Monday, December 17, 2012

क्या हकीकत को सुनाया तुमने

मैं सूरज के ख्वाब में डूबा नही ..................मैं कभी पूरब से ऊबा  नही ............तभी तो आती है रोज बिघोने मुझे ............किरणों का ये खेल कोई अजूबा नही .................आलोक नही तो क्या पाया तुमने ......................अंधेरो में सिर्फ सपने सजाया तुमने ........................हकीकत का नाम ही सुबह रखा है सबने .......................क्या भोर के शोर को कभी सुनाया तुमने ........................एक बार इस नश्वर शरीर में अपने कोई ढूढ़ लीजिये .आप खुद नही जान जायेंगे कि आपको कुछ ऐसा करना चाहिए कि आप नश्वरता में अमरता प् जाये ............तो आज ही से कहिये सुप्रभात

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