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हर दीवार के पीछे एक सुंदर सी
दुनिया को लोग सजाकर रहते हैं
कुछ लोग उसे घर तो कुछ
उसे ड्राइंग रूम कहते हैं
पर सच यह है कि दीवार के पीछे की
यह दुनिया उस घर के लोगों के
दिमाग की कहानी सुनाती है
जो बिना कहे ही आने वाले
लोगों को बताई जाती है
कोई भी दीवार के पीछे सजी हुई
उस दुनिया को जिसे आप
ड्राइंग रूम भी कह जाते हैं
क्या कभी पढ़कर उस घर को
एक बार भी जान पाते हैं
कोई कोने में टीवी लगाता है
तो कोई कोने में गुलदस्ता लगाता है
कोई ड्राइंग रूम में घड़ी लगाता है
तो कोई घड़ी के बिना ही रह जाता है
कोई सोफा उत्तर की दिशा में लगता है
तो कोई ईशान कोण पर भगवान को बैठाता है
कोई कमरे में घुसने वालों से
जूता बाहर उतरने की बात कह जाता है
तो कोई कहता है ऐसे ही चले आईए
इन बातों का आना जाने से कोई नहीं नाता है
कोई घर के बाहर फुट पैड बढ़ा जाता है
और कोई कीचड़ में सने हुए जूते के साथ ही
किसी को अंदर बुला लाता है
कभी ध्यान से देख कर कोई भी नहीं समझ पाता है
कि पर्दों का एक सिलसिला उस
कमरों में कैसा आता है
जब सब कुछ पारदर्शी है खुला हुआ है
तो फिर पर्दा करके क्या बताया जाता है
क्या उस परदे के पार उस घर का सच रहता है
जो ड्राइंग रूम की कहानी अलग
और उस घर की कहानी अलग कहता है
क्या ऐसा करना यह भी बता जाता है
कि उस घर का सच वास्तव में
परदो के साथ ही छुप रह जाता है
इसीलिए हर दीवार के पीछे एक सुंदर सी दुनिया
जो कोई भी सजी हुई देखता है
वह सच में उस आदमी के दिमाग को देखता है
और अपने मन में उस घर की एक कहानी उकेरता है
इसीलिए ज्यादातर लोग हर घर की
सही कहानी नहीं जान पाते हैं
और जो सच नहीं है उसी को
सच मानकर जी जाते हैं
दीवारों के पीछे की यह कहानी
दुनिया के बारे में बता जाती है
कैसे एक आदमी की जिंदगी
दुनिया के सामने आती है
क्या किसी के घर जाकर आपने
कभी किसी का दिमाग पढ़ने की
कोई भी कोशिश की है या सिर्फ समय के साथ
समय बिताने की ही एक जुगत अपने की है
फिर आप कैसे कहते हैं किसी घर से
आप दिल से जुड़ गए हैं
क्या सच में आपकी सोच के कोई
निशान उस घर में रह गए हैं
आलोक चांटिया "रजनीश"
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