखे , गीब बच्चे को हसाए ....उसे एक रोटी या एक पेन्सिल दे आये ...................आओ फिर से नयी दीपवाली मनाये ...........
बाज़ार में बोली बेहिसाब लगने लगी है ,
कितनी बार बदल कर देखूं मैं तुझको ,
हर जिन्दगी में वही फिर दिखने लगी है ,
लोग कहते है आलोक होकर अँधेरे में ,
किसको बताऊँ आंखे छलकने लगी है ,
जन कर भी अन्जान नही मैं हुआ हूँ ,
अन्जाने में मौत अच्छी लगने लगी है ,
कोई नही जो ऋतु से यहाँ बच पाया हो ,
मेहँदी से सरुर में खुद न रच आया हो ,
उसका तो काम था आना और चले जाना,
दीवाली में दीपक सी आज लगने लगी है ..................आप सभी को आज से बदलने वाली ऋतु के प्रकाशोत्सव में धन्वन्तरी त्रियोदशी की शुभ कामना ............ताकि आप ऋतु का हलके कम मुने एंड गुण गुने एहसास में डूब कर बदलती ऋतु को जव्वाब दे सके .....पटाखा न चलाये ......आओ किस भूखे , गीब बच्चे को हसाए ....उसे एक रोटी या एक पेन्सिल दे आये ...................आओ फिर से नयी दीपवाली मनाये ...........
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