आज हूँ कल ,
नही रहूंगा ,
आज सुन लो ,
कल नही कहूँगा
क्यों मशरूफ हो ,
खुद में इतना ,
आज देख लो ,
कल नही दिखूँगा ,
मैं जानता हूँ ,
कहानी सुनते हो,
सीता की बात ,
फिर नही कहूँगा ,
आज मेरे चीर की ,
पीर सुन भी लो ,
द्रोपदी की एक बात ,
फिर न सहूँगा ,
क्यों इतना अंतर है
कथनी करनी में
कहते क्यों नहीं तुम्हें
अहिल्या ही कहूंगा
एहसास क्यों कराते हो
मां बहन कह कर
जिंदा पैरों पर खड़े गोश्त के
जब टुकड़े-टुकड़े ही करूंगा
आलोक चांटिया
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