Sunday, July 20, 2025

सुंदरता का श्राप आलोक चांटिया "रजनीश"

 


जो जितना सुंदर है उसका
जीवन उतना ही दूभर है
सुंदर हमको लगी पृथ्वी
देखो उसका क्या हाल है
सुंदरता में मिला है गुलाब जो
चारों तरफ उसकी भी रहता
हाथों का मकड़ जाल है
सुंदरता के खातिर तोड़ा जाता
हर दिन एक फूल है
सुंदर होने का उसको मिलता
यही एक शूल है
सुंदरता में आकर्षित करने का गुण
निहित होता है
इसीलिए मकरंद को लेकर
वह हर पल अपना जीवन जीता है
खींचता है ध्यान किसी भंवरे
तितली का हर पल
जानता है अगर समय से नहीं किया कर्म
तो फिर आने वाली पीढ़ी का
दुखदाई होता कल
इसीलिए पराग कण का लक्ष्य देकर
वह बुलाता है एक भंवरे को
और पराग को दूर तलक बिखर देना
कहता है उसे भंवरे को
क्योंकि जानता है सुंदरता है बहुत क्षणिक बस इसका अर्थ होता है तदर्थ
अक्सर इसी सुंदरता के कारण
वह हर हाथ से तोड़ा जाता है
कभी प्रियसी के बालों में गूंथा
तो कभी भगवान पर चढ़ जाता है
कभी शव की शोभा बढ़ाता
कभी पथ पर बिखर जाता है
सुंदरता का यही अर्थ
जब हमें समझ में आता है
तब तक मुट्ठी में अंधेरा
सिर्फ हमारे रह जाता है
सुंदरता मन की हो तो
जीवन अच्छा बनता है
सुंदरता बाहर की हो तो
जीवन हर पल हर कोई खनता है
इसीलिए जो भी भागा
सुंदरता को लेकर जागा
वह बस दुनिया को पकड़ने की
कोशिश करता रहता है
जो भीतर थी सुंदरता उसके
उससे भ्रमित ही रहता है
इसीलिए इस दुनिया में
सुंदरता के चक्कर में जो जाता है
उसके जीवन में सुख के कुछ पल आते हैं पर लंबा सुख ना पाता है
इसी सुंदरता को महसूस भी करके पृ
थ्वी की क्या दुर्गत हमने कर डाली है
जिस मानव को पैदा करके उसने
समझा था यह तो माली है
आज कठिन है जीवन इस धरा पर
मानव का इस कारण से
क्योंकि सुंदरता को बर्बाद किया
मानव ने अपने मारण से
सिसक रहा है मानव अब कैसे
जीवन अपना और धरा का बचा मैं पाऊं सुंदरता कर्म में होती
कैसे जग को मैं समझाऊं
असली सुंदरता क्या होती मानव
अब समझ गया है
भस्मासुर बनने से पहले
वह शिव अर्थ तक पहुंच गया है
आलोक चांटिया "रजनीश"

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