Saturday, July 19, 2025

कहां इतना आसान है उस पार तक' जानाआलोक चांटिया "रजनीश"

 

कहां इतना आसान है उस पार तक जाना 

केवल सोच कर ही आदमी डर जाता है
तिल तिल करके मर जाता है
सुबह शाम रात दुपहरी सिर्फ
इसी चिंता में लगा रहता है
किस तरह से उसे पार है जाना
पार करना अगर इतना आसान होता
तो लोग नाव जहाज क्यों बनाकर
पानी में उतारते
हर पल अपने जीवन को सिर्फ
इसी चिंता में निखारते
कि किसी तरह से अगर मैं
आसानी से उस पार चला जाता
तो जीवन क्या होता है
इसको मान जाता
पर पार करने की इसी जुगत में
वह कभी यह जान भी नहीं पाता है
कि इस दुनिया में वह
मानव बनकर आया था
पशु जगत में जानवर से कहीं ऊंचा
अपने को श्रेष्ठ बताया था
पर आज उसकी मुट्ठी में डर के सिवा
कुछ भी नहीं रह गया है
बस उस पार जाना है
जिसे देखिए वही कहा गया है
उस पार जाने के लिए वह अपनी
मुस्कुराहट तक भूल चुका है
जो उसके अपने थे उनको भी
बहुत पीछे छोड़ चुका है
क्योंकि पार जाने की कश्मकश में
वह इतना उलझा हुआ है
उसे अपनी मुट्ठी में
अंधेरा होने का भ्रम हुआ है
इसीलिए वह न जाने कितना उजाला
सुबह से शाम तक पकड़ता रहता है
जब देखो सिर्फ एक ही बात कहता रहता है मुझे भी किसी तरह से उस पार जाना है अपने जीवन को अच्छा बनाना है
सांसों की नैया पर न जाने कितना
वह न्योछावर कर देना चाहता है
ताकि उस पार जाने में वह
सारे सुख पाना चाहता है
पर कई बार इसी उस पार जाने में
वह एक खोखला आदमी
बनकर खड़ा रह जाता है
क्योंकि पार जाने के लिए किसी से
कोई भी उसके पास ना नाता है
ना कोई आता है
इस दौड़ में वह इतना और इतना
अकेला रह जाता है
एक दिन जब उस पार जाने के लिए
वह उसे परम शक्ति को याद करता है
जिसे दुनिया को बनाया है
कहते हैं जिसके कारण ही पृथ्वी पर
जीवन का एक सुंदर सा अर्थ आया है
तब वह भी मुस्कुरा कर मानो
उसे यही कहता है
कि आज तक तुम सिर्फ पार जाने की
जुगत में ही तो लग रहे हो
कभी किसी भी पल
मेरी सुमिरन की भी बात कहे हो
आप जब तुम्हारे हाथ में वास्तव में
अंधेरे के सिवा कुछ भी नहीं रह गया है
तब उस पार जाने के डर से
तुम्हारे पास सिर्फ मेरा ही नाम रह गया है पर अब उस पार जाने का
वह प्राकृतिक सत्य तुम्हें अपनाना होगा
और मानव से दूर खड़े होने का अर्थ
तुम्हें आज समझाना होगा
कितना कुछ तुमने अवसर को
गंवा डाला पशु जगत में
अपने जीवन को तुमने हाला बना डाला
नहीं तो श्रेष्ठ मानव बनकर
तुम क्या नहीं कर सकते थे
उस पार की उलझन में
तुम मरने के सिवा सब कुछ कर सकते हैं 

आलोक चांटिया "रजनीश"

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