हर विस्फोट सिर्फ एक विनाश के लिए नहीं आता है
कभी-कभी वही विस्फोट सृजन का अर्थ बन जाता है
न जाने कब ब्रह्मांड में एक छोटा सा अणु
जब विस्फोट के साथ बिखरा था
तभी तो सौरमंडल का वह स्वरूप निकला था
जिसमें सूरज चांद तारे और न जाने क्या-क्या
हमारे सामने चले आए थे
पृथ्वी भी जीवन का सुंदर अर्थ लिए खड़ी थी
और हम उसमें अपना स्थान पाये थे
फिर कोई कैसे विस्फोट को सिर्फ
नकारात्मक अर्थ में देखता रह सकता है
यह विस्फोट किसी धरती के
जन्म का अर्थ भी तो हो सकता है
अभी भी ब्रह्मांड इस विस्फोट की
ऊर्जा से दौड़ा चला जा रहा है
हर दिन अंतिम एक रास्ता बनाता चला जा रहा है
शायद कभी इसी पृथ्वी की तरह
कोई और भी ग्रह जीवन का अर्थ समेट कर
हमारे सामने आ जाए और
रिश्तो का एक छोर पृथ्वी पर रहे
और दूसरा उस ग्रह तक चला जाए
क्या इतना सुंदर विस्फोट हम मनुष्य होकर
इस दुनिया में दिखा पा रहे हैं
या सिर्फ विस्फोट का अर्थ विनाश है
यही हर पल बता पा रहे हैं
प्रकृति के इस खेल को हम
समझना क्यों नहीं चाहते हैं
जियो और जीने दो के संदेश पर
बस सृजन के लिए रहना चाहते हैं
विस्फोट से क्यों मानव सभ्यता
समाप्त होने का अर्थ लेकर चलने लगी है
क्या उसे एक अणु की कहानी
पृथ्वी पर कहीं भी नहीं मिलने लगी है
क्यों नहीं सीख पा रहे हैं हम
अपने अंदर के विखराव से
एक सुंदर ब्रह्मांड की रचना करने का अर्थ
विस्फोट का अर्थ यह कैसा हम ले रहे हैं
कि पूरी पृथ्वी पर जीवन का अर्थ हो रहा है तदर्थ
आलोक चांटिया "रजनीश"
No comments:
Post a Comment