Wednesday, February 15, 2012

dohra pan

कैसे कह दू मुझे सिर्फ पूरब की आरजू है ,
कल ही तो ये रात मै तेरे संग सोया था ,
मेरी फितरत ही नही सिर्फ जिंदगी की ,
कल मै किसी की लाश पर भी रोया था ,
आलोक कैसे न माने दुनिया जादू की ,
नींद उसे आई और सपने मै खोया था ,
ऐसे दोहरे पन में किसका दामन थामू
आम की तलाश में बबूल जो बोया था .............क्या जीवन यही है

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