दरवाजे की आह
दरवाजा ही तो है जो दुनिया में
हर व्यक्ति को अपने आप बता देता है
कि अंदर कोई है या नहीं है
वैसे तो दरवाजा भी चाहता है
कि उसको बताने के लिए ही ना रखा जाए
जो अंदर रह रहा है वह
बाहर ताला लगा कर जाए
जिससे दुनिया यह समझ जाए
कि अंदर कोई रह रहा है कि नहीं
पर अब तो दरवाजे में ताला लगाने के बाद भी
दरवाजा बंद है यह जाना नहीं जा सकता है
कोई अंदर बैठा है या नहीं
इसे भी माना नहीं जा सकता है
इसी जादू के कारण हर किसी ने
अपने घरों में दरवाजे लगा डाले हैं
और न जाने कैसे-कैसे भ्रम
लोगों के मन में डाले हैं
मजबूत कंक्रीट की दीवारों के बीच
लकड़ी का दरवाजा कमजोर जरूर होता है
पर इस कमजो दरवाजे से होकर
हर किसी का आना-जाना होता है
शायद दरवाजा दिल की तरह हो गया है
जहां हर कोई दस्तक दे देता है
और प्रेम के हस्ताक्षर बड़े आसानी से लिख देता है
कई प्रेम की कहानी भी
दरवाजे के पीछे भी लिखी जाती है
वरना सभ्यता संस्कृति में इन बातों की बात
खुलकर कहां की जाती हैं
दरवाजे पर किसी के हाथ के निशान
कभी भी नहीं दिखाई देते हैं
पर उन उंगलियों के निशान को
आप रोज सन्नाटे में जान लेते हैं
जो अब आपके घर नहीं आते हैं
आप जिनको अपने नजदीक नहीं पाते हैं
बंद कमरों में लिखे गए जीवन की आहट के
बहुत सारे स्वर ना जाने कहां गुम हो जाते हैं
जब आप उन सारे लोगों को
अब अपने जीवन में नहीं पाते हैं
जो दरवाजा पार करके
आपके जीवन में चले आते हैं
दरवाजा ही एक ऐसा दरबारी बनकर खड़ा रहता है
जो जानता है कौन-कौन इस घर में
कब-कब आया है
और उसने अपनी झोली में क्या-क्या पाया है
दरवाजा ही चुपचाप खुलता है बंद होता है
बाहर के रोशनी को रोक कर अंदर के अंधेरों में
वह जीवन के खिलखिलाहट में खोता है
पर वह किसी से कह भी नहीं सकता
कि उसने क्या देखा है
क्योंकि आदमी सदियों से
इस बात को जान गया था
सच कहूं तो यह मन भी गया था
कि पौधों में भी जान होती है
इसीलिए पेड़ों की हत्या करके
उसने दरवाजा बनाया था
जिंदा पेड़ों से उसे डर लगता था
इसीलिए एक मरे हुए दरवाजे को
अपने घर के अंदर लगाया था
आत्मा अजर अमर होती है
पर भला कौन उसे देख सकता है
वह चाहे भी तो किसी को क्या बता सकता है
इसीलिए पेड़ों को काटकर
उसका दरवाजा आदमी बना लाता है
और फिर चुपचाप बंद कमरे में
जिंदगी के हर गीत और
संगीत के साथ स्वरों पर पाता है
बड़ी बेबसी से अपनी हत्या के बाद भी
कटा हुआ पेड़ दरवाजा बनकर
आदमी के साथ रह जाता है
आदमी कहां तक जा सकता है
इसको चुपचाप सह लेता है
क्योंकि जानता है मार कर जब
उसने एक पेड़ को दरवाजा बना डाला है
तो फिर उसके पीछे जीवन में कुछ भी हो सकता है
क्योंकि जीवन सिर्फ अमृत नहीं एक हाला है
मैं भी कभी-कभी दरवाजे की तरफ देखता हुआ
सोचने लगता हूं
कभी-कभी तो पूरी पूरी रात जगता हूं
पर समझ नहीं पाता हूं
कि जो लोग चांदनी की तरह उजाला लेकर
मेरे घर दरवाजा पार करके आए थे
वह सन्नाटो में भला मेरे साथ क्या पाए थे
क्यों एक दूर तक फिर सन्नाटा फैलता चला गया
आदमी क्या है सिर्फ उसके और मेरे मन में रह गया
मेरी व्यथा को दरवाजा समझ भी रहा है
पर मरा हुआ खड़ा है
भला कैसे समझू क्या कह रहा है
पूरे शहर में न जाने कितने घरों में
दरवाजा के पीछे जिंदगी के
न जाने कितने खेल चल रहे हैं
मरा हुआ दरवाजा खड़ा है
और कुछ लोग अंदर मरे हुए चल रहे हैं
शायद दरवाजे को मार कर लगाने की सजा
मनुष्य को यहीं मिल गई है
कि कहीं ना कहीं चार दिवारी मैं लगे दरवाजे की
आह दर्द परेशानी निराशा उसको मिल गई है
आलोक चांटिया "रजनीश"
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