Thursday, February 2, 2023

पूरब का दर्शन भर दो

 दिन भर मुट्ठी में 

उजाला पकड़ता रहा ,

फिर  भी  क्यों मन 

अँधेरे से डरता रहा ,

पग ने भी जाने कितना 

पथ चल डाला ,

कहते जीवन को

 अब भी है , मधु शाला ,

 सृजन का असली 

मतलब तारे समझाए 

देख निशा के संग 

कुछ सपने भी है आये ,

बुन कर इनको फिर

 नींद के रंग से भर दो ,

सांसो की वीणा से 

मन्त्र मुग्ध सा कर दो ,

आलोक की आहट सोच

 रात छोटी हो जाये ,

हर आँखों का स्वप्न 

पूरब का दर्शन भर दो ।


आलोक चांटिया

No comments:

Post a Comment