रेत के ,
छोटे छोटे ,
कणों सा ,
बनकर बिखरा हूँ ,
मैं पत्थर ,
अपने जीवन ,
की दुर्दशा से ,
बहुत सिहरा हूँ ,
ऐसा नहीं मेरे
जीवन में कुछ भी
अच्छा नहीं होता है
कभी-कभी कोई
मेरा ही साथी किसी
मंदिर का शिवलिंग
बनकर हिस्सा होता है
किसी पर छीनी
हथौड़े की मार से
एक सुंदर तस्वीर भी
उकेरी जाती है
पर हर पत्थर की
जिंदगी में यह बात
रोज कहां आती है
ज्यादातर सिर्फ रेत
बनकर घर में
सिमट जाते हैं
पत्थर दिल होने के
अपमान से हम कहां
आलोक बच पाते हैं।
आलोक चांटिया
.रात गहरा रही है पर पता नहीं क्यों नींद कोसो दूर है , मौत का सच जनता हूँ पर यह नहीं जान पा रहा की इस दुनिया में किस मकसद से आया हूँ ..............क्या मैं सिर्फ खाना , शादी के लिए ही पैदा हुआ हूँ या कभी कुछ बेहतर कर पाउँगा ??????????????????////////
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