Tuesday, January 3, 2023

यथार्थ होने का सच

 चिन्ताओ के ,

भंवर में फसकर ,

कौन कहाँ ,

जी पाता है ,

स्वप्निल दुनिया ,

के सपने लेकर ,

हर कोई यहाँ ,

पर आता है ,

मिल जाये सभी ,

कुछ तो अच्छा है ,

खो जाने पर ,

पछताता है ,

जो पाया है ,

कर्म के पथ पर ,

कण कण हर क्षण ,

जाने कब बिक जाता है ,

कब समझा मानव ,

दुसरो के दर्द  को ,

खुद के सुख में ,

हस नहीं  वो पाता है ,

धीरे धीरे सब ,

सपने को खोकर ,

पथराई आँखों से वो  ,

श्मशान तलक ही आता है ,

क्यों न समझा आलोक ,

ये छोटा सा मर्म यहाँ ,

अंधकार को सच समझ ,

उसका कैसा ये नाता है .......................क्या हम भूल रहे है है की हम जितने भी सुख के पीछे भाग ले और किसी कुचक्र से उसको पा भी ले पर जाना तो है ही .............हम सब अपने पूर्वज के नाम तक नहीं जानते तो आपके इस कार्यो के लिए कौन आपको याद करने जा रहे है ....अगर् यह सच है तो आइये थोडा भाई चारा और सुकून को जी ले आलोक चांटिया

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