सिर्फ स्वयं को बचाने का नाम जीवन है
यही एक प्रयास सभी के लिए संजीवन है
चाहे वह एक कोशिकीय प्राणी पैरामीशियम हो
यूग्लीना हो अमीबा हो
सभी सिर्फ अपने को बचाने के लिए
दो भागों में बट जाते हैं
तभी तो उनके जीवन में
जीवन के अर्थ सही स्वर पाते हैं
यही टूटना बिखरना बटना
एक कोशिकीय प्राणी से बहुकोशिकीय प्राणी में
न जाने कब बदलने लगा
और इस पृथ्वी पर तरह-तरह के
जीव जंतुओं का खेल चलने लगा
इस खेल का अंतिम परिणाम मानव हो गया
जिसमें हर घंटे कोशिका का बटना
उसके जटिल जीवन का पैमाना हो गया
आज भी मनुष्य जिंदा इसीलिए है
क्योंकि उसके शरीर में कोशिकाओं का
टूटना बिखरना मारना बटना चल रहा है
सच मानो यह खुद को बांटकर
जीने की आदत से ही जीवन का अर्थ
इस पृथ्वी पर चल रहा है
इसलिए किसी के बट जाने पर
किसी के अपने जीवन को चलाने के लिए
दूर चले जाने से परेशान होना छोड़ दो
कभी तो मृत्यु से ऊपर उठकर
जीवन का अर्थ टूटने से जोड़ दो
आलोक चांटिया "रजनीश"
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