खुश रहने के हजार बहाने हैं
सभी के लिए उसके अपने-अपने मायने हैं
कोई जरूरी नहीं कोई
दूसरे को देखकर खुश ही हो जाए
वह हो सकता है उसके गिरते
आंसुओं पर खो जाए
किसी को किसी के गिरने पर मजा आ जाता है
और कोई सिर्फ इसलिए खुश हो जाता है
जब कोई दूसरा सजा पाता है
कहीं कोई एक रोटी के लिए भूखा रह जाता है
किसी को खुशी की तलाश में
दिन भर यही देखना रहता है कि
कौन जमाने भर के खुशियों को
अपने दामन में लपेट नहीं पाया है
अपने को थका कर पूरे दिन में
बस यही देखकर खुश हो पाया है
पर सभी एक जैसे नहीं होते हैं
कोई कोई बिल्कुल एक जैसे होते हैं
खुद भूखे रहते हैं दूसरे को खाना खिला देते हैं
खुद पैदल चलते हैं किसी का
सफर तय करा देते हैं
अपने लिए संघर्ष करते हुए
जिंदगी में चले जाते हैं
पर दूसरे के संघर्ष में कंधे से कंधा मिला जाते हैं
अपनी तमाम परेशानियों को दबा लेते हैं
सीने में चुपचाप दूसरों को जी लेते हैं
और दूसरे को खुशी कैसे मिलेगी
इसी में बस प्रयास में लगे रहते हैं
कई बार बहुत ऐसे लोग भी मिल जाते हैं
जो यह मान ही नहीं पाते
कि बिना पैसे की भी खुश रहा जा सकता है
कोई व्यक्ति बिना सुख के खुश रह सकता है
ऐसा भला कैसे हो सकता है
वह बार-बार पूछते हैं
कि भला बिना पैसे के कैसे कोई
अपने होठों पर हंसी ला सकता है
जरूर आदमी झूठ बोल रहा होगा
क्योंकि वर्षो से पैसे का यही सिलसिला चला आया है
कि जिसकी मुट्ठी में पैसा है वही खुश रह पाया है
रामकृष्ण की कहानी पढ़ कर भी
कोई अमल नहीं कर पाया है
खुशी के लिए पैसे की जरूरत कब होती है
किसी के लिए कर्म ही पैसा हो जाता है
और बस इतने से वह खुश रह पाता है
किसी के अंदर इस खुशी की
बात सुनना कहां चाहता है
वह तो बस पैसे पर ही अपनी
सारी बिसात बेचकर बैठ जाता है
और अपने में खुश रहने वाले को
एक झूठ का जीवन बता जाता है
पर खुश रहने वाला इस बात से भी खुश हो जाता है
कि चलो कोई तो उसे झूठा समझ कर खुश हो गया है
एक सुंदर सी नींद में इसीलिए सो गया है
कि वह आज एक सच्चे आदमी को झूठा बना पाया है
कृष्ण को चोर और राम को धोखा देने वाला समझ पाया है इसलिए खुश रहने के इस जतन को वह सही पाया है
आप भी यह देख सकते हैं
कि खुश रहने के कितने बहाने होते हैं
आपके लिए उसके मायने क्या होते हैं
आलोक चांटिया "रजनीश"
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