Saturday, November 3, 2012

thandak mubarak

जिन्दगी से मोहब्बत कौन कर पाया है ,
जिसने की वो कहा तक रह पाया है ,
मुझको तो मौत से मोहब्बत है उम्र भर ,
देखो आज शायद उसका पैगाम आया है
बदलती ऋतु सा उसका मिजाज ,मिला ,
कल जो ऋतु थी उसको भी आज गिला,
बोली कल मुझसे कितना लिपटे रहते थे
पर जिन्दगी की तरह ही मुझको सिला ,
मुझसे मोहब्बत करके उससे क्यों मिले ,
जीवन की  वंदना में फिर किधर चले ,
माना की मौत ही सच था मेरे जीवन का
ऋतु  फूल क्यों फिर दामन में मेरे खिले
आज आलोक मिलकर जिन्दगी से गया
मौत सी रात सर्द ऋतु की देखो ये  ह्या,
ठण्ड से अकड़ कर जो अभी गया है वहा
कल फिर वो आएगा बनकर कोई नया .......................जीवन में आने जाने का क्रम चलता रहता है  और यही कारण है कि बदलती ऋतु सुख और दुःख हमेशा देती है पर ऋतु का इंतज़ार किसको नही होता क्योकि हर ऋतु में फसलो के पकने , फूलो के खिलने , पानी की फुहारों , सावन के झूलो , किलकती धुप के स्वर है जैसे जिन्दगी में ही मौत के स्वर है पर हम जिन्दगी को जीना चाहते हा वैसे ही ऋतु का भी इंतज़ार सबको रहता है ..............गुलाबी ठंडक सभी को मुबारक .......शुभ रात्रि

No comments:

Post a Comment