धरती कहती हमसे
कब तक मुझसे खेलोगे
कभी तो तुम भी झेलोगे
देखो कैसे दरक रहे हैं
घर तुम्हारे सरक रहे हैं
गलती से तुम मालिक बन बैठे
घूमो दुनिया तुम ऐठे ऐठे
माना मुझको मां कहकर
तुमने शीश झुकाया है
पर मां के हिस्से में देखो तो
कितना बोझ बढ़ाया है
कब तक सहकर तुमको पालू मैं
यह तो तुम सोचो किसी भी पल
वरना जोशीमठ जैसे आएंगे
ना जाने कितने ही कल
मैं तो फिर भी रह जाऊंगी
धरा कहा है तुमने मुझको
पर तुम खुद तो मिट जाओगे
सोच सिहर जाती हूं तुझको
मत बिगड़ो अब तुम मुझको
अभी कुछ कहां है बिगड़ा
थोड़ा तुम भी संभल कर चल लो
धरती सबकी सब धरती के
थोड़ा-थोड़ा मिलकर चल लो
पशु पक्षी जीव जंतु पौधे सबकी
मैं मां बनकर रहती हूं
इसीलिए नित्य सांझ सवेरे
तुमसे मैं यह कहती हूं
मत उलझाओ सिर्फ अपना
कहकर नित्य सांझ सवेरे
मेरे तो सब अपने हैं
सब मेरे हैं बहुत चितेरे
बस जीने की इच्छा लेकर
मुझको तुम उतना ही खोदो
जिसमें खुद को एक दिन कही
तुम आलोक खुद को ना खो दो
आलोक चांटिया
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