Friday, January 20, 2023

औरत भी मानव है

 आज हूँ कल ,

नही रहूंगा  ,

आज सुन लो ,

कल नही कहूँगा 

क्यों मशरूफ हो ,

खुद में इतना ,

आज देख लो ,

कल नही दिखूँगा ,

मैं जानता हूँ ,

कहानी सुनते हो,

सीता की बात ,

फिर नही कहूँगा ,

आज मेरे चीर की ,

पीर सुन भी लो ,

द्रोपदी की एक बात ,

फिर न सहूँगा , 

क्यों इतना अंतर है 

कथनी करनी में 

कहते क्यों नहीं तुम्हें 

अहिल्या ही कहूंगा

 एहसास क्यों कराते हो 

मां बहन कह कर 

जिंदा पैरों पर खड़े गोश्त के 

जब टुकड़े-टुकड़े ही करूंगा 

आलोक चांटिया

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