Friday, November 30, 2012

dur ho rha hai

जीवन का स्वर चुप हो रहा है ...............देखिये अब सारा शहर सो रहा है .................सर्द है रातें खुद जिन्दगी की तलाश में ..................कोई मेरा अपना सपनो में खो रहा है .................. ये कैसी आरजू है ऋतु से तुम्हारी .................कोई  क्यों सन्नाटे में  फिर रो रहा है .....................आलोक जब जरूरत रात में भी तुमको ....................क्यों रिश्ता तेरा पूरब से दूर हो रहा है ...................पहले हम सब को जानना चाहिए कि हम वास्तव में क्या चाहते है ............फिर चाहे रात हो या दिन .........सब चलेगा पर अभी शुभ रात्रि

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