Sunday, October 21, 2012

saanse dikhi

सभी को मेरे जनाज़े में जाने की जल्दी दिखी ,
उनको अपने घर से कुछ ज्यादा दूरी दिखी ,
मैं मातम में खुद डूबा रहा अपनी मैयत देख ,
नुक्कड़ पर चाय में डूबी मेरी कुछ बाते दिखी ,
कल मैं भूख से बेदम अपनी जान से गया था ,
आज मेरी पसंद नापसंद की होती बाते दिखी ,
कोई क्या जाने अब भी मैं धड़क रहा दिल में ,
उनके दिल से मेरी आवाज़ आज आती दिखी ,
लोग नहाकर थे लौटे मुझे छोड़कर अब वहा,
उसकी आँखों में मेरी यादे नहाते फिर दिखी ,
तडपा मैं कितना उसकी यादो में हर पल हूँ ,
रोज चादर पे सिलवटे उसके  पड़ती दिखी ,
सूनी सी डगर सी अब मांग उसकी है रहती .
लाली सिंदूर की आज उसकी आँखों में दिखी ,
माफ़ कर दो जिन्दगी आलोक की बेवफाई ,
मौत से इश्क करती शमशान में साँसे दिखी ................................आइये हम सब एक बार ये जान ले की जिसको जिन्दगी कह कर हम इतना इतर रहे हैं .वो हकीकत में मौत ही है ................पर उसके आने से पहले का नाम जिन्दगी है ........तो क्या आप जिन्दगी जी पाए या फिर सिर्फ खाने , सोने को ही जिन्दगी समझ बैठे है ....किसी के लिए जी कर देखिये जानवर से थोडा अलग पहचान बनाइए ..शुभ रात्रि

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