क्यों नही आई उसकी जिन्दगी मेरी बनकर .............कल तो लगा था वही सच है सुनकर ...............आज मौत की तरह ठंडी लगी आगोश में .....................क्या था जो लुट रही थी आंख नम कर ......................क्या ऐसा लगा जो जिस्म से नही हासिल ...............क्यों नही कह सकी साँसे खुल कर ................सिर्फ आँखों की मान दिल को जान लिया ...................कैसा रहा प्रेम आलोक से उसका बंध कर .................................आसमान नीला नही हैं फिर भी जिसको देखो नीला नीला कह कर जिए जा रहा है ...............उसी तरह हर रिश्ते को सिर्फ आंख से देख कर उसकी सच्चाई नही जानी जा सकती पर अकसर रिश्ते शिकार इसी का बनते है ................शुभ रात्रि
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