Thursday, November 8, 2012

nafrat tali

आज जिन्दगी जख्म खायी हुई मिली ,
ना जाने क्यों उसकी कमी फिर खली ,
आलोक में भी उसको अँधेरा क्यों दिखा ,
सब लुटा कर साँसे आज कहा को चली ,
सामने थी आज मगर मुद्दत का सफ़र ,
फूल बन कर मिली जो कल थी  कली,
एक चहेरा मिटा उसने दूसरा कर लिया ,
मौत को देख क्यों आज जिन्दगी हिली ,
ऋतु की तरह बन हम कहा खो  गए ,
दिल की आरजू आज फिर कैसे जली ,
तू नही वो जिसके साथ थी मैं अब तक ,
चार कंधो को पाकर हर नफरत  से टली............................जिन्दगी कहती है कि तुम एक नही कई चेहरे लगाये हो .तभी तो मैं असली वाले की तलाश में तुमको छोड़ कर जा रही हूँ .इसको मत कहो मौत ....मैं दूसरी जिन्दगी पा रही हूँ ...............शुभ रात्रि

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