मै पश्चिम का सूरज हूँ ,
तुम पूरब के बन जाओ ,
मै निस्तेज तिमिर का वाहक ,
तुम पथ के दीपक बन जाओ ,
मै और तुम दोनों है रक्तिम ,
अंतर बस इतना पता हूँ ,
तुम उगने का अर्थ लिए ,
मै उगने की राह बनाता हूँ
....डॉ आलोक चांटिया
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