मैं जिंदगी को रहा खोजता ,
और जिंदगी मुझको ,
न मौत मिली मुझको ,
ना मिली ही उसको ,
दर दर यूँ ही भटकते रहे ,
न कभी आस जगी मन में ,
ना प्यास बुझी मेरी
और न कभी तेरी ,
कोई तो नहीं जो मिलाता,
कहा जाना है बताता ,
ना कभी पूछा मैंने
न कभी बताया उसने .
कितनी तड़प है लगती ,
हूँ उसका जो टूटा हिस्सा ,
तेरा नाम आत्मा है ,
कहा खुद को परमात्मा उसने .....
आलोक चांटिया
और जिंदगी मुझको ,
न मौत मिली मुझको ,
ना मिली ही उसको ,
दर दर यूँ ही भटकते रहे ,
न कभी आस जगी मन में ,
ना प्यास बुझी मेरी
और न कभी तेरी ,
कोई तो नहीं जो मिलाता,
कहा जाना है बताता ,
ना कभी पूछा मैंने
न कभी बताया उसने .
कितनी तड़प है लगती ,
हूँ उसका जो टूटा हिस्सा ,
तेरा नाम आत्मा है ,
कहा खुद को परमात्मा उसने .....
आलोक चांटिया
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