मौत अपनी जिन्दगी मुझमे तलाशती रही ,
अँधेरे की आरजू रौशनी को निहारती रही ,
रुक गए कदम शमशान की तरफ जाकर ,
कोई नही था साये को आँख पुकारती रही ,
आलोक कब आलोक का मतलब समझा है ,
चिराग के नीचे जिन्दगी धिक्कारती रही,
अब तो कोई बढ़ कर ऊँगली पकड़ ले मेरी ,
गिर कर गिराने की आरजू क्यों सजाती रही,
एक दिन न चाहने वाली मंजिल आ जाएगी ,
क्यों जिन्दगी ही तिल तिल करके मारती रही ......................................जब भी जिसके लिए जीने का मन करे तो पुरे मन से जिए .......क्योकि लाश भी चार कंधो पर ऐतबार करके शमशान तक पहुच जाती है ...........तो जिन्दा आदमी के साथ दगा क्यों ?????????????????डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन ,
अँधेरे की आरजू रौशनी को निहारती रही ,
रुक गए कदम शमशान की तरफ जाकर ,
कोई नही था साये को आँख पुकारती रही ,
आलोक कब आलोक का मतलब समझा है ,
चिराग के नीचे जिन्दगी धिक्कारती रही,
अब तो कोई बढ़ कर ऊँगली पकड़ ले मेरी ,
गिर कर गिराने की आरजू क्यों सजाती रही,
एक दिन न चाहने वाली मंजिल आ जाएगी ,
क्यों जिन्दगी ही तिल तिल करके मारती रही ......................................जब भी जिसके लिए जीने का मन करे तो पुरे मन से जिए .......क्योकि लाश भी चार कंधो पर ऐतबार करके शमशान तक पहुच जाती है ...........तो जिन्दा आदमी के साथ दगा क्यों ?????????????????डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन ,
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