Thursday, July 10, 2025

आज शहर खाली-खाली से दिखा आलोक चांटिया "रजनीश"

 

आज शहर खाली-खाली सा दिखा
भीड़ तो बहुत थी पर
कोई अपना ना दिखा
मां क्या गई जैसे
दुनिया खाली हो गई
हर कोई अपने में मशगूल सा दिखा
लगा ही नहीं कभी साथ-साथ बैठे थे
हर कोई बहुत दूर बहुत दूर ही दिखा
हर डाल जो जुड़ी थी
पेड़ की जड़ों से आज तक
दरकने का एहसास हर किसी में दिखा
मिट्टी से जुड़ना क्यों जरूरी था जाना
सुलगती लकड़ी से था धुआ फिर उठा
बस नमी ही खो गई थी
सभी की आंखों से
आंसुओं के सैलाब में सब कुछ डूबा सा दिखा
जो कल तक अपने थे
आज अजनबी से मिले
मां के गर्भ का असली असर आज था दिखा
जो सो गई थी मिट्टी में
चुपचाप मुझे छोड़कर
उस आलोक के जिंदगी में अंधेरा फिर था दिखा
वह होती तो कहती
गुरु पूर्णिमा पर तुम आए थे
पर आज उस आवाज का सन्नाटा सा दिखा
सभी कहते हैं मां का जाना
कौन सी खास बात है
हर कोई उन्हें भूलने की जुगत में दिखा
आलोक चांटिया "रजनीश"

No comments:

Post a Comment