धरती पर उगे हुए एक फल
फूल के पौधे से ज्यादा तुम कुछ भी नहीं हो
बस तुम अगर यह समझ नहीं पाए
तो सच मानो तुम कहीं नहीं हो
एक फूल अपने रंग को जानता है
अपने ढंग को जानता है
वह मिट्टी से जुड़कर अपने अंदर के
उस वैभव को दुनिया को दिखाने लगता है
और अपने होने का अर्थ
इस दुनिया में बनाए रखता है
कैसे कहते हो तुम मनुष्य होकर
कुछ जानते ही नहीं तुम क्या करने आए हो
फिर भला तुम एक फूल के पौधे से
कैसे ऊंचे उठ पाए हो
वह तो जानता भी है कि वह
अपने साथ क्या लेकर आया है
क्या लेकर जाएगा
और मनुष्य होकर भी तुम्हें
यह पता नहीं कि इस दुनिया में आकर
मुट्ठी में क्या रह जाएगा
इसीलिए अपने को इस समझ से
बाहर निकालने की कोशिश कर डालो
और अपने अंदर के अहंकार को
इच्छा को कुछ इस तरह मार डालो
कि एक फूल की तरह जो तुम्हारे
अंदर उगने को निकलने को प्रयास कर रहा है
जिसकी महक से इस
दुनिया का हर मार्ग चहक रहा है
बस उतना ही अपना अर्थ
इस दुनिया में आने का तुम मान लो
और जाने से पहले सर्वश्रेष्ठ देने की ठान लो
क्यों अपने को उसे कटे हुए
पेड़ के ठूठ की तरह जिंदा रखना चाहते हो
जो अपना सारा काम करके चला गया है
और अभी भी अपने निशान से
अपने होने के सत्य को छोड़ गया है
क्या तुम किसी अपने ऐसे सत्य को
छोड़ने में सफल हो गए हो
मनुष्य सोच कर देखो एक फूल और
पेड़ से तुम कितने पीछे रह गए हो
तुम जानते भी नहीं कि तुम्हें
अपने भीतर से क्या निकालना है
तुम तो भाग्य प्रारब्ध पिछले जन्म के
भोग की बात कह कर मुंह छुपाते रहते हो
और फिर भी पशु जगत में
अपने को सर्वश्रेष्ठ मानव रहते हो
एक बार तो यह मान लो कि पृथ्वी पर
सभी जीव जंतु पेड़ पौधे अपने-अपने
करतब को दिखाने में आज भी तुमसे आगे खड़े हैं
बस तुम भी कुछ कर डालो
इसीलिए वह सब तुम्हारे पीछे पड़े है
क्योंकि तभी तो तुम सर्वश्रेष्ठ होने का अहम
सच करके दिखला पाओगे
और एक फूल की तरह सच में
अपने भीतर का रंग दुनिया को दिखला पाओगे
आलोक चांटिया "रजनीश"
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