जमीन के साथ जुड़कर ही
किसी का भी
जीवन निखर पाता है
एक बीज भी अपने
अंदर की छुपी हुई प्रतिभाओं को
दुनिया को बता पाता है
दुनिया भी पा जाती है
पत्ती फूल फल तना और छाया
जब भी जमीन से
जुड़कर रह जाता है
सोच कर देखो तुम अपनी
जमीन से कितना जुड़े हो
क्या उस जमीन के लिए तुम
कभी कहीं किसी भी पल खड़े हो
या तुम्हारे अंदर से
निकल कर आया है जमीन से
जुड़ कर तुम्हारे व्यक्तित्व का
वह सारा सार
जिससे आज तक था अनजान
यह सारा आलोक संसार
गर जमी से जुड़कर
नहीं रहना सीखोगे तो भला अपनी
पहचान से इस दुनिया को क्या दोगे
जो तुम्हारे अंदर है वह
बाहर आने का रास्ता है
इस जमीन से जुड़ना
देखो कुछ भी कर लो पर जमीन से
मुंह फेर कर कभी ना कहीं मुड़ना
आलोक चांटिया
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