Monday, January 9, 2023

जोशीमठ का दर्द और धरती

 


धरती कहती हमसे

कब तक मुझसे खेलोगे
कभी तो तुम भी झेलोगे
देखो कैसे दरक रहे हैं
घर तुम्हारे सरक रहे हैं
गलती से तुम मालिक बन बैठे
घूमो दुनिया तुम ऐठे ऐठे
माना मुझको मां कहकर
तुमने शीश झुकाया है
पर मां के हिस्से में देखो तो
कितना बोझ बढ़ाया है
कब तक सहकर तुमको पालू मैं
यह तो तुम सोचो किसी भी पल
वरना जोशीमठ जैसे आएंगे
ना जाने कितने  ही कल
मैं तो फिर भी रह जाऊंगी
धरा कहा है तुमने मुझको
पर तुम खुद तो मिट जाओगे
सोच सिहर जाती हूं तुझको
मत बिगड़ो अब तुम मुझको
अभी कुछ कहां है बिगड़ा
थोड़ा तुम भी संभल कर चल लो
धरती सबकी  सब धरती के
थोड़ा-थोड़ा मिलकर चल लो
पशु पक्षी जीव जंतु पौधे सबकी
मैं मां बनकर रहती हूं
इसीलिए नित्य सांझ सवेरे
तुमसे मैं यह कहती हूं
मत उलझाओ सिर्फ अपना
कहकर नित्य सांझ सवेरे
मेरे तो सब अपने हैं
सब मेरे हैं बहुत चितेरे
बस  जीने की इच्छा लेकर
मुझको तुम उतना ही खोदो
जिसमें खुद को एक दिन कही
तुम आलोक खुद को ना खो दो

आलोक चांटिया

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