Monday, January 30, 2023

कांटा का जीवन

 क्यों महक रही हो इस कदर

 मेरी जिन्दगी में तुम ,

चमेली कह दूंगा तो 

गुनाह होगा मेरे लिए  ,

तुम बन कर क्यों रही पाई

 उस जंगली फूल सी कहीं ,

जी भी लेती जी भर कर 

जानवर के साथ ही सही ,

अब देखो जिसे वो ही 

तुम्हारे महक का प्यासा है ,

क्या अभी भी डाली से 

जुड़े रह जाने की आशा है ,

आज तक न जान पाई 

आदमी की फितरत आलोक ,

उसे हर महक , सुन्दरता को 

देख होती हताशा है ,

मुझे दर्द है कि तेरी मौत पर

 कभी कोई न रोयेगा  ,

तेरी हर बर्बादी में बस संग

 एक कांटा भी खोएगा  । 

जो चुभेगा हर पल हर पग पर

 तुम्हें तुम्हारे अंतस में यही प्रश्न बोएगा

 क्यों नहीं तुमने मेरा 

मूल्य समझा जीवन में 

मैं तो बूटी सा था 

तुझे जिंदा रखने के संजीवन में

आलोक चांटिया

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