Sunday, July 6, 2025

कोई जरूरी नहीं है हर बार -आलोक चांटिया "रजनीश"

  

कोई जरूरी नहीं है हर बार
एक पत्थर से सांप का
फन ही कुचलना पड़े
उसके भीतर फैले हुए
जहर से खुद को दूर करना पड़े
कई बार मनुष्य को भी
अपने अंदर पनप रही इच्छाओं के
जहर को कुचलना पड़ता है
सब जानते हुए भी तड़पना पड़ता है
अगर समय से उन इच्छाओं को
व्यक्ति मार नहीं पाता है
तो उसके हिस्से इच्छाओं का
वह जहर आता है
जो शरीर ही नहीं दिमाग को खा जाता है
इच्छाओं में तड़पता आदमी
कितने भी प्रयास करने के बाद
न बच पाता है ना आगे जा पाता है
उसके हिस्से में सिर्फ और सिर्फ
मौत का वही अंधेरा आता है
जो कभी-कभी एक सांप के
काटने से आदमी पाया जाता है
इसीलिए अक्सर परिस्थितियों के पत्थर से
आदमी अपनी इच्छाओं के
फन को कुचल डालता है
और मानव होते हुए भी अपने को
परिस्थितियों के साथ इस जीवन में पालता है
हर पल सोचता है कल की सुबह जब होगी
तो जिन इच्छाओं को जो
उसने दबाकर मार डाला है
जिसके कारण अंदर ही अंदर
दम तोड़ती इच्छाओं का हाला है
वह फिर से उसकी मुट्ठी से निकलकर
एक फूल की तरह उसके
चारों ओर खेलने लगेगी
और जिंदगी फिर से सुंदर सी
मुस्कान हंसने लगेगी
पर आस्तीन में सांप पालने की तरह
इच्छाओं को पालने से
कभी कुछ मिलता नहीं है
अगर यह समय से ना पहचान ली गई
तो कर्म के पथ पर आदमी संभलता नहीं है
आलोक चांटिया "रजनीश"

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